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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

'मगर हम उसे ढूंढ़ने कहां - और वह पहले ही गौरवसिंह के पास पहुंच गया तो...?''

''उसका पता मैं तुम्हें बता सकती हूं।'' अचानक वहां मधुर नारी स्वर गूंजा- ''अगर तुम खुद को बचाना चाहते हो तो मैं, तुम्हारी मदद जरूर करूंगी। मैं तुम्हें ये भी बता सकती हूं कि वह कौन था और इस समय वह कहां है?''

तीनों ने आश्चर्य के साथ पलटकर दरवाजे की ओर देखा। वहां एक सुन्दर-सी लड़की खड़ी थी। उस पर दृष्टि पड़ते ही वे चारों एकदम उछलकर खड़े हो गए और एक साथ तीनों के मुख से निकला-- ''नसीम बानो !''

'बोलो।'' मुस्कराती नसीम बानो आगे बढ़ती हुई बोली- ''क्या आप लोग इस मामले में मेरी मदद लेने के लिए तैयार हैं?''

''परन्तु तुम हमारी मदद करने के लिए क्यों तैयार हो?'' भीमसिंह उसे घूरता हुआ बोला- ''तुम तो!''

'उस बात को छोड़ो भीमसिंह, मेरी बात का जवाब दो।'' नसीम बानो कठोर स्वर में बोली- ''अगर तुम मेरी मदद प्राप्त करना चाहते हो तो मैं तुम्हें उसका नाम बता सकती हूं अगर नहीं चाहते तो मैं चलती हूं मगर यह जरूर बताकर जाऊंगी कि आज की रात समाप्त होने के बाद जैसे ही सुबह होगी, गौरवसिंह को सारे रहस्य का पता लग जाएगा।''

'लेकिन, हम यह नहीं समझे कि तुम हमारी मदद क्यों करना चाहती हो?'' गुलशन ने पूछा।

'क्योंकि तुम्हारे पास रक्तकथा है।'' नसीम बानो ने जैसे धमाका किया- ''तुम्हारी जान बचाने की कीमत रक्तकथा मांगती हूं। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि रक्तकथा के विषय में तुम अन्जान बनने का नाटक करोगे। कहोगे कि तुम्हारे पास रक्तकथा नहीं है, बल्कि रक्तकथा वस्तु क्या है - तुम् नहीं जानते, लेकिन मेरे सामने ये धोखा नहीं चलेगा - मैं ये अच्छी तरह जानती हूं कि दो मास पहले तुम पिशाचनाथ के नौकर थे - बड़ी कठिनता से पिशाचनाथ ने वह रक्तकथा प्राप्त की थी - उसने रक्तकथा को अपने घर के छोटे-से तिलिस्म में रखा। पिशाच अपने काम के सिलसिले में बाहर जाता रहता था और तुम उसके नौकर होने के कारण घर में रहते थे, ये मैं नहीं जानती कि तुम किस प्रकार से गौरवसिंह से मिल गए। उससे मिलकर तुमने अपने मालिक यानी पिशाच से नमकहरामी की और वह रक्तकथा उस छोटे-से तिलिस्म में से निकाल ली। पिशाच के घर में रहने के कारण तुम उस तिलिस्म के रहस्यों से परिचित थे। अत: तुम्हारे लिए रक्तकथा प्राप्त करना अधिक कठिन नहीं था, रक्तकथा प्राप्त करने के बाद तुमने गौरवसिंह को...।''

''नहीं.. नहीं!'' भीमसिंह एकदम चीख पड़ा-''आगे कुछ मत कहना नसीम बानो, हम.. हम तबाह हो जाएंगे।''

''तो फिर बोलो।'' अपनी सफलता पर मुस्कराकर बोली नसीम बानो- ''रक्तकथा तुमने कहां रखी है और उसे मुझे दोगे या नहीं?''

''बिलकुल नहीं।'' एक चौथी रहस्यमय आवाज कमरे में गंजी- ''तुम तीनों हमारी बात कान खोलकर सुन लो - रक्तकथा इसे बिलकुल मत सौंप देना, वर्ना तुम इसी समय मर जाओगे। वह नकाबपोश यह नसीम बानो ही है - जिसने तुम्हें बन्दर दिखाया था और कुछ ही देर पहले तुमसे अलफांसे को छीनकर ले गई है। अब इस रूप में यह तुमसे रक्तकथा भी प्राप्त करना चाहती है।''

''कौन हो तुम - क्या बकते हो?'' नसीम बानो एकदम घबराकर चारों ओर देखती हुई बोली।

० ० ०

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