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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

मेरी बचपन से इच्छा है कि मैं किसी तिलिस्म की सैर करूं और अब ऐसा लगता है कि जैसे भगवान मेरी इस इच्छा को पूरा करना ही चाहता है। मैं तुम्हें राक्षसनाथ के तिलिस्म के बारे में एक भेद की बात बताऊंगी... मगर तुम्हें मुझे तिलिस्म की सैर करानी होगी।''

''तुम्हारा तिलिस्म से क्या मतलब?'' रमाकांत ने चौंककर उससे पूछा।

'मतलब है, तभी तो कहती हूं।'' नन्नी बोली- ''अगर वादा करो तो!'' इस तरह नन्नी रमाकांत नामक इस आदमी से यह वादा ले लेती है और फिर इस तरह बताना शुरू करती है- ''तीन दिन पहले बापू ने किसी देवसिंह नाम के आदमी से राक्षसनाथ के तिलिस्म के बारे में बातें की थीं।'' - ''कहां... और क्या बातें हुई थीं?'' रमाकांत उसकी बातों में एकदम दिलचस्पी लेता हुआ बोला।

''यहां पास ही एक छोटा-सा खण्डहर है।'' नन्नी ने कहा- ''बापू ने महात्मा बनकर वहीं धूनी रमाई और देवसिंह तथा अग्निदत्त से बातचीत की। देवसिंह के बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं जानती, मगर अग्निदत्त के बारे में तो तुम भी जानते हो कि वह रानी देवकी का ऐयार है। बापू ने मेरे हाथ से एक थैला मंगवाया था, मैं उस समय नहीं जानती थी थैला कैसा है, लेकिन मैंने छुपकर बापू की बातें सुनीं तो पता लगा कि उसमें रक्तकथा और राक्षसनाथ के तिलिस्म की चाबी थी। वे दोनों चीजें देवसिंह को देना चाहते थे, कहते थे कि तुम ही इस तिलिस्म को तोड़ सकते हो।''

'क्या?'' रमाकांत सुनकर बुरी तरह चौंका- ''रक्तकथा और तिलिस्म की चाबी तुम्हारे बापू के पास?''

'हां।'' नन्नी कहा- ''वे दोनों चीजें वे वहीं कुटिया में देवसिंह को देना चाहते थे, मगर किसी दुश्मन ने अपनी ऐयारी करके वे दोनों चीजें गायब कर दीं। देवसिंह के हाथ भी कुछ नहीं लग सका।'' यहां नन्नी ने वह सारी घटना रमाकांत को मुख्तसर में सुनाई, जिसे पाठक पहले पढ़ आए हैं। उन सब बातों को यहां पर दोहराना व्यर्थ है। अत: केवल यही लिख देते हैं कि उस नरकंकाल और चीते वाली सारी घटना बताकर उसने बता दिया कि रक्तकथा और चाबी गायब कर दी गई। सबकुछ सुनकर रमाकांत ने पूछा- ''क्या तुम उनके बारे में भी बता सकती हो, जिन्होंने वे दोनों चीजे गायब की है?

''हां।'' नन्नी बोली- ''मैं अच्छी तरह जानती हूं कि यह किसकी ऐयारी है और इस समय वे दोनों चीजें कहां और किसके पास हैं।''

''तो मुझे बताओ।'' रमाकांत उतावला होकर बोला- ''मैं तुमसे वादा करता हूं कि तुम्हें तिलिस्म की सैर करा दूंगा।''

''तो सुनो।'' नन्नी धीरे से बोली- ''यह सब ऐयारी मेरे बापू की ही है। वे दोनों चीजें अब भी उनके पास हैं।''

''क्या?'' सुनकर चौंक पड़ा रमाकांत- ''यह तुम कैसी बातें कर रही हो, अभी तो तुम कहती थी कि तुम्हारे बापू उस तिलिस्म के दारोगा हैं और...।''

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