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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

अठाहरवाँ बयान

आइए जरा उनका हाल देखते हैं, जो संख्या में चार थे, परन्तु अलफांसे का नाम सुनते ही उनमें से एक ने अपने ही साथी की गरदन कलम कर दी थी। अलफांसे को प्राप्त करने के लिए वे आपस में लड़ने लगे, किन्तु तभी एक नकाबपोश आया और एक बन्दर दिखाकर उन्हें भयभीत कर दिया। फिर बेहोशी का चूर्ण सुंघाकर उन्हें बेहोश कर दिया।

उन तीनों को थोड़े से अन्तराल से अभी-अभी होश आया है।

वे कमरे में इधर-उधर देखने लगे, मगर उनके अतिरिक्त कमरा सर्वथा रिक्त था। मोमबत्ती अब भी अपने स्थान पर रखी जल रही थी। अब भी वह उतना ही प्रकाश उगल रही थी, जितना कि उनके बेहोश होने से पूर्व था। हां - वह छोटी अवश्य हो गई। किसी अन्य को वहां न पाकर तीनों की दृष्टि एक-दूसरे पर टिक गई।

फिर उनकी नजर अपने साथी की लाश पर पड़ी, जिसका धड़ और सिर भिन्न दिशाओं में पड़ा था।

''अब सोच क्या रहे हो, मूर्खों?'' गुलशन अपने बाकी दो साथियों से बोला- ''अपनी मूर्खता से तुमने अलफांसे को खो दिया।''

''तुम ही कौन से बड़े बुद्धिमान हो।'' उनमें से एक बोला- ''तुम भी तो अलफांसे का नाम सुनकर पागल हो गए थे। जब नाहरसिंह ने बेनीसिंह का सर कलम किया, उस समय अलफांसे को प्राप्त करने के लिए नाहरसिंह पर तलवार तानने वाले भी तुम्हीं थे।''

''लेकिन तुमने भी तो उसी समय मुझ पर तलवार खींच ली थी।'' गुलशन ने कहा।

''और क्या तुम मुझे मूर्ख समझते हो?'' वह व्यक्ति बोला- ''तुम्हारी चाल मैं अच्छी तरह समझता था। मेरा नाम भीमसिंह है। यह जानते ही कि वह आदमी अलफांसे है, तुमने सोचा कि उसे तुम ही गिरफ्तार करो और गौरवसिंह तुम्हें अपना सेनानायक बना ले। जो विचार तुम्हारे दिमाग में आ सकता है, मेरे दिमाग में वह पहले ही आ जाता है।''

'इसका मतलब तुम भी उसे गिरफ्तार करके अकेले ही गौरवसिंह के पास ले जाना चाहते थे?'' गुलशन ने कहा।

''अब छोड़ो भी इन बातों को।'' एकाएक नाहरसिंह उनके बीच में बोला- ''असल बात तो ये है कि हम तीनों को लालच ने अंधा कर दिया था। हम तीनों के दिमाग में लालच एक ही था। मैं तो इतना अंधा हो गया कि अपने ही दोस्त बेनीसिंह को मार डाला। उधर उस समय तुम दोनों की बुद्धि भी कुण्ठित हो गई थी। अलफांसे को सामने पाकर ही हम तीनों लालच में इतने अंधे हो गए कि अपनी दोस्ती, अपना भाईचारा सभी कुछ भूल गए और एक-दूसरे की जान के ग्राहक बन गए। हमने पहली मूर्खता ये की कि हम एक-दूसरे से ही लड़ने लगे। हम तीनों ही की मूर्खता का लाभ उठाकर वह नकाबपोश अलफांसे को ले गया। इस समय हम बेकार की बातों में समय गंवाकर दूसरी भूल कर रहे हैं। जरा बेहोश होने से पहले की घटना याद करो - क्या इस समय हम बहुत बड़े खतरे में नहीं हैं?''

''नाहरसिंह ठीक कहता हे।'' भीमसिंह ने समर्थन किया- ''हम पिछली घटना में बराबर के गुनहगार हैं। हमें वह घटना भूल जानी चाहिए, अगर हममें फूट रही तो वह नकाबपोश हम तीनों को ही समाप्त कर देगा। हमारे हित में यही है कि हम संगठित हो जाएं और उस नकाबपोश का पता लगाएं।''

''मुझे तो अभी तक वह बंदर याद आ रहा है, जो उसने हमें दिखाया था।'' गुलशन ने कहा--''लेकिन मुझे लगता है कि वह अव हमें नहीं छोड़ेगा।''

'गुलशन ठीक कहता है।'' भीमसिंह बोला- ''अगर उसने खण्डहर का राज खोल दिया तो हम तबाह हो जाएंगे।''

'हमें इस तरह घबराना नहीं है।'' नाहरसिंह बोला- ''अगर हम इसी तरह हाथ-पर-हाथ रखकर बातें करते रहे तो निश्चय ही वह हमें बरबाद कर देगा। हमें पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि वह कौन था। उसे खण्डहर का रहस्य क्यों जान पड़ा और हमारे खिलाफ क्या करना चाहता है। यह सब पता लगाकर हमें कोशिश करनी चाहिए कि वह किसी प्रकार गौरवसिंह तक न पहुंच सके - हम तीन हैं और वह अकेला ! इस बार हमें उससे डरना नहीं चाहिए बल्कि उसे समाप्त कर देना चाहिए, ताकि हम बर्बाद होने से बच जाएं।''

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