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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

बारहवाँ बयान


यह एक ऐसा स्थान है, जहां अगर इस समय, यानी रात के अन्तिम पहर में कोई अकेला आ जाए तो डर के कारण दम ही निकल जाए। यहां चम्पानगर में एक ऐसी नदी है, जो काफी पाकीजा मानी जाती है। यह नदी वह स्थान है, जिसे लोग श्मशान घाट कहते हैं अर्थात् यह एक ऐसा स्थान है, जहां मुर्दों को फूंका जाता है। आकाश पर पूर्णमासी का चांद चमक रहा है और उसकी रोशनी में नदी का शांत भाव से बहता हुआ जल व चारों ओर का रेतीला मैदान बड़ा रहस्यमय-सा लग रहा है। दाईं तरफ एक छोटा-सा संगमरमर का चबूतरा है और चबूतरे पर एक शिवलिंग बना हुआ है। रात के इस तीसरे पहर में यहां का वातावरण अत्यन्त ही भयावह लग रहा है। इस कड़ाके की ठंड में ऐसे भयानक स्थान पर भला कौन आने का साहस करेगा? लेकिन फिर भी हम इस समय ऐसे भयानक स्थान पर बेसबब नहीं आए हैं। हम अगर एक नजर से देखें तो हमें दूर-दूर तक कोई प्राणी नजर नहीं आता, लेकिन नहीं... हम शायद धोखा खा रहे हैं, हां वो देखो उस शिवलिंग वाले चबूतरे की ओट में एक आदमी बैठा है। उसने अपना शरीर शायद ठण्ड से बचने के लिए पूरी तरह एक काले कम्बल से ढक रखा है। कुछ देर तक वह यूं ही चुपचाप वैठा रहता है। एकाएक वह अपने स्थान से खड़ा होकर कम्बल अच्छी तरह लपेटता है और फिर बेचैनी से चबूतरे के आसपास चहलकदमी करने लगता है। उसकी यह बेचैनी हमें बताती है कि उसे इस खतरनाक जगह पर किसी का इंतजार है। उसी तरह टहलता हुआ वह एक बार खुद ही बुदबुदा उठता है- ''कितना समय हो गया.. अभी तक नहीं आई, कहीं धोखा तो नहीं दे गई.. नहीं.. नहीं वह मुझसे धोखा नहीं कर सकती, उसे मुझसे.. लेकिन अगर धोखा कर गई.. तो.. तो.. नहीं, इसमें तो उसी का नुकसान है।'' इस किस्म की कुछ बातें बुदबुदाता हुआ वह थोड़ी देर तक टहलता रहता है। कोई बीस सायत बाद अचानक वह एक खटके की आवाज सुनकर चौंक पड़ता है। यह हल्के-से खटके की आवाज शिवलिंग के अन्दर से आई थी, उसने देखा शिवलिंग बिल्कुल इस तरह चार भागों में बंट गया, मानो कोई खिला हुआ बड़ा गेंदे का फूल हो--उस खिले हुए फूल के बीच में से एक कमसिन लड़की बाहर आती है।

हमारे पाठक इस लड़की को अच्छी तरह पहचानते हैं, क्योंकि यह नन्नी है। वह महात्माजी की लड़की नन्नी, जिसे यहां से पहले हमारे पाठक जंगल में बने उस आश्रम में देख चुके हैं, जहां महात्माजी देवसिंह और अग्निदत्त से पहली बार मिले थे। अगर हमारे पाठक भूल गए हों तो सरसरी तौर पर एक बार उस बयान (तीसरा भाग पाँचवा बयान) को पढ़ जाएं। खैर.. इस समय देखते हैं कि नन्नी ने भी अपना सारा बदन उसी तरह के काले कम्बल में छुपा रखा है... वह उस शिवलिंग अथवा फूल में से निकलकर बाहर पैर रखती है।

''बड़ी देर कर दी तुमने, नन्नी... मैं कब से यहां तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूं?'' वह आदमी नन्नी को देखते ही उसकी ओर लपकता हुआ बोला।

''तुम्हें तो कोई रोकने वाला नहीं है रमाकांत, इसीलिए ठीक वक्त पर यहां पहुंच गए।'' नन्नी बोली- ''मुझे तो बापू ने ऐसी जगह फंसाया है, जहां से निकलना बहुत ही मुश्किल होता है। सबकी नजर बचाकर बडी मुश्किल से यहां आई हूं। अगर मुझे यहां कोई देख ले तो।'' - ''खैर, छोड़ इन बातों को... यह बता कि क्या नई खबर है?'' वह आदमी बोला- ''वह चीज मिली या नहीं?''

''अभी तो नहीं मिली, उसे तो बापू हमेशा अपने पास ही रखते हैं।'' नन्नी बोली- ''लेकिन एक और बहुत बड़े रहस्य की बात मैं तुमसे बताना चाहती हूं... मगर उसके पीछे तुमसे मेरी एक शर्त होगी। अगर तुम उसे मानो तो मैं तुम्हें एक बहुत ही भेद की बात बताऊं।''

''क्या बात है?'' रमाकांत ने सवाल किया। - ''पहले मेरी शर्त सुन लो।'' नन्नी ने कहा- ''अगर वह तुम्हें मंजूर होगी तो तभी वह बात बताऊंगी।''

''क्या शर्त है?'

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