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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

नौवाँ बयान


जिस समय वे सब सागर के किनारे राजघाट कहलाने वाले स्थान पर पहुंचे, उस समय विजय के हाथ में बंधी घड़ी ठीक नौ बजने का संकेत दे रही थी। वे सभी यानी विजय, विकास रैना, वंदना, ब्लैक-ब्वाय, धनुषटंकार, ठाकुर निर्भयसिंह, रघुनाथ और गौरवसिंह साथ ही आए थे। रैना ने रास्ते के लिए आलू परांठे बनाकर रख लिए थे। हालांकि सभी ने रैना से कहा था कि वह साथ न चले। ऐसे खतरे के स्थान पर उसका चलना ठीक नहीं है, लेकिन उसने किसी की एक न सुनी और चलने के लिए जिद पकड़ ली। जब उससे खतरे की बात कही गई तो गुलशनगढ़ में होने वाली घटनाओं को याद दिलाते हुए कहा कि उनमें से केइ भी उसे कमजोर न समझे, वह हर तरह के खतरे का मुकाबला अकेली ही कर सकती है। जिन पाठकों ने गुलशनगढ़ की धरती पर रैना की बहादुरी के कारनामे नहीं पड़े हैं, वह हमारी लिखी हुई क्रांति सीरीज पढ़कर उस दिलचस्प किस्से से वाकिफ हो सकते हैं।'

हम पाठकों को यहां एक बहुत ही जरूरी बात भी बता देना चाहते हैं और वह यह कि हमारे कई पाठकों ने पत्रों में लिखा है कि आपने संतति में प्राचीन युग की शैली और आधुनिक शैली का जो मिश्रण किया है.. वह कुछ अटपटा-सा है और कथानक का मजा भी खराब करता है। हमारी राय में आप किसी एक ही शैली का प्रयोग करें तो अधिक उपयुक्त होगा। मेरे पाठकों ने मुझे यह राय दी.. इसके लिए मैं उनका शुक्रिया अदा करता हूं। लेकिन यहां पर मैं यह जरूर बता देना चाहता हूं कि पुराने पात्रों के साथ शैली पुरानी है.. और आधुनिक पात्रों के साथ आधुनिक। जैसे जेम्स बांड इत्यादि को रिवॉल्वर का प्रयोग करते हुए इसलिए दिखाना पड़ा, क्योंकि वे आधुनिक हैं और उनके पास रिवॉल्वर है। जैसे कि हमनें यह बयान शुरू करते ही विजय के पास घड़ी दिखाई और यह बताया कि नौ बजे हैं। अगर यही बयान प्राचीन पात्रों पर होता तो टाइम नहीं बताया जाता, बल्कि यही लिखा जाता कि रात का पहला पहर है। कहने का मतलब ये है कि शैली भी पात्रों के अनुसार ही है.. जैसा पात्र बोलता है.. वैसी ही शैली का प्रयोग है।

खैर.. आइए.. अब हम आगे अपना कथानक लिखते हैं।

वे सभी.. यानी विजय इत्यादि ये देखकर चौंकते हैं कि वहां पर उनके इन्तजार में दो स्टीमर खड़े हैं। आपको यह भी खूब याद होगा कि इस वक्त इनके साथ निर्भयसिंह के भेस में उमादत्त का ऐयार गोवर्धनसिंह है और ब्लैक-व्बॉय के भेस में रोशनसिंह है। दो स्टीमर देखते ही विजय चौंककर ब्लैक-ब्वाय की तरफ बढ़ा और बोला- ''प्यारे भ्राता.. तुमसे एक स्टीमर के लिए कहा था और तुमने दो मंगा लिए?''

उसकी यह बात सुनकर एक बार को तो रोशनसिंह अन्दर-ही-अन्दर घबरा-सा गया। अपनी घबराहट को जाहिर न करके उसने बात यों सम्भाली- ''सोचा सर कि हम ज्यादा आदमी हैं... यात्रा में दिक्कत पड़ेगी, क्यों न दो स्टीमरों में ही चलें।'' - '' तुम्हारे बच्चे जिएं, प्यारे।'' विजय अपने ही मूड में बोला- ''लेकिन प्यारे भाई... तुमने हमें पहले नहीं बताया?''

अभी ब्लैक-ब्वाय बना हुआ रोशनसिंह जवाब देना ही चाहता था कि ठाकुर निर्भयसिंह बना हुआ गोवर्धनसिंह - ठाकुर साहब की भांति ही एकदम बोला- ''विजय... ज्यादा बकवास मत किया करो। ये बकवास का समय नहीं है... हमें फौरन चलना है।''

हालांकि विजय अपनी मस्ती में कुछ कहना तो चाहता था, किन्तु न जाने फिर क्या सोचकर चुप रह गया। इसके बाद दो ग्रुप बनाए गए। एक ग्रुप में विजय, ठाकुर साहब, रैना और गौरवसिंह थे। दूसरे में... विकास, धनुषटंकार, ब्लैक-ब्वाय, वंदना और रघुनाथ। इस तरह से दोनों स्टीमरों द्वारा यात्रा शुरू हो गई। गौरवसिंह और वंदना को दोनों स्टीमरों पर अलग-अलग ग्रुप में इसलिए रखा गया था कि अगर किसी वजह से दोनों स्टीमर एक-दूसरे से बिछड़ जाएं-तो दोनों के साथ मंजिल तक रास्ता बताने के लिए गौरव और वंदना रहें। धीरे-धीरे वे सागर का कलेजा चीरते हुए बीच में बढ़ने लगे।

स्टेनगन, हथगोले, टाइम बम, बारूद और गोलियों जैसे हथियार विकास वाले स्टीमर के एक केबिन में रख दिए गए थे। एक ट्रांसमीटर द्वारा दोनों स्टीमरों में सम्बन्ध बना हुआ था। हम पहले विकास वाले स्टीमर का हाल बयान करते हैं।

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