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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''इस बात का तुम्हारी इस नकली मां को क्या पता होगा?'' बिहारी ने कहा- ''अपनी जान में तो उसने ठीक ही किया है... लेकिन किसी तरह तुम्हारे पिता ने यह जान लिया कि उनका कोई दुश्मन ऐयार उन्हीं का भेस बनाकर तुम्हारी मां को यहां से उठाकर ले गया है। तुम्हारे पिता को यह पता नहीं होगा कि उसने न केवल रामकली का अपहरण किया है, बल्कि घर पर एक नकली रामकली भी छोड़ गया है। तभी उन्होंने लिखा है कि तुम घर जाओ, मैं तुम्हारी मां को इनकी कैद से निकालकर घर पहुंचूंगा।''

''यह सब गहरा चक्कर तो मेरी समझ में आ नहीं रहा है, बिहारी।'' जमना बोली- ''इन सब बातों से मुझे बहुत डर लग रहा है। अब तुम ही सोचो कि मुझे क्या करना चाहिए, कहीं दुष्ट ऐयार मेरे पिता का कोई अनिष्ट न कर दें।''

''तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है बेटी।'' अचानक कमरे का दरवाजा खुला और पिशाचनाथ की यह आवाज उन दोनों के कानों में पड़ी- ''मैं आ गया हूं और तुम्हारी मां को भी उन दुष्टों की कैद से छुड़ा लाया हूं। ये छोटे-मोटे ऐयार अपनी चालों से तुम्हारे पिता को परेशान तो कर सकते हैं, मगर कोई अनिष्ट नहीं कर सकते... अब घबराने की कोई बात नहीं है। चिराग जला लो।''

जमना ने जल्दी से उठकर चिराग जलाया। उन्होंने देखा कि वास्तव में उनके सामने पिशाचनाथ और रामकली खड़े थे। रामकली और जमना दौड़कर एक-दूसरे के गले मिल गईं। पिशाच ने आगे बढ़कर बिहारीसिंह के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोला- ''घबराने की कोई बात नहीं है बेटे, हम पहले से जानते हैं कि तुम एक-दूसरे से मुहब्बत करते हो, हम जल्दी ही तुम्हारी शादी कर देंगे।''

कुछ देर इसी तरह की बातें होती रहीं फिर पिशाचनाथ बोला- ''अब जरा उस दुष्ट ऐयारा की खबर लेते हैं जो जबरदस्ती हमारी पत्नी बन बैठी है। ये बात हकीकत है कि यह मैं नहीं जानता था कि उस शैतान ने मेरी रामकली का अपहरण करने के साथ ही अपनी बीवी को रामकली बनाकर रख दिया है। मैं उस समय घर लौट रहा था, जब मैंने उन चारों को एक गठरी लादे मठ की ओर जाते देखा। मैंने तुम्हें (जमना को) भी उनका पीछा करते देख लिया था, किन्तु बोला कुछ नहीं था। मैंने जब छुपकर देखा कि उस गठरी में रामकली और उनमें से एक नकाबपोश मेरी ही सूरत का है, मैं उसी वक्त समझ गया कि यह सब हरकत बेगम बेनजूर के ऐयार शैतानसिंह की है। मैं उसी समय उनके काम में दखल डाल सकता था, किन्तु ये सोचकर मैं चुपचाप देखता रहा कि देखें ये दुष्ट आगे क्या करते हैं? मेरा भेस बनाए जब शैतानसिंह रामकली को मठ के तहखाने में डालकर अकेला ही मठ से आगे जंगल में पहुंचा तो तुम्हारे साथ-साथ खुद मैं भी उसका पीछा कर रहा था। किन्तु जब तुमने (जमना ने ) उसे पुकारा और बात करने की बेवकूफी की तो मुझे लगा कि अगर अब भी मैं चुप रहा तो घपला हो जाएगा.. अत: वहां मजबूर होकर मुझे सामने आना पड़ा और टमाटर दिखाकर उसे बेहोश किया।'' - ''लेकिन एक साधारण-से टमाटर को देखकर वह बेहोश क्यों हो गया?'' जमना ने प्रश्न किया।

''यह सब ऐयारी के झटके हैं।'' पिशाचनाथ गहन मुस्कानके साथ बोला- ''इस बात पर तुम्हें ध्यान देने की जरूरत नहीं है। उस समय तो मैं केवल यही समझा था कि वह केवल मेरी पली रामकली को उठाकर मठ में कैद कर गया है। इस बात का तो मुझे गुमान तक भी नहीं था कि शैतानसिंह अपनी पत्नी को रामकली बनाकर यहां भी छोड़ गया है। अगर मुझे ऐसा पता होता तो मैं तुम्हें ऐसा खत नहीं लिखता। उस वक्त मुझे बहुत-से काम करने थे, जिस

वजह से मैंने तुम्हें घर भेजा। अपना भेस बनाए हुए शैतानसिंह को सुरक्षित जगह पर कैद किया। शैतानसिंह ने ही अपनी बीवी को यहां रामकली बनाकर रखा है.. ताकि मैं और जमना दोनों ही धोखा खा जाए।''

'आखिर इस सब बखेड़े का सबब क्या है?''

'ये सब ऐयारी की गूढ़ बातें हैं जमना, तेरी समझ में नहीं आएंगी।'' पिशाचनाथ ने सबब को भेद बनाते हुए कहा- 'आओ, पहले उस शैतानसिंह की बीवी की खबर लेते हैं।' उसके इस आदेश को पाकर रामकली, बिहारीसिंह और जमना कमरे से बाहर आए। पिशाचनाथ रामकली के कमरे के पास रुका और उन तीनों के कान में फुसफुसाकर बोला- ''तुम सब यहीं ठहरो, मैं अकेला अन्दर जाता हूं... जंगले में से तुम तमाशा देखो।''

सबने उसके आदेश का पालन किया। पिशाचनाथ दरवाजे की ओर बढ़ा, जैसे ही पिशाचनाथ ने दरवाजा धकेला।

''कौन है?'' अन्दर से आवाज आई। - ''मैं हू रामकली।'' पिशाचनाथ ने कहा- ''घबराओ मत, चिराग जलाकर रोशनी करो।''

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