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ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 1

देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

और यह चीखते ही मैंने कूची फेंक दी। एक झटके से मैं खड़ा हो गया।

मेरी ये हालत देखकर वे चारों ओर भी बुरी तरह चौंक पड़े। पागल-सा होकर मैं हॉल के दरवाजे की तरफ भागा। कांता की पुकार बराबर 'देव.. देव' करके मेरे कानों में गूंज रही थी। मैं समझ रहा था कि मैं जो कुछ कर रहा हूं गलत कर रहा हूं किन्तु संभल नहीं पा रहा था।

मुझे अच्छी तरह याद है - मैं भागकर हॉल से बाहर निकल जाना

चाहता था कि विकास मेरे सामने अड़ गया, बोला- ''क्या बात है गुरु - कहां जाते हो?''

''कांता.. अपनी कांता के पास.. वो मुझे बुला रही है, विकास रोको मत मुझे.. जाने दो।''  - 'आपका दिमाग खराब हो गया है, गुरु।'' चीख पड़ा विकास- ''आप कहीं नहीं जाएंगे।''

''तुम कौन होते हो मुझे रोकने वाले!'' मुझे क्रोध आ गया- ''मेरे और कांता के बीच जो भी आएगा, मैं जान से मार दूंगा। हट जाओ सामने से वर्ना लाश का भी पता नहीं लगेगा।'' बुरी तरह खूनी होकर चीख रहा था मैं। कमाल ये है कि मैं अच्छी तरह ये महसूस कर रहा था कि मैं जो कुछ कह रहा हूं गलत है। विकास मुझे प्यार करता है। वह मेरी भलाई के लिए मुझे रोक रहा है। मुझे उससे ऐसे शब्द नहीं कहने चाहिए, किन्तु इन सब विचारों के मस्तिष्क में होते हुए भी मैं पूरी तरह विकास का दुश्मन बना हुआ था।

''मुझे मारकर जा सकते हो गुरु, लेकिन मेरे जीते-जी आप इस तरह अपने होश गंवाकर कहीं नहीं जा सकते।''

'तो तुम्हें मारकर ही जाऊंगा - लेकिन कांता के पास जरूर जाऊंगा।'' मैं अपनी उसी स्थिति में गुर्रा उठा।

''भैया।'' चीख पड़ी रैना- ''ये आप क्या कह रहे हैं?''

'मैं ठीक कह रहा हूं रैना।'' मैं गरजा- ''या तो विकास को मेरे सामने से हटा दो, मुझे अगर कोई भी कांता के पास जाने से रोकेगा तो मैं उसकी लाश पर से गुजरकर अपनी कांता के पास चला जाऊंगा।'' मैं अपने होशो-हवास में था भी और नहीं भी।

 ''कांता-कांता!'' पागल-सा होकर चीख पड़ा रघुनाथ- ''अबे बताता क्यों नहीं कांता कौन है?''

जी में आया कि कह दूं - विकास का केक ले जाने वाली भैंस है। किन्तु कहा ये कि ---- 'कांता मेरी जान है - मेरा दिल है - मेरी जिन्दगी है। मेरा सबकुछ है - वह मुझे बुला रही है - मुझे जाने दो, मेरी जिन्दगी, मेरी कांता खतरे में है।''

 'मैं नहीं हटूंगा, गुरु।'' विकास तो जिद्दी है ना, अड़ गया- ''नहीं जाने दूंगा।''

''ले, तो मर।'' कहकर मैंने उसपर न चाहते हुए भी जम्प लगा दी। इससे पहले कि मैं विकास तक पहुंच पाता, पीछे से किसी ने मेरे सिर पर चोट मारी - चोट ब्लैक ब्वाय ने मारी थी। मैं दर्द से तड़प उठा - लहराया।

मेरे मुंह से निकला- ''कांता।''

और मैं बेहोश हो गया। उसके बाद मुझे पता नहीं रहा कि मेरे साथ क्या गुजरी।

० ० ०

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