ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 3 देवकांता संतति भाग 3वेद प्रकाश शर्मा
|
0 |
चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''तुम वही करो नसीम, जो मैं तुमसे कह रहा हूं। मैंने नसीमबानो की बात बीच में ही काटकर उसे डांटा- 'बेकार की बातों में उलझने की कोशिश मत करो। मुझे किसी भी तरह रक्तकथा हासिल करनी है और उसके लिए मैं न जाने किस-किस तरह के कितने जाल बिछा रहा हूं।'
''नसीमबानो आखिर मेरी पत्नी है, बेचारी मेरी बात सुनकर सहम गई और इस डांट के बाद किसी तरह का सवाल करने की तो उसकी हिम्मत ही नहीं थी। अत: मेरे आदेश का पालन करने के लिए वह मकान की छत पर चढ़ गई और जंगल में दूर तक देखती रही। इस बीच मैं नीचे मकान में तलाशी ले रहा था। मैंने खास तौर से पिशाचनाथ के कमरे की तलाशी ली किन्तु मुझे अपनी इच्छित चीज हाथ न लगी। अभी मैं रामकली के कमरे की तलाशी लेने के लिए आगे बढ़ा ही था कि नसीमबानो ने मुझे नीचे आकर सूचना दी- 'वे दोनों आ रहे हैं।'
''तो मैं चलता हूं... तुम आराम से बिस्तर पर सो जाओ।' मैंने जल्दी से कहा... 'कल पिशाचनाथ के आने पर किसी तरह उससे रक्तकथा की बात छेड़ना लेकिन इस ढंग से कि उसे तुम पर किसी तरह का शक न होने पाए।' इतना कहने के बाद मैं, जमना और बिहारी के वहां पहुंचने से पहले ही मकान से बाहर निकल गया। मैं वहां से निकल तो आया था परन्तु हर सायत मेरा दिमाग यही सोचने में व्यस्त था कि मझे सफलता किस तरह मिलेगी।
'मैं इसी तरह के विचारों में लीन चला जा रहा था कि एकाएक मेरे दिमाग में विचार आया कि क्यों न इस बारे में मैं अपनी कैद में पड़ी रामकली से पूछताछ करके उससे यह भेद जानने की कोशिश करूं। मैंने रामकली को एक ऐसे स्थान पर कैद किया था जिसके बारे में अभी तक कोई ये भी नहीं जानता कि वह स्थान हमारे कब्जे में है। ऐसी सुरक्षा मैंने इसलिए की थी, क्योंकि अभी तक पिशाचनाथ अथवा रामकली ये नहीं जान पाए थे कि उनके साथ में ये सब ऐयारी कौन कर रहा है? मैं इस भेद को उस समय तक भेद ही बनाए रखना चाहता था जब तक कि रक्तकथा हाथ में न आ जाए। मेरी कैद में पड़ी रामकली यह तो समझ ही गई होगी कि उसके पति यानी पिशाचनाथ के किन्हीं दुश्मनों की ऐयारी आजकल उसके अपने घर में ही चल रही है, किन्तु ये कार्यवाही किस दुश्मन की है यह भेद अभी तक मेरी निगाह में वह भी नहीं जानती थी।
''किन्तु उस समय मेरा ऐसा सोचना बिल्कुल गलत था, यह मुझे उस समय पता लगा जब मैं अपने उस गुप्त स्थान पर पहुंचा जहां मैंने रामकली को कैद किया था। यह देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया कि रामकली अपने स्थान से गायब थी। वह कोठरी बिल्कुल खाली पड़ी थी जिसमें मैंने रामकली को कैद किया था। मैं नहीं जान पाया कि वह वहां से कैसे निकल गई? वह अकेली ही उस कैद से निकलने में कामयाब हो गई अथवा किसी दूसरे ने उसे मदद देकर वहां से निकाल था... कुछ देर मैं तरद्दुद में फंसा वहीं खड़ा सोचता रहा... फिर एकाएक मेरे दिमाग में विचार आया कि रामकली के यहां से गायब होने का सीधा-सा मतलब यह है कि पिशाचनाथ के घर पर जरूर कुछ हंगामा होगा। मैं तेजी के साथ वहां से निकलकर जंगल-जंगल पिशाचनाथ के घर की ओर रवाना हुआ। बेगम साहिबा को याद होगा कि कल की रात पूर्णमासी की रात थी और चांद दुनिया वालों को रोशनी प्रदान कर रहा था। मैं अपने दिमाग में अनेक विचार लिये घर की ओर बढ़ता जा रहा था कि--
''एकाएक चौंककर मैं ठिठक गया। मैंने देखा कि चार नकाबपोश एक गठरी को कन्धे पर लादे जंगल में एक तरफ को बढ़े चले जा रहे हैं। उस समय मैं उनमें से एक को भी नहीं पहचान पाया, क्योंकि उन सभी के चेहरे काली नकाबों से ढके हुए थे। मैंने खुद को जल्दी से एक पेड़ की आड़ में छुपा लिया। वे चारों आदमी आगे निकल गए, अभी मैं पेड़ की आड़ से हटने की कोशिश कर ही रहा था कि मैंने जंगल में उन चारों नकाबपोशों का पीछा करता हुआ एक और साया देखा। यह साया अपने-आपको पेड़ों के झुरमुट में रखने की कोशिश करता हुआ उन चारों का पीछा कर रहा था। मेरे देखते-ही-देखते एक क्षण के लिए वह साया चन्द्रमा की चांदनी में आया और यह देखकर मैं दंग रह गया कि वह पिशाचनाथ की लड़की जमना थी। उसे देखते ही मैं समझ गया कि जरूर यह घटना पिशाचनाथ के घर पर हुई किसी गड़बड़ का सुबूत है। तभी मुझे उस गठरी का ख्याल आया जिसे उन चारों में में से किस एक ने अपनी कमर पर लाद रखा था। मेरे दिमाग में विचार उठा कि कहीं उस गठरी में नसीमबानो तो नहीं? इसी विचार ने मुझे उनका पीछा करने के लिए मजबूर कर दिया। जमना उनका पीछा कर रही भी और मैं जमना का पीछा कर रहा था। आखिर में जब वे चारों गठरी को लेकर मठ पर पहुंच गए और जमना एक जगह छुपकर उनकी बातें सुनने लगी--उस समय मैं भी एक जगह छुपा दो काम एक साथ कर रहा था। पहला तो यह कि मैं अपनी ऐयारी के बटुए का उपयोग करके अपनी सूरत पिशाचनाथ जैसी बना रहा था और दूसरा काम ये था कि मेरे कान और आंखें मठ पर ही जमी हुई थीं।
|