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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''जरा सुने तो सही कि तुम क्या-क्या कर रहे हो?''

''जैसे ही यह पता लगा कि रक्तकथा पिशाचनाथ के घर पर ही कहीं छुपी है, मैंने उसी दिन अपना जाल बिछाना शुरू कर दिया। पिशाचनाथ की लड़की जमना रोजाना मन्दिर जाया करती है ... इसी बात को पकड़कर मैंने अपने लड़के बिहारीसिंह को आदेश दिया कि वह मन्दिर में जाए और पिशाच की लड़की से मेल-जोल बढ़ाए। उस दिन के बाद जमना और बिहारीसिंह आपस में मिलने लगे। बिहारीसिंह उस पर इस तरह जताने लगा जैसे न जाने वह उससे कितनी मुहब्बत करने लगा है। इस तरह कच्ची उमर की जमना उसके प्रेम-जाल में फंस गई... और बिहारीसिंह छुपकर रातों को उसके घर जाने लगा। जमना समझती कि बिहारीसिंह उससे मिलने आता है जबकि हकीकत ये थी कि वह रक्तकथा के चक्कर में जाता था... किन्तु यह सारी तरकीब बेकार गई। हालांकि बिहारीसिंह ने पिशाचनाथ का पूरा मकान छान मारा... किन्तु उसे कहीं पर रक्तकथा नहीं मिली। लिहाजा मुझे दूसरी तरकीब सोचनी पड़ी।'

''मेरी इस बार की तरकीब काफी खतरनाक थी। आपको भी शायद मालूम होगा कि पिशाच दलीपसिंह के काम से अक्सर बाहर ही रहता है ऐसे दिन बहुत ही कम होते हैं जब वह अपने घर पर सोता हो। उसने ऐयारी सीखने वाले बहुत-से चेले रखे हुए हैं, अक्सर उन्हीं में से कोई या दो-चार चेले वहां पर सोते हैं, किन्तु हमने अपनी योजना को कार्यान्वित करने के लिए एक ऐसी रात का चुनाव किया, जिस रात वहां रामकली और जमना के अलावा कोई नहीं था। वह रात परसों की रात थी।

''हमारा षडयंत्र रात के दूसरे पहर से ही शुरू हो गया था। सबसे पहले मैंने बिहारीसिंह को जमना के पास भेजा। जमना हर रात को जागकर बिहारीसिंह का इन्तजार किया करती थी क्योंकि वह बिहारी को केवल अपना प्रेमी ही समझती है, उसकी असलियत का उसे आभास तक भी नहीं है। मेरी योजना के अनुसार बिहारी जमना के पास पहुंचा और उसे चांदनी रात में घुमाने के बहाने मकान से बाहर दूर जगल में ले गया। रामकली को अपनी लड़की की इन करतूतों की ख्वाब में भी खबर नहीं थी, अत: उस समय रामकली घर पर अकेली थी। मैं खुद और एक ऐयार तथा नसीमबानो को साथ लेकर वहां पहुंचा। यहां मैं आपको बता दूं कि अपनी योजना के अनुसार नसीमबानो को मैंने रामकली बना दिया था, किन्तु उस समय हम तीनों ही नकाब में थे। हम दबे-पांव रामकली वाले कमरे में पहुंचे और मुख्तसर यह है कि रामकली को हमने सोते में ही बेहोशी की बुकनी सुंघाकर बेहोश कर दिया। नसीमबानो ने अपने काले लबादे के नीचे रामकली जैसे ही कपड़े पहन रखे थे। अभी तक मैंने नसीमबानो को नहीं बताया था कि उसे क्या करना है... इसीलिए उसने उस समय मुझसे पूछा- ''प्राणनाथ, अब मुझे ये तो बताओ कि मुझे करना क्या है?'

''सबसे पहले तो अब यह काला लबादा उतारकर मुझे दे दो।' मैंने कहा- 'यह तुम देख ही रही हो कि इस समय तुम पिशाच की पत्नी रामकली बनी हुई हो। असली रामकली को हम अपने साथ लिये जा रहे हैं, अब यहां कुछ दिनों के लिए रामकली बनकर तुम ही रहोगी।'

''लेकिन इस सबका सबब क्या है?' नसीमबानो ने पूछा। - ''मैं तो समझता था कि तुम इतनी बातों से सबब समझ गई होगी।' मैंने बताया... 'खैर.. तुमने ही तो बताया था कि रक्तकथा पिशाचनाथ के घर में ही कहीं है। पहले तो यहां से रक्तकथा निकालने का काम मैंने बिहारीसिंह को सौंपा था, लेकिन उसके नाकामयाब होने पर यह काम तुम्हारे सुपुर्द है। पिशाचनाथ अथवा किसी को भी यह गुमान तक भी नहीं होना चाहिए कि तुम रामकली नहीं हो। तुम्हारा सबसे खास काम यह होगा कि तुम यहां रहकर आराम से रक्तकथा ढूंढ़ो, अगर न मिले तो पिशाचनाथ के आने पर बातों-बातों में उससे यह जानने की कोशिश करो कि उसने रक्तकथा कहां रखी है? अब इसमें केवल तुम्हारी चालाकी और होशियारी की बात है कि तुम किस तरह पिशाच को धोखा देती हो। इस समय तुम आराम से रामकली के बिस्तर पर केवल सो जाओ। सुबह से तुम्हें अपना अभिनय शुरू करना है। अब रक्तकथा को हासिल करने के लिए केवल तुम्हारे सफल अभिनय की जरूरत है।' इसी तरह की बहुत-सी बातें उसे समझाने के बाद मैं असली रामकली की गठरी बनाकर अपने साथी ऐयार के साथ वापस लौट गया। रामकली को मैंने कैदखाने में डाल दिया और रात के आखिरी पहर में जब बिहारी लौटकर आया तो उसने खबर दी कि किसी तरह की कोई गड़बड़ नहीं है, सब ठीक है।

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