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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

उसने थोड़ी-सी ही देर में मकान का हर कमरा अच्छी तरह देख डाला। एक कमरे में उसे गिरधारीसिंह का बिस्तर चमका, जिस पर पड़ी हुई सलवटें इस बात सुबूत दे रही थीं कि उस पर गिरधारीसिंह थोड़ी देर लेटा है, फिर खुद ही उसके खाली बिस्तर को देखकर बुदबुदाया... 'कभी तो अपने लड़के का ख्याल करके यहां आएगा पापी... तुझसे मैं ऐसा बदला लूंगा...।'

और! इससे आगे वह कुछ नहीं कह सका... बाकी के शब्द उसकी जलती हुई आंखें कह रही थीं।

फिर उसने एक कमरे में देखा, गिरधारीसिंह का लड़का बागीसिंह आराम से अपने बिस्तर पर सोया हुआ था। उसे देखकर बलदेवसिंह बुदबुदाया- 'हालांकि तेरा कोई दोष नहीं है... लेकिन बाप के कर्मों का थोड़ा-सा फल तो तुझे भुगतना ही होगा।' इसके बाद उसने बड़ी बेरहमी साथ उस कमरे की बंद खिड़की का शीशा तोड़ा और जब तक उसकी आवाज सुनकर हड़बड़ाता हुआ बागीसिंह बिस्तर से

उठकर खड़ा होता, तब तक बलदेवसिंह न न केवल उस कमरे में घुस चुका था, बल्कि म्यान से तलवार निकालकर उसकी नोक बागीसिंह के सीने से भी सटा चुका था, बागीसिंह हक्का-बक्का-सा उसे देख रहा था, जो तूफान की तरह कमरे में घुसा और उसके सीने पर तलवार रख दी... सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात तो उसके लिए यह थी कि उसके साथ ऐसी हरकत करने वाले की सूरत ठीक उसके जैसी ही थी। वह क्या बोले, अभी बागीसिंह यह सोच भी नहीं पाया था कि उसके सामने खड़ा हुआ नकली बागीसिंह गुर्राया... 'अगर किसी भी तरह की कोई गलत हरकत की तो अंजाम के तौर पर तुम्हारा धड़ सर से अलग हो जाएगा।''

''लेकिन आप हैं कौन?'' अपने-आप पर थोड़ा काबू पाकर बागीसिंह ने सवाल किया।

''मैं कौन हूं ये तो मैं तुझे अभी नहीं बताऊंगा।'' बलदेवसिंह बागीसिंह की आवाज में ही बोला- ''लेकिन इतना वादा करता हूं कि तेरा कत्ल करने से पहले तुझे अपना परिचय जरूर दूंगा। उस वक्त तक जब तक कि मैं तेरा कत्ल करना मुनासिब नहीं समझता मेरी कैद में रहेगा?''

''लेकिन आपकी मुझसे दुश्मनी क्या है?'' बागीसिंह ने कहा- ''मैंने आपका ऐसा कौन-सा अनिष्ट किया है?''

''तूने तो नहीं तेरे बाप ने जरूर किया है।'' बलदेवसिंह गुर्राया- ''और उस नमकहराम ने गुनाह भी ऐसा किया है कि ऐसा दिल करता है कि ये तलवार इसी वक्त तेरे सीने में आरपार कर दूं, लेकिन नहीं... गुनाह तूने नहीं तेरे बाप ने किया है। असली सजा उसे ही मिलेगी...तू तो केवल इसलिए मुसीबतें भुगतेगा, क्योंकि तू उसका बेटा है। जब तक मैं अपना बदला नहीं ले लेता, उस वक्त तक तू मेरी कैद में ही रहेगा।''

'लेकिन मेरे पिता ने आखिर ऐसा कौन-सा गुनाह किया है?''  - 'चुप हो जा हरामी की औलाद!'' बलदेवसिंह पागल-सा होकर चीख पढ़ा-- ''उस सूअर का गुनाह मुझे याद मत दिला वर्ना मेरी तलवार काबू से बाहर हो जाएगी। अगर बता सकता है तो ये बता कि तेरा बाप इस वक्त कहां है?''

''अपने कमरे में सोए हुए हैं।'' बागीसिंह ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी जानकारी उसे दे दी।

''इसका मतलब वो हरामजादा तुझे भी बताकर नहीं गया कि वह दुनिया का सबसे बड़ा पाप करने गया है।'' बलदेवसिंह चीखा- ''अब मैं बागीसिंह बनकर इसी घर में रहूंगा। क्योंकि अगर मैं उसे अपनी असली सूरत में मिला तो वह कभी मेरे सामने नहीं आएगा। अगर वह मेरे पिता से बचकर भाग भी गया तो उसे कभी तो अपने लड़के यानी तेरा ख्याल तो आएगा ही। किसी भी तरह छुपछुपाकर वह तुझसे मिलने तो आएगा ही और यहां तेरे भेष में उसे मैं मिलूँगा। वह कभी ख्वाब में भी नहीं सोच पाएगा कि मैं यहां उसका ही बेटा बनकर बैठा हूं... बस उसी दिन से मेरा प्रतिशोध शुरू होगा और उस दिन तक चलता रहेगा, जब तक कि उसे इस लायक न कर दूं कि वह सारी दुनिया के सामने चीख-चीखकर अपना गुनाह कहे... सारी दुनिया उस पर थूके...ईंट-पत्थर मारे... हर आदमी उसे दुत्कार दे--तेरे बाप को उसी हाल तक ला देना मेरा बदला होगा और एक दिन वह खुद ही आत्महत्या करेगा।''

''मैं कुछ भी समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम कौन हो और यह क्या कह रहे हो? मेरे पिता से तुम्हारी दुश्मनी क्या है?''

लेकिन बलदेवसिंह उसे कुछ बताने का कष्ट करने की जगह तलवार की नोक उसकी नाक के पास ले गया। उसकी नोक पर बेहोशी की बुकनी लगी हुई थी, जिसने अपना असर दिखाया और बागीसिंह बेहोश हो गया। बलदेवसिंह ने उसकी गठरी बनाई और कंधे पर डालकर मकान से बाहर निकल आया!

 

० ० ०

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