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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

चौथा बयान


उनमें से जो सबसे सुन्दर लड़की है, उसका नाम है प्रगति, उसकी आयु सोलह वर्ष है। रंग एकदम गोरा है। आकर्षक नाक-नक्श। मतलब ये कि सबकुछ मिलाकर वह इतनी सुंदर है कि इन्द्र की अप्सरा-सी प्रतीत होती है। मगर उसके मुखड़े पर इस समय उदासी के बादल मंडरा रहे हैं। हालांकि, उसकी सखियां उसका दिल बहलाने की बहुत कोशिश कर रही हैं - किन्तु वह चुपचाप उस झरने के करीब बैठी न जाने क्या सोच रही है। उस सहित वहां लगभग दस सखियां और हैं - उनके सामने झरना बह रहा है और पीछे हरा-भरा बाग है.. जो फल और मेवों के पेड़ों से भरा पड़ा है। दूसरे बयान में हम लिख आए हैं, प्रगति वंदना की लड़की है। वंदना के पिता का नाम अर्जुनसिंह है - मामा का नाम गौरवसिंह है वह इन तीनों से बेहद प्यार करती है - किन्तु यह उसका दुर्भाग्य है कि तीनों में से कोई भी उसके पास नहीं है। केवल वह इतना जानती है कि कम-से-कम दस दिन से उसने तीनों में से अपने किसी भी प्यारे की सूरत नहीं देखी है।

कदाचित् प्रगति की उदासी का यही सबब है।

वह कई दिन से इसी प्रकार उदास रहती है। जहां इस समय वह बैठी हुई है, यह स्थान उसका निवास है। दो पहाड़ियों के बीच बना यह एक बहुत ही रमणीक स्थान है। बाग के उस पार वह विशाल इमारत है, जहां वे रहते हैं। यह स्थान गुरुजी का है। पाठक शायद समझ गए हों कि यहां हमारा संकेत वंदना और गौरव के गुरु से है। वह अधिक समय इसी स्थान पर रहती है। एकाएक दूर से एक आदमी झरने की ओर ही आता दिखाई पड़ा। -''प्रगति!'' एक सखी बोली-''देखो नानकराम आते हैं... शायद तुम्हारे पिता का कोई सन्देश लाए हों।''

प्रगति की विचार-तन्द्रा भंग हुई और उसने मुड़कर उस तरफ देखा। नानक उसके पिता का खास साथी था। इस बार भी जिस दिन से उसके पिता गायब हुए हैं, नानक ही उनका संदेश लेकर आता है। आज भी नानक उसके पास आया और जेब से एक कागज निकालकर प्रगति को देता हुआ बोला--''ये अर्जुन भैया ने आपको लिख भेजा है।''

प्रगति ने उत्सुक होकर कागज लिया और खोलकर पढ़ा, लिखा था- प्रिय बेटी प्रगति,

मैं इस समय काफी गहरे चक्कर में उलझा हुआ हूं, इतना समय भी नहीं मिलता कि मैं तुमसे वहां मिल सकूं। एक काम निकालने में मुझे तुम्हारी बहुत सख्त जरूरत पड़ रही हे। मैं तुम्हारे पास नानक को भेज रहा हूं तुम फौरन इसके साथ चली आओ।

प्रगति अपने पिता की लिखाई को अच्छी तरह पहचानती थी। अत: किसी प्रकार के धोखे का कोई प्रश्न नहीं उठता था। किन्तु फिर भी प्रगति ने उस गुप्त शब्द का प्रयोग किया, जो ऐसे अवसरों के लिए उसके पिता ने उसे बता रखा था। उन्होंने कहा था कि अगर कोई तुम्हारे पास मेरा सन्देश लेकर आए तो उससे 'लाभा' कहना, अगर वह तुम्हें इसके जवाब में 'बोना' कहे तो समझना कि वह व्यक्ति वास्तव में मेरे द्वारा भेजा गया आदमी है.. आर वह जवाब में चुप रहे अथवा कुछ और जवाब दे तो समझना कि वह धोखा है, परन्तु नानक इस परीक्षा में भी उत्तीर्ण साबित हुआ। कुछ देर पश्चात दो घोड़ों पर सवार नानक और प्रगति जंगल में एक तरफ को दौड़े चले जा रहे थे। जहां प्रगति रहती है, उस घाटी और उसमें आने-जाने का मार्ग हम यहां लिखना मुनासिब नहीं समझते, किसी अन्य आवश्यक समय पर हम वह दिलचस्प वर्णन लिखेंगे।

इस समय केवल इतना ही लिख देना पर्याप्त है कि लगभग दस कोस का रास्ता तय करके वे एक निर्जन-से खण्डहर में पहुंच गए। नानक प्रगति को उसी खण्डहर में ले गया ! एक गन्दे से कमरे में वह अपने पिता - यानी अर्जुनसिंह से मिली। दोनों बड़े प्रेम से मिले और कुछ देर गिले-शिकवे होते रहे। नानक चुपचाप एक तरफ खड़ा था। अभी वे असली विषय पर नहीं आ पाए थे कि-

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