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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

चौदहवाँ बयान


इस समय शैतानसिंह पिशाचनाथ के भेस मे नहीं, बल्कि अपने वास्तविक रूप में है। हम शैतानसिंह को उसकी असली सूरत में पाठकों के सामने पहली बार ला रहे हैं... इसी सबब से यहां उसका हुलिया लिख देना बहुत जरूरी है। शैतानसिंह नाम का शैतान तो है ही शक्ल से भी शैतान ही नजर आता है। उसका कद किसी भी तरह ढाई गज से कम नहीं है। रंग तवे की तरह काला है, लम्बी नाक, चौड़े और भद्दे होंठ, चाकू की तरह नुकीली ठोड़ी पर जख्म का एक लम्बा निशान है। उसकी बड़ी-बड़ी आखें उसकी भयानकता को और बढ़ा रही हैं... और सच लिखा जाए तो ये आखें ही उसे शैतान जैसी सूरत प्रदान कर रही हैं। इस समय हमारा यही शैतानसिंह एक निहायत ही खूबसूरत और कमसिन औरत के सामने बैठा है। उस लड़की का नाम बेगम बेनजूर है। यह भी पाठक अच्छी तरह समझते ही होंगे कि शैतानसिंह बेगम बेनजूर का ही ऐयार है।

आइए इनकी बातें सुनें। कदाचित् किसी भेद से पर्दा उठ सके, एक सायत तक बेगम बेनजूर शैतानसिंह के चेहरे को देखती रहती है, फिर कहती है-

''लेकिन इस तरह तुम टुकड़ों में बांट-बांटकर हमें ये बातें सुना रहे हो, उससे हम कुछ भी नहीं समझ पा रहे हैं। इससे अच्छा तो ये हो कि तुम हमें सारी बातें शुरू से आखिर तक विस्तार से सुनाओ।''

''तो मैं आपको सारी बातें शुरू से ही सुनाता हूं बेगम!'' शैतानसिंह ने कहना शुरू किया- ''आज से कोई छ: महीने पहले आपने मुझे काम सौंपा था कि मैं किसी भी तरह राक्षसनाथ के तिलिस्म को तोड़ने वाली चाबी यानी वह रक्तकथा हासिल करूं जो किर्सो जमाने में खुद राक्षसनाथ ने लिखी थी। उस समय हममें से किसी को यह भी नहीं मालूम था कि रक्तकथा किस पर है? काफी समय तो मुझे यही पता लगाने में लग गया... मैंने अपने अनेक ऐयारों को इस काम पर लगा दिया कि वे रक्तकथा का पता लगाएं। करीब तीन महीने पहले मुझे खबर लगी कि रक्तकथा राजा दलीपसिंह के पास है। अब हमारा सारा ध्यान राजा दलीपसिंह की ओर लग गया। हमने दलीपसिंह के राजमहल तक अपने ऐयारों का जाल बिछवा दिया... सबका काम यही पता लगाना था कि दलीपसिंह ने रक्तकथा किस जगह पर और किस सुरक्षा के अन्दर रखी है। मेरा लड़का बिहारीसिंह और पत्नी नसीमबानो दलीपसिंह के यहां नौकरी करने लगे, उनका मुख्य काम रक्तकथा का पता लगाना ही था। एक बार दलीपसिंह अपने सबसे खास ऐयार पिशाचनाथ से बातें कर रहे थे... नसीमबानो ने छुपकर उनकी सारी बातें सुन लीं और उन बातों से उसे पता लगा कि रक्तकथा की सुरक्षा का भार राजा दलीपसिंह ने पिशाचनाथ को सौंप रखा है। पिशाचनाथ ने वह अपने घर में किसी बहुत ही सुरक्षित स्थान पर रख रखी है। बस... हमने अपना ध्यान हटाकर पिशाचनाथ पर लगा दिया।''

''क्या ये मालूम नहीं हो सका कि दलीपसिंह के हाथ रक्तकथा कहां से लगी?''

''नहीं!'' शैतानसिंह ने जवाब दिया- ''और न ही हमने इस बात का पता लगाने की कोशिश की क्योंकि हमें इस बात से कोई मतलब नहीं था। हमें केवल रक्तकथा हासिल करनी थी और हमें ये मालूम हो चुका था कि वह पिशाचनाथ के घर पर कहीं है।''

'तो पिशाचनाथ से तो तुमने वह आसानी से हासिल कर ली होगी?''

''ये बात किस तरह कह सकती हैं?'' शैतानसिंह ने सवाल किया।

''हमें याद पड़ता है कि एक बार तुमने हमें बताया था कि अगर पिशाचनाथ को एक टमाटर दिखा दिया जाए तो वह डर जाता है और फिर चाहे उससे कुछ करवा लो। तुम उसी टमाटर का प्रयोग करके आसानी से उससे रक्तकथा हासिल कर सकते हो।''

''कर तो जरूर सकता हूं लेकिन अभी तक मैंने उस तरकीब को काम में लाना ठीक नहीं समझा।''

''क्यों?''

''क्योंकि टमाटर वाली तरकीब मैं उस समय काम में लाना चाहता हूं जब और सारी तरकीबें बेकार हो जाएं!'' शैतानसिंह ने कहा- ''मेरा ख्याल है कि मैं बिना उस तरकीब के ही पिशाच से रक्तकथा हासिल कर सकता हूं और मेरी वे ही कोशिशें अभी तक चल रही हैं... अभी तक मैं कामयाब भी हूं। इस समय खुद पिशाचनाथ और उसकी पत्नी रामकली मेरी कैद में हैं।

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