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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

कमरे के दरवाजे की ओर से हल्की-सी आहट हुई और जिस व्यक्ति पर प्रगति की दृष्टि पड़ी.. उसे देखकर एक बार को तो प्रगति घबरा गई। उसके जिस्म में भय की ठण्डी-सी लहर दौड़ गई। वह आदमी गजब का पतला और लम्बा था। लम्बी गरदन पर एकदम गोल चेहरा ऐसा प्रतीत होता था मानो किसी बांस पर हंडिया टिका दी गई हो। उसकी आंखें भूरी और छोटी थीं, परन्तु उनमें गजब की चमक थी। होंठ पतले और जबड़े भिंचे हुए थे। उसने अपनी लम्बी-लम्बी उंगलियां आपस में मिलाकर जोर से चटकाईं।

''आओ पिशाचनाथ. तुम हमेशा की तरह बिल्कुल ठीक समय पर आए हो।'' अर्जुनसिंह उससे बोला।

''पिशाच अपने वायदे का पक्का है।'' उसने आगे बढ़ते हुए कहा- ''आपको ये भी याद होगा कि मैंने कहा था कि मैं अधिक देर तक यहां नहीं रुक सकूंगा। प्रगति को मुझे सौंपिए और फिर देखिए कि मैं रक्तकथा किस आसानी से लाकर आपको देता हूं। आपने मुझ पर एक अहसान किया है। मेरी मुसीबत में आप मेरे काम आए हैं। आप जानते हैं कि एक बार जो आदमी पिशाच के काम आ जाता है, उसके लिए जीवन-भर पिशाच गरदन कटाने को तैयार रहता है - आप यकीन मानिए, इस बार मैं रक्तकथा के साथ ही आपसे मिलूंगा।''

'मुझे तुम पर पूरा विश्वास है, पिशाच।'' अर्जुनसिंह ने कहा-''दुनिया के लिए चाहे तुम कितने ही बुरे सही, लेकिन मेरे साथ कभी बुराई नहीं कर सकते। यह विश्वास कम नहीं होता कि मैं अपनी प्रगति जैसी भोली-भाली लड़की को तुम्हारे साथ भेज रहा हूं। मैं ये समझता हूं कि तुम बुराई नहीं कर सकते, मैं ये समझता हूं कि मेरी बेटी तुम्हारी बेटी के बराबर है। तुम इसे किसी प्रकार के खतरे में नहीं फंसने दोगे।''

''आप चिन्ता न करें!'' पिशाच बोला-''उमादत्त को मूर्ख बनाने में मुझे अब अधिक देर नहीं लगेगी। उसने मुझसे वादा किया था कि अगर मैं उसे किसी प्रकार प्रगति ला दूं तो वह मुझे रक्तकथा दे देगा। एक तरीका ये भी हो सकता था कि हम किसी भी लड़की को प्रगति बनाते और उसके सामने ले जाते। किन्तु जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि अभी वह मुझ पर पूर्णतया विश्वास नहीं करता है। अत: वह भली प्रकार चैक करेगा कि जो प्रगति मैं उसे दे रहा हूं वह असली है अथवा नहीं। इस स्थिति में वह जब देखेगा कि मैं उसे असली प्रगति दे रहा हूं तो उमादत्त मुझ पर विश्वास करने लगेगा। बल्कि न केवल मुझे रक्तकथा देगा, बल्कि अपना ऐयार भी स्वीकार करेगा। बस-उस दिन के बाद उमादत्त का तख्ता पलटने में हमें अधिक, दिन नहीं लगेंगे। आपका तो दुश्मन है ही उमादत्त, लेकिन आप जानते हैं कि उसने मेरा भी अपमान किया है और पिशाच सबकुछ सह सकता है, लेकिन  अपमान नहीं! इस अपमान का बदला मुझे लेना है। मेरे दिल को उस दिन शांति मिलेगी, जिस दिन मैं अपने हाथों से उमादत्त की हत्या कर दूंगा। मेरा दिल उसके प्रति घृणा से भरा पड़ा है।''

''हम सच कहते हैं पिशाच.. हमें तुम जैसे एक आदमी की बेहद सख्त जरूरत थी।'' अर्जुनसिंह बोला-''जो ऐयार होने के साथ-साथ नेकनीयत, नेकनाम और वफादार भी हो। हमें तुम्हारी वफादारी पर पूरा-पूरा विश्वास ही नहीं बल्कि फख्र है - बेशक तुम प्रगति को अपने साथ ले जा सकते हो। प्रगति! अर्जुनसिंह प्रगति की ओर उन्मुख  होकर बोला-''तुम इस आदमी के साथ चली जाओ बेटी.. ये हमारे दोस्त हैं.. तुम इन पर पूरा भरोसा कर सकती हो। ये तुम्हें जहां ले जाएं, चली जाना.. जो काम बताएं वह अच्छी तरह करना।''

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