लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 1

देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

'हम अभी रास्ते ही में थे कि वर्षा पड़ने लगी, किन्तु फिर भी किसी तरह हम रात के ग्यारह बजते-बजते पीटर पादरी की कोठी पर आ गए। कोठी के बाहर बाकायदा अस्तबल बना हुआ था। पादरी के नौकरों ने हमारा स्वागत इस प्रकार किया, मानो हम उसके जंवाई हों। बाद में पता लगा कि पीटर के पास आने वाले हर व्यक्ति का स्वागत इसी तरह किया जाता है। हमारे घोड़े अस्तबल में बांधे गए। नौकरों ने बताया कि पीटर साहब आज शाम से कहीं बाहर गए हैं - सुबह तक वापस लौटेंगे। -''हमें रात गुजारने के लिए एक कमरा और छ: बिस्तर दे दिए गए। -''पादरी के इन्तजार में हमने वहीं रात गुजारने का निश्चय किया। -''पादरी के विशेष सहयोगी को जाकर स्वयं मैंने आपकी बीमारी के विषय में विस्तारपूर्वक बताया। उसने कहा- 'इसका इलाज तो पादरी साहब स्वयं आकर करेंगे - मैं तो आपको इस समय यह एक चाकू दे सकता हूं।' उसने मुझे एक चाकू देते हुए कहा- 'यह चाकू मरीज की जेब में रख देना और उसे आराम से सुला देना - अगर ये चाकू मरीज की जेब में रहा तो - उसे कोई स्वप्न नहीं दीखेगा।'

''मुझे उसकी बात बड़ी अजीब-सी लगी। किन्तु मरता क्या न करता! इस समय मुझे एक जादू-टोने जैसी बात पर ही विश्बास करना पड़ा और वह चाकू मैंने आपको दिया। आपने भी आराम से सोने के लालच में चाकू अपनी जेब में रख लिया।'' विकास ने विराम लगा दिया।

''लेकिन उस चाकू से कोई प्रभाव नहीं पड़ा।'' विजय आगे बोला-''चाकू मेरी जेब मैं मौजूद था, किन्तु फिर भी मुझे वह स्वप्न चमका। पुन: वही खण्डहर.. बुर्ज - कांता व देव-देव की पुकार ---- और इस बार मुझे झंझोड़कर जगाया गया तो मेरी स्थिति ठीक वैसी थी जैसी दूसरी बार सपना देखने के बाद थी। यानी इस बार अपने मस्तिष्क पर मेरा सन्तुलन नहीं था। इस बार चित्र बनाने की धुन भी मुझ पर सवार नहीं हुई - इस बार तो मेरे दिमाग में जैसे बस कांता की आवाज गूंज रही थी। मुझे लग रहा था कि कांता मुझे पुकार रही है - वह खतरे में है - अगर. उसे कुछ हो गया तो मैं भी जीवित नहीं रहूंगा - हर हालत में मुझे उसे बचाना चाहिए और मैं उछलकर खड़ा हो गया। हालांकि मैं नहीं चाहता था कि अपने डैडी, रैना, अजय, रघुनाथ और विकास का विरोध करूं, किन्तु क्योंकि मेरा मस्तिष्क मेरे नियंत्रण में नहीं रहा था - मुझे बस ऐसा लग रहा था कि कांता मुझे पुकार रही है और उसके पास मुझे जाना है। इसके बाद जो भी मेरे मार्ग में आया उसे मैंने नहीं बख्शा - उस कमरे से बाहर निकलने के लिए मैंने विकास, रैना, अजय, रघुनाथ और अपने डैडी तक - पर हमले किए। पांचों ही मुझे रोकना चाहते थे परन्तु किसी तरह मैं कमरे से बाहर आ गया।

''तेजी से भागता हुआ अस्तबल में पहुंचा - वहां एक मशाल जल रही थी। वह मशाल उतारी और जो भी घोड़ा मिला उसे लेकर जंगल में भाग निकला। मैं जानता था कि मेरे पीछे पांचों शुभचिन्तक आ रहे हैं।' वे चीख-चीखकर मुझे रुक जाने के लिए कह रहे थे - मेरे दिल में इच्छा भी थी कि मैं रुक जाऊं, किन्तु रुक नहीं पा रहा था - कांता जो मुझे बुला रही थी।

'अनिच्छापूर्वक मैं भागता ही जा रहा था।

'एक स्थान पर मेरे घोड़े के दोनों अगले पैर दलदल में घुस गए और मैं हवा में कलाबाजियां खाता हुआ दलदल के उस पार आ गिरा। कुछ ही देर बाद वहां विकास पहुंच गया। मेरे और इसके बीच युद्ध छिड़ गया।''

''और इस युद्ध में आपने पादरी के सहयोगी द्वारा दिए गए उस चाकू का प्रयोग मुझ पर किया।'' मुस्कराते हुए विकास ने अपनी कलाई पर बंधी हुई पट्टी की ओर संकेत किया- ''पादरी का चाकू किसी अन्य काम नहीं आ सका तो आपने उसे इस काम में प्रयुक्त किया।''

''इसके बाद, इन पांचों ने मिलकर मुझे वहां पुन: बेहोश कर दिया।'' विजय ने कहा।

''वह सब मैं देख रहा था।'' गौरव ने कहा-''जब मैंने देखा कि आप बेहोश हो चुके हैं और ये लोग आपको पुन: उठाकर ले जाएंगे तो मैं प्रकट हो गया और वहां जमकर विकास से युद्ध हुआ।'' कहता हुआ मुस्कराया गौरव।

''खैर।'' विजय बोला-''अपनी रामकथा तो तुम्हें सुना ही दी - अब जरा तुम अपनी सत्यनारायण की कथा छेड़ दो। तुम किस खेत की मूली हो? तुम मेरे साथ घटी इन घटनाओं का रहस्य कहां तक खोल सकते हो?''

''ये तो हम आपको बता ही चुके हैं कि हम आपकी बेटी और बेटे हैं।'' अभी तक बिल्कुल शान्तिपूर्ण ढंग से विजय की कहानी सुनने वाली वन्दना बोली-''सबसे पहले तो हमें आपको यही विश्वास दिलाना होगा कि हम ठीक कह रहे हैं।''

''चाहे किसी भी भाव मिले, लेकिन दिलवाना अवश्य होगा।'' विजय बोला--''क्योंकि हम खुद नहीं जानते कि इतने लम्बे-लम्बे हमारे बेटे कैसे पैदा हो गए - साथ ही यह भी बताना होगा कि परिवार नियोजन के हिसाब से आप दो ही मेरी सन्तान हो या पूरी क्रिकेट टीम है?''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book