ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 3 देवकांता संतति भाग 3वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''जब मैंने गठरी खुलने पर रामकली को देखा और एक नकाबपोश के रूप में खुद पिशाचनाथ को देखा तो मैं एकदम समझ गया कि यह सब पिशाचनाथ की ही कोई गहरी चाल है। मैं उसकी इस चाल को नाकाम करने के लिए ही अपने चेहरे पर पिशाच का मेक-अप कर रहा था, उस समय तक मैंने अपना काम पूरा कर लिया जब तक कि पिशाचनाथ नसीमबानो को मठ के नीचे तहखाने में कैद करके वहां से चल दिया। आगे जाने पर जमुना ने पिशाचनाथ को रोका और उसी समय जमना को भ्रमित करने के लिए मैं वहां पिशाच बनकर प्रकट हो गया। पिशाचनाथ मेरा सामना करना चाहता था कि उसी समय मैंने उसे टमाटर दिखा कर भयभीत कर दिया ... वहां मैंने इस तरह का नाटक किया जैसे वह पिशाच नकली हो और मैं असली हूं। टमाटर देखकर पिशाच बेहोश हो गया और जमना मेरी आगे की कार्यवाही न देख सकी, इसलिए मैंने बटुए में रखी एक बेहोशी की दवा की शीशी खोल दी। उसकी सुगन्ध से जमना भी बेहोश हो गई। जमना से इस समय मुझे कोई मतलब नहीं था। इसलिए मैंने उसकी बेहोशी के आलम में उसे इस तरह का पत्र लिखा मानो पिशाचनाथ ने लिखा हो। जमना को वहीं छोड़कर मैंने पिशाचनाथ की गठरी बांधी और यहां के लिए रवाना हो गया। सबसे पहले मैंने उसे राजमहल के खास कैदखाने में कैद किया। अब मुझे यह जानना था कि पिशाचनाथ ने किस तरह की चाल चली है, यह पता लगाने के लिए मैं अपने लड़के बिहारीसिंह से मिला।
''तुम इस समय एक बार फिर जमना से मिलकर आओ।' मैंने उसे आदेश दिया।
''क्या मतलब पिताजी?' मेरे इस आदेश पर वह हल्के से चौंका- 'आज की रात में ही उससे दुबारा...?'
''हां।' मैंने कहा- 'इस समय ज्यादा सवाल मत करो, समय कम है और काम बहुत-से करने हैं। केवल इतना करो कि इस समय जमना से जाकर मिलो, वह कुछ बात कहेगी, तुम उसकी एक-एक बात ध्यान से सुनना। ध्यान रहे... सतर्क रहना आज की रात पिशाचनाथ ने किसी तरह की ऐयारी खेली है लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है। इस समय पिशाच मेरी कैद में है।' - ''इतना सुनने के बाद बिहारीसिंह तेजी से उस मठ की तरफ रवाना हो गया जहां पिशाचनाथ ने नसीमबानो को कैद किया था। जब मैं उस जगह पर पहुंचा तो पिशाचनाथ के आठों साथी कुंडे में जली आंच में हाथ ताप रहे थे। मैं उस समय पिशाचनाथ के भेष में तो था ही, मुझे देखते ही पिशाच का शागिर्द बोला- 'अरे गुरु... आप वापस आ गए... क्या बात है?'
''क्या तुमने अभी तक उस नकली रामकली से किसी तरह की पूछताछ की?' - ''नहीं उस्ताद... अभी तो नहीं।' --- ''मैं अभी राजा दलीपसिंह के पास से चला आ रहा हूं।' मैंने उनसे कहा- 'उन्हें मैंने सारा किस्सा बताया तो कहने लगे कि नकली रामकली को मठ में रखना असुरक्षित है, अत: उसे यहां ले आओ। महल के तहखाने में ज्यादा सुरक्षित रहेगी। मैंने सोचा कि उनका कहना ठीक ही है, अत: मैं उसे यहां से निकालकर वहीं रखता हूं।' इस तरह मैंने उन्हें धोखा दिया। उनमें से एक उठकर गया और मठ के तहखाने से उसे निकालकर बाहर ले आया। इस तरह से मैं नसीमबानो को वहां से लेकर चल दिया। यही सोचकर मैंने जमना को ऐसा खत लिखा था कि मैं रामकली को लेकर आ रहा हूं। मैंने जो कुछ देखा था वह रास्ते में ही नसीमबानो को बता दिया। नसीमबानो को लेकर मैं सीधा पिशाचनाथ के घर पर पहुंचा। जमना के कमरे के बाहर खड़े होकर हमने कुछ देर तक उनकी बातें सुनीं, उनकी बातों से पता लगा कि यहां जब जमना आई तो उसने अपनी मां रामकली को पाया और जमना उसे अपनी नकली मां समझ रही है। उसका सोचने का ढंग यह था कि जो पिशाचनाथ यहां से उसकी आंखों के सामने रामकली को ले गया था, वह नकली पिशाचनाथ था और वह उसकी असली मां यानी रामकली को बेहोश करके ले गया है। जबकि हकीकत ये थी कि अपहरण करने वाला असली था। वह नसीमबानो थी, लेकिन जमना का दिमाग ऐयारी की इन गहरी साजिशों तक नहीं पहुंच पा रहा था। जबकि मैं समझ चुका था पिशाचनाथ ने यह सबकुछ क्या सोचकर किया है।''
''हमें भी बताओ कि पिशाचनाथ ने क्या सोचकर क्या किया था?''
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