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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

कुछ ही देर बाद बिस्तर पर पड़ी रामकली ने चकमक से चिराग जला दिया। जंगले पर खड़े तीनों व्यक्ति कमरे का दृश्य स्पष्ट देखने लगे। रामकली ने पिशाचनाथ को देखा और बोली- ''आ गए आप... उसे मठ पर छोड़ आए?''

'हां!'' पिशाचनाथ बोला- ''अब उन दुष्टों को पता लगेगा कि पिशाचनाथ से दुश्मनी कितनी महंगी पड़ती है।''

तुम कौन हो?''

'ये तुम कैसी बातें कर रही हो?'' पिशाचनाथ मुस्कराता हुआ बोला- ''मैं पिशाच...।''

'नहीं!'' रामकली अपनी पूरी शक्ति से चीखी- ''तुम वह नहीं हो।'' और यह कहकर रामकली शेरनी की भांति पिशाच पर झपट पड़ी। किन्तु पिशाच ने फौरन पैंतरा बदला और उसकी गरदन की कोई नस दबा दी। परिणामस्वरूप वह एकदम बेहोश होकर धरती पर गिर गई। उसी क्षण जमना, बिहारी और रामकली कमरे में आ गए।

'ये अचानक इसे क्या हो गया?'' रामकली ने पूछा।

'मुझे अफसोस है कि तुम लोग इसका नाटक नहीं देख सके। इसे मुझ पर जल्दी ही शक हो गया।''

''क्या मतलब...? कैसा शक?''

''पहले-पहल यह मुझे देखकर धोखा खा गई थी।'' पिशाच ने बताया- ''इसने समझा कि मैं पिशाचनाथ के भेस में इसका पति शैतानसिंह ही हूं मगर जल्दी ही यह समझ गई कि मैं शैतानसिंह नहीं बल्कि असली पिशाच हूं। तो यह बौखलाकर एकदम मुझ पर झपटी... जब यह असलियत समझ ही गई तो इसके अलावा इसका कोई दूसरा इलाज नहीं था। मजा तो उस समया आता, जब यह थोड़ी देर तक मुझे शैतानसिंह ही समझती रहती। खैर.. जाने दो।'' - ''अब इसका क्या करेंगे...?'' बिहारीसिंह ने पूछा।

'इसे भी वहीं कैद करूंगा जहां शैतानसिंह को किया है और सबक दूंगा कि पिशाचनाथ से दुश्मनी लेनी कितनी महंगी पड़ती है। मैं जरा इसे वहीं पर कैद करके आता हूं। जमना और रामकली अब तुम्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है, शैतानसिंह मेरी कैद में है। तुम यहीं रहो, मैं सुबह तक लौट आऊंगा। बिहारी बेटे, तुम मेरे साथ आओ।'' यह कहते हुए पिशाचनाथ ने बेहोश रामकली की गठरी बनाई और बाहर जाने लगा। रामकली और जमना अब भी अकेली रहने से डर रही थीं। अत: उससे रहने का अनुरोध करने लगीं, परन्तु पिशाच उन्हें समझा-बुझाकर गठरी को कन्धे पर लादे बिहारीसिंह के साथ रवाना हो गया।

चलते-चलते पहली बार पिशाच ने बिहारी की ओर देखा, और बोला- ''अब बोलो, तुम क्या कहना चाहते हो?''

''एक बार को तो मैं भी धोखा खा गया था कि आप सचमुच ही पिशाच हैं।'' बिहारीसिंह बोला- ''क्योंकि आप खुद ही बार-बार यह कह रहे थे कि पिशाचनाथ के भेस में शैतानसिंह यानी आप थे, किन्तु जब आपने यह कहा कि आपने टमाटर दिखाकर असली पिशाच को बेहोश कर दिया, तब मुझे यह जानकर संतोष हुआ कि आप असली पिशाच नहीं बल्कि मेरे शैतानसिंह हैं।''

''हम तुम्हारे बाप हैं बिहारी बेटे!'' पिशाचनाथ जो वास्तव में बिहारीसिंह का पिता शैतानसिंह ही था... बोला- ''ये सब ऐयारी के बड़े गहरे चक्कर हैं। अभी इन्हें समझने में तुम्हें बहुत ही समय लगेगा। ये अच्छा हुआ कि तुम वहां पर कुछ बोले नहीं।''

'लेकिन आप मुझे पूरी बात तो बताइए कि यह चक्कर क्या है?'' बिहारीसिंह बोला- ''अभी तक आप मुझे केवल इतना ही आदेश देते रहे हैं कि यह करो, वह करो, कभी मुझे यह नहीं बताया कि यह सब बखेड़ा हो क्यों रहा है, इस सबका सबब क्या है?''

''जब तुम चाहते ही हो तो सुनो!'' शैतानसिंह ने कहा और रास्ते में ही उसे धीरे-धीरे सब कुछ बताने लगा। वह सब बाद की बातें हम यहां पर लिखना मुनासिव नहीं समझते... हां इतना अवश्य लिख सकते हैं कि न केवल इनके पीछे एक नकाबपोश लगा हुआ है, बल्कि इनकी सारी बातें भी बाखूबी सुन रहा है। हम पाठकों को यह भी बताए देते हैं कि यह नकाबपोश और कोई नहीं वही है, जिसे जमना ने रामकली की खाट के नीचे से निकलते हुए देखा था और जिसके कान में उसी रामकली ने कुछ कहा था जिसकी गठरी बनाए शैतानसिंह और बिहारीसिंह इस समय लिए जा रहे हैं! यह भी हम नहीं जानते कि यह नकाबपोश किस वक्त से इनका पीछा कर रहा है।

 

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