लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 3

देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''बस, इतना काम करके मैं निश्चिन्त-सा हो गया था।

''मुझे ख्वाब में भी यह उम्मीद नहीं थी कि मेरी इस योजना के बारे में पिशाचनाथ को पता लग जाएगा।

''अगली रात, यानी यह कल रात की ही बात है कि मैंने रात का पहला पहर शुरू होते ही बिहारी से कहा- 'तुम आज भी जमना को कल की तरह घुमाने का बहाना करके, कुछ देर के लिए घर से बाहर ले जाओ।'

''लेकिन पिताजी, आप बताते क्यों नहीं कि इसके पीछे आपका क्या सबब है?'

''तुम केवल वह किया करो जो हम आदेश दें। काम के समय हमसे सवाल मत किया करो।'

''लगता है कि आप जमना को वहां से निकालकर उसके मकान में रक्तकथा की खोज कर रहे हैं।'

'मैंने उसकी इस बात का कोई भी जवाब न देकर उसे घूरा। वह सहम गया और इसके बाद उसने बिना कुछ भी बोले मेरे आदेश का पालन किया। परसों रात.. की तरह ही वह जमना को घुमाने के बहाने बाहर ले गया। उसी रात मैं रामकली बनी नसीमबानो से मिलने चला गया।

''क्या रहा?' मैंने जाते ही उससे प्रश्न किया।

''अभी तो मुझे कुछ पता नहीं लगा।' नसीमबानो ने बताया-- ''आज दिन मैंने सारा घर छान मारा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली।'

'' जब तुमने पिशाच और दलीपसिंह की बातें अपने कानों से सुनी हैं तो यह जरूरी है कि रक्तकथा इसी मकान में कहीं है, लेकिन पिशाचनाथ ने उसे किसी ऐसी गुप्त जगह पर छुपाकर रखा है, जहां तक तुम अभी पहुंच नहीं पाई हो। मुझे लगता है कि वह इतनी आसानी से नहीं मिलेगी और पिशाचनाथ इतना धूर्त्त ऐयार है कि उसने अपने अलावा किसी और को यह बताया भी नहीं होगा कि रक्तकथा उसके पास है भी। यह भेद तुम किसी भी तरह केवल पिशाचनाथ से ही उगलवा सकती हो, क्या पिशाचनाथ आज दिन में यहां आया था?' आखिर में मैंने सवाल किया।

हाँ--थोड़ी देर के लिए आया था।'

'आया था? फिर क्या बातें हुईं?'

''उसके आते ही मैंने सारे नाटक इस तरह किए कि उसे मेरे नकली होने का जरा भी शक न हो।' नसीमबानो बोली सबसे पहले आते ही उसके पैर छुए, फिर खाना बनाकर खिलाया--खाना खाने के बाद वह आराम करने के लिए थोड़ी देर खाट पर लेटा, मैं उसके पैर दबाने लगी और अभी मैं यह सोच रही थी कि ऐसी कौन सी वात शुरू करूं कि बात रक्तकथा पर आ जाए कि एकाएक् वह बोला- 'अच्छा रम्मो।' वह रामकली को शायद रम्मो ही कहता है- 'अब मैं चलूं।'

''सारी रात गायब रह कर तो अब आए हो... फिर कहां चले?'' मैंने अभिनय करके पत्नी की तरह ही शिकायत की, सुनकर वह मुस्कुराया और बोला ... तुम तो जानती ही हो रम्मो कि दलीपसिंह के लिए ज्यादातर ऐयारी के कार्य मुझे ही करने पड़ते हैं।'

''और सारे ऐयार क्या मर चुके हैं?'

'तुम्हारे पतिदेव दलीपसिंह सबसे बड़े ऐयार हैं ना।'' पिशाचनाथ मुस्कराकर बोला- ''इसीलिए ज्यादातर काम मुझे ही करने पड़ते हैं। आज की रात मैं यहां नहीं आ सकूंगा।'' इस तरह मैंने पत्नी की तरह जिद करके उसे रोकने की बहुत कोशिश की, किन्तु वह रुका नहीं।

''उसे तुम पर किसी तरह का शक तो नहीं हुआ?' मैंने नसीमबानो से पूछा।

''नहीं।' नसीमबानो ने बताया- 'यह बात तो मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि उसे मुझ पर रत्ती-भर भी शक नहीं हुआ।'

''और जमना को?'

''जब पिशाचनाथ जैसा ऐयार ही धोखा खा गया तो जमना बेचारी की क्या बिसात है?' नसीमबानो ने कहा। उसका यह जवाब सुनकर मैं थोड़ी देर चुप वहीं खड़ा सोचला रहा कि मुझे क्या करना चाहिए, फिर मैंने एक् निश्चय किया और बोला- 'तुम जरा मकान की छत पर चढ़कर देखती रहो... मगर बिहारी और जमना आते दिखाई पड़ें तो मुझे खबर कर देना, उस वक्त तक जरा मैं खुद इस मकान की तलाशी लेकर देखता हूं। शायद मुझे सफलता मिल जाए।'

''ये जमना और बिहारी का क्या चक्कर है?' यह भेद क्योंकि नसीमबानो को मैंने बताया नहीं था इसलिए उसने पूछा- 'कल भी आप कह रहे थे कि जमना और बिहारी बाहर घूमने गए थे और आज भी।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book