ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 3 देवकांता संतति भाग 3वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''पहले तुम मेरी बात...।'' नन्नी रहस्यमय स्वर में बोली- ''असली बात ये कि अब तक जितनी भी ऐयारी हुई है, वह सब मेरे बापू ने ही की है। यह बात तो सच है कि इस तिलिस्म को देवसिंह ही तोड़ेगा। मगर ये गलत है कि मेरे बापू उस तिलिस्म के दारोगा हैं। मैं नहीं जानती कि वह रक्तकथा और चाबी बापू ने कहां से और किस तरह पा ली है? तुम जानते हो कि मेरे बापू रानी देवकी के ऐयार हैं। यह सारी कार्यवाही भी वे देवकी के लिए ही कर रहे हैं। मैंने देवकी और बापू की बातें सुनी हैं। मेरे बापू ने रक्तकथा में कहीं पढ़ लिया है कि उस तिलिस्म को देवसिंह ही तोड़ सकता है। तुम जानते हो कि देवकी भी उस तिलिस्म और उसकी दौलत पर अपना कब्जा करना चाहती है, वह सारी कार्यवाही देवसिंह को फंसाने के लिए की गई है। आश्रम में जो भी कुछ हुआ, वह देवसिंह को फंसाने के लिए ही किया गया। चीता तो खुद मेरे ही बापू बने थे.. नरकंकाल भी देवकी का ही एक खास ऐयार था। वह भयानक शक्ल का आदमी भी देवकी का ही ऐयार था, जिसने मुझे पकड़ा था। इन सब चक्करों में उलझकर देवसिंह पर ऐसा जाहिर किया गया कि दुश्मन के ऐयार अपनी कार्यवाही करके वे दोनों चीजें ले गए हैं, जबकि वह सब काम मेरे बापू का ही था, उधर देवकी के कुछ ऐयारों ने देवसिंह के घर से उसके अन्धे माता-पिता को गायब कर दिया और अपने दो ऐयारों को उनके घर पर बैठा दिया। आश्रम में मेरे बापू ने देवसिंह के कान में यह कहा कि.. तुम्हारे मां-बाप अन्धे नहीं हैं। बस.. इतनी कार्यवाही करके वहां से बापू ने देवसिंह और अग्निदत्त को विदा कर दिया। अग्निदत्त को यह नहीं मालूम था वह सब कार्यवाही उसी की रानी की है। उसने सोचा कि राक्षसनाथ का तिलिस्म केवल देवसिंह तोड़ सकता है और साथ ही उसे यह जानने की जिज्ञासा भी हुई कि महात्माजी ने उसके कान में क्या कहा था? यही जानने के लिए उसने देवसिंह को ऐसे ढंग से बेहोश किया कि खुद देवसिंह नहीं जान सका कि यह कार्यवाही अग्निदत्त की है.. उसे बेहोश करके अग्निदत्त ने गठरी बनाई और देवकी के कैदखाने में डालकर रानी देवकी से मिला और सारा हाल देवकी को सुनाया। उसके मुंह से सारा हाल सुनकर देवकी मुस्करा उठी, क्योंकि यह सारी कार्यवाही तो उसी की करवाई हुई थी। तब उसने अग्निदत्त से कहा कि तुम इतने बड़े ऐयार होकर भी धोखा खा गए। उसने वहीं मेरे बापू से मिलवाया और बताया कि यह सब ऐयारी उन्हीं की चल रही है। मैं भी वहीं एक स्थान पर छुपी उनकी सारी बातें सुन रही थी। अग्निदत्त मेरे बापू..... यानी महात्मा को वहां देखकर बहुत चकराया था। पास जाते ही अग्निदत्त ने पूछा-- 'महात्माजी, आप यहां?' - ''तुम भी धोखा खा गए अग्निदत्त!' मेरे बापू ने मुस्कराते हुए चेहरे से नकली मूंछ और दाढ़ी हटा लीं। मेरे बापू को देखते ही अग्निदत्त चौक पड़ा और तरद्दुद के साथ बोला- 'अरे, बजरंगलाल, तुम.. तुम और महात्मा... ये सब क्या चक्कर है, मैं कुछ समझा नहीं!' - ''ये बहुत गहरा चक्कर है अग्निदत्त!' देवकी ने कहा- 'इतना गहरा कि खुद भी चक्कर खा गए, सुनो... असली बात ये है कि किसी तरह से हमारे हाथ रक्तकथा और चाबी लग गई है, यह काम खुद बजरंगबली (महात्माजी ) ने किया है...! रक्तकथा में साफ लिखा है कि राक्षसनाथ का तिलिस्म केवल देवसिंह ही तोड़ सकता है.. इसलिए उसे फंसाने के लिए हमने यह सारा खेल रचा है...। यहीं पर देवकी ने सारी बातें अग्निदत्त को बताईं जो मैं तुमसे कह चुकी हूं।'' नन्नी रमाकांत से बोली-- ''यहीं पर पता लगा कि आश्रम पर हुई सारी ऐयारी मेरे बापू ऐयार बजरंगलाल की ही थी, जो केवल देवसिंह को फंसाने के लिए की गई।,,
'लेकिन रानी देवकी और तुम्हारे बापू देवसिंह को किस तरह फंसाना चाहते हैं?'' रमाकांत ने सवाल किया।
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