लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 1

देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

अचानक मुझे एकदम तीव्र झटका लगता है। तुरन्त मेरी आंखें खुल जाती हैं। आखें खुलते ही -- एक बार पुन: मेरे मुंह से निकलता है- 'कांता', मगर-उसी समय मैं चौंक पड़ा। मेरी आखें खुल चुकी थीं। मैं रघुनाथ की कोठी के उसी हॉल में अपने बिस्तर पर था। अब न कोई खण्डहर है. न धमाके - न दुश्मन हैं, न दोस्त। कोई बुर्ज नहीं है - मेरी आंखों के सामने वही हॉल-कमरा था। दीवार पर टिक...टिक करता हुआ घण्टा। कमरे में भरपूर प्रकाश। विकास, रैना, ब्लैक व्वॉय, रघुनाथ मुझ पर झुके हुए थे। सबके चेहरों पर आश्चर्य। सबने मुझे बुरी तरह झंझोड़कर जगाया था। मेरा चेहरा ही नहीं बल्कि सारा जिस्म पसीने से लथपथ हो चुका था। पागलों की तरह मैं अपने ऊपर झुके चारों को देख रहा था।

''क्या बात है, गुरु?'' विकास ने पूछा।

मैं हल्के से चौंका, एक बार पुन: उसकी सूरत देखी, बोला- ''क्या बात है?''

''कोई सपना देख रहे थे, विजय भैया?'' रैना ने मुझसे पूछा। -'सपना ! कहते-कहते मेरी आंखों के सामने सारा सपना घूम जाता है- ''हां, शायद सपना ही देख रहा था।''

'गुरु !'' बिस्तर पर मेरे समीप ही बैठता हुआ विकास बोला- ''आज आपके सपने ने भांडा फोड़ दिया।''

कैसा भांडा?'' मैंने पूछा।

'ये कांता कौन है?'' शरारत के साथ आंख मारते हुए पूछा विकास ने।

सुनते ही मेरे मस्तिष्क में यह नाम पुन: हथौड़े की भांति चोट करने लगा। मुझे लगा जैसे मेरे दिमाग से कांता की चीख टकरा रही है.. देव.. देव... लेकिन मैंने स्वयं को संभाल लिया, मुस्कराने का प्रयास करता हुआ बोला-''कौन कांता?''

''यही तो मैं भी पूछ रहा हूं गुरु, कांता कौन है...?'' विकास शरारत पर उतर आया था-''जरूर कोई हमारी आंटी होगी।''

मैं अभी कुछ कहने ही वाला या कि रघुनाथ बोला-''विजय, तुम सपने में कांता.. कांता चीख रहे थे।''

''आज तो तुम्हारे ब्रह्मचर्य का भांडा फूट ही गया, गुरु।'' विकास पूरे मौके का लाभ उठाता हुआ मुझे खींच रहा था-- ''हमें मालूम हो चुका है कि हमारे अंकल कांता नामक किसी आंटी को दिल दे बैठे हैं। लेकिन कमाल है कि हमने अपनी आंटी को कभी नहीं देखा... हमें तो गुरु लड़कियों से दूर रहने की शिक्षा देते हैं, लेकिन खुद आंटी के इतने दीवाने हैं कि सपने में भी आंटी का नाम ले-लेकर चीखते हैं.. या तो बता दो गुरु कि हमारी कांता आटी कौन हैं, वरना ठाकुर नाना से भी कह दूंगा और आशा आंटी से भी.. हम सब जासूसी करके कांता आंटी का पता लगा लेंगे और जबरदस्ती आपकी गांठ उनके साथ बांध देंगे, लेकिन एक बात याद रखना कि आशा आंटी अवश्य ही आत्महत्या कर लेंगी।''

''बेटा दिलजले।'' मैं भी स्वयं को सम्भालकर बोला-''कोई कांता-वांता नहीं है.. सब बकवास है।''

'है तो सही, भैया। अब अधिक दिन तक आप हमसे छुपा नहीं सकोगे।'' अब रैना ने भी चुटकी ली।

''रैना बहन - तुम भी... !''

रैना बहन ही क्या?'' रघुनाथ ने कहा-''अब हम सबको ही यकीन हो गया है कि कोई कांता नाम की लड़की है जरूर।''

''अबे तुला राशि।'' मैंने कहा- ''अबे साले रैना हमारी बहन है, तुम्हारी नहीं... तुम भी बहन कहोगे तो पत्नी कहाँ से लाओगे?''

और इस बात पर सभी ने ठहाका लगा दिया।

''विजय भैया.. !'' अपनी हंसी पर शीघ्र ही काबू पाकर रैना ने कहा- ''अब तो मुझे भी मेरी भाभी से एक बार मिला दो।''

''आप लोग शायद मेरे सपने के बारे में सुनना चाहते हैं।'' मैंने कहा।

'नहीं गुरु...केवल आंटी के बारे में।'' विकास की शरारत बढ़ती जा रही थी।

''प्यारे दिलजले.. सपने में ही तो कांता का रहस्य छुपा है।'' मैंने भी बात को मजाक में ही उड़ाते हुए कहा- ''हमने देखा कि एक भैंस है। हमारी उससे बातचीत होती है तो वह अपना नाम कांता बताती है। बात दरअसल यूं शुरू होती है, चेले प्यारे कि तुम्हारी बर्थ-डे पार्टी चल रही है और बहां वह कांता नामक भैंस घुस आती है.. देखते क्या हैं

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book