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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

समीप आकर हम यहां की भौगोलिक स्थिति भली प्रकार से देखते हैं, हम देखते हैं---यह खण्डहर तालाब के ठीक बीच में है। उसके चारों ओर एक-बीघे लम्बा तालाब है। तालाब में एकदम बिल्लौर (पारदर्शी श्वेत पत्थर) की भांति स्वच्छ जल भरा हुआ है। तालाब अधिक गहरा नहीं है, अत: धरती साफ नजर आ रही है। तालाब के चारो ओर चार बड़े बड़े हंस बैठे हैं, पहली बार में सबको यही भ्रम होता है कि ये हंस असली हैं, किन्तु वास्तविकता ये है कि वे सब संगमरमर के बने नकली हंस हैं। तालाब में उतरने के लिए चारों ओर सीढ़ियां हैं। सीढ़ियों के दोंनों तरफ तीतर, बटेर, मोर इत्यादि अनेक परिन्दे बने हुए हैं। पहली नजर में वे सभी असली होने का भ्रम पैदा करते हैं।

खण्डहर के चारों ओर कुल मिलाकर चार बीघे तक यह तालाब है, अत: पाठक यह तो समझ ही गए होंगे कि अगर कोई उस खण्डहर तक पहुंचना चाहे तो इस तालाब से गुजरना हर हालत में आवश्यक है। तालाब में उतरने के लिए चारों ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं। अब हम तालाब के बीच में स्थित उस खण्डहर का वर्णन करना भी अपना कर्त्तव्य समझते हैं।

यह खण्डहर करीब तीस बीघे में फैला हुआ है। दीवारें टूट-टूटकर विखर चुकी हैं। चारों अनेक टूटी-फूटी दीवारें खड़ी हैं। दीवारों पर जंगली घास और झाड़-झंखाड़ खड़े हैं। खैर! इस खण्डहर का विस्तृत वर्णन भी हम किसी खास स्थान पर करेंगे। फिलहाल केवल इतना ही समझ लेना आवश्यक है कि इस खण्डहर के ठीक बीच में एक बुर्ज है -- सबसे ऊंचा बुर्ज। बुर्ज इतना ऊंचा है कि गगन को स्पर्श करता-सा प्रतीत होता है। उधर सूर्यदेव पहाड़ के पीछे से झांककर देखने लगते हैं। उनका प्रकाश बुर्ज के शीर्ष पर पड़ रहा है।

'ये तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने बड़ी कारीगरी से बनवाया हो।'' हुचांग चारों ओर ध्यान देकर मुस्कराकर बोला।

'क्यों न खण्डहर में चलकर देखें?'' माइक ने कहा-''लगता है कि कोई अद्भुत वस्तु देखने में आएगी।''

माइक की इस बात को सबने पसन्द किया - सबसे आगे जेम्स बांड बढ़ रहा था। सीढ़ियों के करीब पहुंचकर न जाने उसके दिमाग में क्या आया कि एकाएक वह रुककर बोला--''तुम सब रुको --- जव मैं तालाब में पहुंच जाऊं, तब आना।''

'तुम्हारे दिमाग का बैलेंस बिगड़ गया है बे अंग्रेज की दुम।'' बागारोफ बोला-''तुम्हें हर जगह जासूसी सूझती है।''

परन्तु उसकी बात पर बिना किसी प्रकार का विशेष ध्यान दिए बाण्ड सीढ़ियां उतरने लगा। पहिली-दूसरी--तीसरी और चौथी सीढ़ी उतरते ही जैसे कयामत आ गई। समीप ही बना हंस न केवल बड़ी जोर से हरकत में आया, बल्कि वह जेम्स बांड पर झपट पड़ा।

वह सबकुछ इतनी तेजी से हुआ कि कोई कुछ समझ नहीं पाया और हंस लम्बे-चौड़े बांड को निगल गया। अगले ही पल हंस अपने उसी स्थान पर स्थिर था, जिस प्रकार पहले था। माइक, हुचांग, बागारोफ और टुम्बकटू चमत्कृत-से उस हंस को देख रहे थे।

हंस इस प्रकार स्थिर था, मानो अभी एक ही पल पूर्ब उसने कुछ किया ही न हो।

खैर - इन्हें यहीं छोड़कर अब हम जरा जेम्स बांड का हाल लिखते हैं। उसके साथ जो भी घटना घटी, इतनी तेजी से घटी कि कुछ करने की तो बात दूर, उसे कुछ समझने तक का अवसर नहीं मिला। उसकी आखें बन्द हो गई थीं। कुछ देर तक तो वह यही महसूस करता रहा कि वह हवा में उड़ रहा है। एकाएक उसने ऐसा महसूस किया, जैसे वह स्थिर हो गया हो। उसने धीमें से आंखे खोली तो स्वयं को एक छोटी-सी कोठरी में पाया। वह उठकर बैठ गया और ध्यान से कोठरी का निरीक्षण करने लगा। वह चारों ओर से बन्द था और वहां कोई दरवाजा नजर नहीं आता था। वह यह भी नहीं जान सका कि वह किस मार्ग से इस कोठरी में आ गया।

एकाएक उसकी दृष्टि एक दीवार पर लटकी पेंटिंग पर स्थिर हो गई। पेंटिंग का हुलिया बता रहा था कि जैसे सदियों से यह पेंटिंग वहीं लटकी हुई हो। पेंटिंग में कोई खास बात नहीं थी - केवल एक इन्सान का चित्र बना हुआ था।

और तब - जबकि उसने इस चित्र को पहचाना - उसके पैरों से धरती निकल गई।

जेम्स बांड के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा - क्योंकि चित्र विजय का था। पेंटिंग में एक तरफ लिखा हुआ था - देव। झपटकर बांड उसके करीब पहुंचा और पुन: ध्यान से चित्र देरवा - शत-प्रतिशत विजय का था। कदाचित् बांड के जीवन में विजय का ये चित्र यहां होना सबसे अधिक आश्चर्य की बात थी, दिमाग की समस्त नसें हिलाने के बाद भी वह कुछ समझ नहीं पा रहा था।

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