लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 2

देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''आ गए पिशाचनाथ?'' हाथ तापने वालों में से एक बोला। उनकी बातें जमुना बखूबी सुन सकती थी।

उन चारों में से एक ने आग के समीप पहुंच नकाब उलट दिया। जमुना यह देखकर भौचक्की रह गई कि यह आदमी और कोई नहीं, बल्कि खुद उसका पिता पिशाचनाथ था। उसकी समझ में ये नहीं आया कि उसके पिता को अपने ही घर में नकाब डालकर चोरों की भांति जाने की क्या जरूरत थी और वे गठरी में क्या लाए हैं? गठरी का रहस्य भी जमुना के सामने खुलने वाला था क्योंकि बाकी तीन नकाबपोशों में से एक गठरी खोल रहा था। जब गठरी खुली तो जमुना के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।

गठरी में उसकी मां थी - रामकली!

अब जमुना का दिमाग और भी अधिक उलझ गया - उसकी मां को खुद उसके पिता इस प्रकार बेहोश करके गठरी में लाए हैं - भला उसके पिता को इसकी क्या आवश्यकता थी? कहीं यह कोई ऐयार तो नहीं है, जिसने पिशाच की सूरत बना रखी हो?

काफी सोचने के बाद भी जमुना किसी खास निर्णय पर नहीं पहुंच सकी।

'बहुत सतर्कता के साथ काम करना पड़ा।'' पिशाचनाथ की आवाज जमुना ने सुनी, जो मठ के लोगों से कह रहा था-''मुझे डर था कि कहीं जमुना जाग न जाए। अगर जमुना यह सब देख लेती तो सारा किया-धरा चौपट हो जाता।''

'इसका मतलब तुम्हारी बेटी को कुछ पता नहीं लगा?'' उनमें से एक ने पूछा।

''नहीं।'' पिशाचनाथ बोला- ''उसे पता लगना भी नहीं चाहिए - अब इससे (रामकली) उसका पता पूछना तुम्हारा काम है।''

''तुम इसे नीचे छोड़ आओ।'' उस आदमी ने कहा- ''कल तक मैं इसकी जुबान खुलवा लूंगा।'' यह कहते हुए उसने वह मिट्टी का कूंडा, जिसमें हाथ तापने के लिए वह आग जल रही थी, हटा लिया - कूंडे के नीचे की धरती में एक गुप्त रास्ता था। पिशाचनाथ ने एक किवाड़ - सा ऊपर उठाया और फिर धरती में समा गया। उसके तीनों नकाबपोश साथी भी चारों के साथ बैठकर कूंडे की आग में हाथ तापने लगे। गुप्त रास्ता अभी तक खुला हुआ था। जमुना सोचने का प्रयास कर रही थी कि यह सब क्या हो रहा है तथा इसका मतलब यानी यह-सब है क्या? ये कौन लोग हैं, और उसकीं मां को उठाकर यहां क्यों लाए हैं?

'अब देखेंगे कि दुश्मन हमसे कैसे बाजी मारता है।'' हाथ तापने वालों में से एक बोला-''अपनी तरफ से तो उन्होंने भी काफी ऐयारी की थी, लेकिन उस्ताद भी हमेशा दुश्मन की ऐयारी पर ही अपनी ऐयारी चलाते हैं।''

''अब वे लोग बहुत बड़ा धोखा खाएंगे।'' हाथ तापते हुए एक नकाबपोश बोला।

उसी समय पिशाचनाथ बाहर आ गया, रास्ता बन्द करके आग का कूंडा उसी पर रख दिया गया। पिशाचनाथ ने उन सबकी ओर देखकर कहा- ''अब हम चलते हैं, तुम लोग रामकली का ख्याल रखना-''कोई दुश्मन उसे यहां से न निकाल ले जाए।''

इतना कहकर पिशाचनाथ वहां से चल दिया। बाकी आठो आदमी वहां हाथ तापते रह गए। जमुना धीरे-धीरे अपने पिता पिशाचनाथ के पीछे चल दी। कोई आधा कोस दूर निकलने पर जमुना ने उसे पुकारा-''पिताजी.. पिताजी!''

पिशाच जमुना की आवाज सुनकर एकदम चौंककर पलटा-''अरे  जमुना तू यहां?''

''पिताजी---आप अम्मा को कहां छोड़कर आए हैं?'' जमुना ने  पिशाच के समीप जाकर कहा।

''ये तुम्हें क्या जवाब देगा बेटी?'' पिशाच के बोलने से पहले ही वहां तीसरी आवाज गूंजी-''अगर ये पिशाचनाथ होता तो तेरी मां को इस तरह क्यों लेकर जाता? अगर मैं इस समय नहीं आता तो तू बहुत बड़ा धोखा खा जाती -- जमुना। ये पिशाचनाथ नहीं बेगम बेनजूर, का ऐयार है।'' इन शब्दों के साथ ही जो सूरत सामने आई, वह. पिशाचनाथ की ही थी। एक साथ दो पिशाच देखकर जमुना की बुद्धि चकरा गई। अभी वह निर्णय भी नहीं कर पाई थी - उसका असली पिता कौन है - पहला पिशाच बोला-''तुम?

''अब अगर ज्यादा चालाक बनने की कोशिश करोगे तो उससे पहले देख लेना।'' कहने के साथ ही नवागन्तुक पिशाच ने बटुए में से  एक छोटा-सा लाल टमाटर निकाला और अपनी हथेली पर रखकर पहले पिशाच के सामने कर दिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book