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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

सोलहवाँ बयान

हम नहीं जानते कि उस कागज में क्या लिखा था, जो बालिश्त-भर के मोखले में से उस कमसिन और नाजुक स्त्री ने नकली वन्दना अर्थात् शीलारानी को दिया था। वन्दना ने रात किस प्रकार व्यतीत की, यह भी हम नहीं जानते, क्योंकि इस बीच हम किन्हीं अन्य आवश्यक कार्यों में व्यस्त रहे। हम इस समय, जबकि अगला दिन शुरू हो चुका है, बेगम बेनजूर के दरबार में उपस्थित है। बेनजूर का दरबार लगा हुआ है। बेगम बेनजूर अपने सिंहासन पर उपस्थित है। उसके भाल पर हीरे से जड़ा एक मुकुट शोभा दे रहा है। सुन्दर जिस्म पर चमचमाता लिबास है। उसके सामने उसके पिता महादेवसिंह और माधोसिंह की बगल में ही एक नकाबपोश खड़ा हुआ है।

''महारानी - आज मैं भरे दरबार में आपसे पूछना चाहता हूं कि महारानी बेनजूर कहां गई हैं?''

''महारानी हमें बताकर नहीं गई कि वे कहां जा रही हैं।''

''आप झूठ बोलती हैं।'' क्रोध में चीख पड़ता है महादेव-- ''हम जानते हैं कि महारानी कहीं नहीं गई हैं। आपने उन्हें कैद कर रखा है। आप दुष्टा और पापिन हैं। सारी प्रजा को आप धोखा दे रही हैं।''

''ये आप क्या कह रहे हैं पिताजी?'' कलावती ने कहा।

''हमें पिताजी मत कहो दुष्टा लड़की।'' महादेवसिंह गुर्रा उठता है--''तुम महारानी के सिंहासन पर विराजमान हो, इसलिए मैं अभी तक तुमसे सम्मान के साथ बातें कर रहा हूं। लेकिन आज मैं तुम्हारा भांडा फोड़कर ही रहूंगा। भरे दरबार में बताऊंगा कि असली महारानी को तुमने कैद कर रखा है और तुम अपनी चालबाजी से हमको मूर्ख बना रही हो।'' इतना कहने के बाद महादेवसिंह जोर से दरबार में उपस्थित आदमियों को सम्बोधित करता है-''साथियों, मेरी लड़की कलावती अधर्मी, दुष्टा और पापिन है। असली महारानी को इसने कैद कर रखा है और हमसे झूठ बोलती है कि वे काम से गई हैं - इसे मार डालना हमारा धर्म है।''

''ये गलत है, हमने महारानी को कैद नहीं कर रखा है।'' कलावती चीखकर अपने पिता का विरोध करती है-''वे वास्तव में बाहर गई हैं और यहां का कार्य-भार हमें सौंप गई हैं। पता नहीं किस लालच से हमारे पिता हमारे खिलाफ षड्यंत्र रचना चाहते हैं।''

''लड़की! जुबान को लगाम दे दुष्टा।'' महादेवसिंह चीख पड़ता है--''हम आज अपनी तलवार से तेरी गरदन काटकर ही रहेंगे।'' कहने के साथ ही वह एक झटके से समीप ही खड़े नकाबपोश का नकाब उतार देते हैं-''देखो - कौन है ये?''

''महारानी. ..महारानी.. महारानी!'' दरबार में उपस्थित हर व्यक्ति आश्चर्य से उछल पड़ता है। स्वयं सिंहासन पर बैठी कलावती की आंखों में गहन आश्चर्य के भाव उभर आते हैं। उसके होंठ बुदबुदा उठते हैं-''बेगम बेनजूर।''

और...वन्दना के मेकअप में शीला चुपचाप खड़ी है। पता नहीं उसके हृदय में क्या है!

''बेगम बेनजूर आप.. आप तो बाहर गई थीं?'' कलावती कह उठती है।

वन्दना अभी कुछ कह भी नहीं पाई थी कि-

''बद्कार लड़की!'' कहते हुए क्रोध में महादेवसिंह म्यान से तलवार खींचकर सिंहासन की ओर बढ़ता है-''तू सोचती थी कि तेरे पाप का भांडा फोड़ने वाला इस रियासत में कोई नहीं है। हम खुद अपने हाथ से तुझे तेरे पाप की सजा देंगे।'' दरबार में उपस्थित सभी व्यक्तियों को ये पता लग चुका है कि वास्तब में कलावती धोखेबाज है, अत: कोई उसकी रक्षा हेतु महादेवसिंह के सामने नहीं आता।

पल-भर में महादेवसिंह की तलवार कलावती की गरदन का सम्बन्ध धड़ से अलग कर देती है।

महादेवसिंह की तलवार खून से रंग जाती है - किन्तु उसके चेहरे पर हल्की-सी शिकन भी नहीं आती। मुकुट उठाकर वह वन्दना (शीला) के सिर पर रख देता है और जोर से चीखता है-''बेगम बेनजूर!''

''जिन्दाबाद!'' दरबार में उपस्थित सभी व्यक्तियों का समूह कह उठता है। इसके बाद इन्हीं नारों से सारा दरबार गूंज उठता है। बन्दना  (शीला) चुपचाप-सी तरद्दुद (सोच) में फंसी है।

उसी समय यहां एक नया नकावपोश दाखिल होता है।

० ० ०

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