ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 1 देवकांता संतति भाग 1वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
'किसने बहका दिया बुजुर्गवार को -- हम क्या मर सकते हैं?'' टुम्बकटू की आवाज गूंजी। उधर बांड, माइक और हुचांग का तो आश्चर्य के कारण बुरा हाल था। पहले तो वे अलफांसे को ही देखकर चौंके थे, किन्तु टुम्बकटू की उपस्थिति ने तो उनके दिमाग की समस्त नसों को ही हिलाकर रख दिया। किसी भी ढंग से वे यह नहीं सोच पा रहे थे कि टुम्बकटू यहां आ कैसे गया और क्या कर रहा है।
''क्यों बांड मियां - क्या सोचने, में लीन हो?'' एकाएक टुम्बकटू ने उनकी विचार-श्रृंखला भंग की।
''कुछ नहीं, आओ बैठो।'' बांड बोला- ''इस समय अगर हम दोस्त बन जाएं तो अधिक उचित रहेगा।''
''जीवन में पहली बार अंग्रेजी मच्छर ने पते की बात कही है।'' कहता हुआ टुम्बकटू अपने गन्ने जैसे शरीर को लचकाकर बांड के पास बैठ गया।
इसके पश्चात उन लोगों के मध्य इसी प्रकार की बातचीत होती रही।
हम इन लोगों की ऊटपटांग बातों में फंसाकर पाठकों को बोर करना नहीं चाहते। यह छोटी-सी घटना यहां देने से हमारा तात्पर्य केवल यह है कि पाठकों को यह समझा सकें कि टुम्बकटू भी यहीं है और वह भी किसी गहरे चक्कर में उलझा हुआ है। वह किस चक्कर में उलझा हुआ है - यह एक लम्बा किस्सा है, वक्त आने पर अवश्य लिखा जाएगा। फिलहाल हमारे पास स्थान बहुत कम है और हमें अभी लिखना बहुत कुछ है, अत: हम अपने वास्तविक कथानक पर आ रहे हैं। किन्तु हां-टुम्बकटू का संक्षिप्त परिचय देना अत्यन्त आवश्यक है।
टुम्बकटू का नाम जितना विचित्र है, चरित्र उससे भी अधिक विचित्र है। यह व्यक्ति गन्ने की भांति पतला है। चन्द्रमा का निवासी है। किसी भी इन्सान को केवल एक चपत मारकर जान लेने में प्रसिद्ध है, उसके जूते से एक बेहद घातक सिक्का निकलता है। वास्तविकता पूछें तो टुम्बकटू के चरित्र की विशेषताओं पर ही आधारित पूरा एक उपन्यास लिखा जा चुका है। यहां हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम टुम्बकटू के विषय में अधिक लिख सकें।
उन्हें इसी प्रकार की बातें करते-करते प्रकाश के दर्शन हुए। दूर -- पहाड़ियों के पीछे गगन लालिमा से लिपट गया। जंगल में चिड़ियों का कलरव गूंज उठा। इतने समय में टूम्बकटू उन चारों का दोस्त बन चुका था। प्रकाश होते ही-जिस वस्तु पर उनकी दृष्टि स्थिर हुई, वह नदी के पार काफी दूर का एक दृश्य था।
सब उसी तरफ देख रहे थे।
नदी के पार - काफी दूरी पर, एक स्थान पर वे काफी बड़ा जल से भरा तालाब देख रहे थे, इस तालाब पर उनकी दृष्टि इतनी अधिक स्थिर नहीं थी, जितनी उस तालाब के बीच बने उस खण्डहर पर स्थिर थी। नदी के पार, दूर तक खाली मैदान पड़ा था। अनुमानानुसार यह खाली और रेतीला भाग किसी भी प्रकार सात वीघे (एक बीघा - १००० गज) से कम नहीं या। उसके बाद पानी का तालाब - और तालाब के पानी में खड़ा वह विशाल रवण्डहर।
''ये क्या है?'' जेम्स बांड ने पता नहीं किससे प्रश्न किया।
''आदरणीय भाई साहब !'' टुम्बकटू ने जवाब दिया-''यहां जितने अनभिज्ञ आप हैं -- उतना ही मैं भी हूं। केवल इतना कह सकता हूं कि हमें चलकर देखना चाहिए कि ये क्या चमत्कार है और इस खण्डहर में क्या है?''
टुम्बकटू का यह वाक्य सर्वमान्य साबित हुआ।
सभी की दिली इच्छा ये थी कि नदी के पार तालाब के किनारे पहुंचकर वहां का असली मामला देखना चाहिए। इसी विचार को दृढ़ करने के लिए उन सबने नदी को तैरकर पार किया और मैदान में से होकर तालाब की ओर बढ़ने लगे।
आइए, अब हम सब भी इनके साथ चलकर इस तालाब और खण्डहर को ध्यान से देखते हैं, क्योंकि यह तालाब और खण्डहर ही तो हमारी सन्तति का मुख्य कथानक है। हम जानते हैं कि हमारे बहुत से पाठक तैरना नहीं जानते, अत: हम नदी में तैरने के स्थान पर हनुमान की भांति नदी के ऊपर से उड़कर नदी पार हो जाते हैं। अगर हनुमान-राम का नाम लेकर समुद्र के ऊपर से उड़ते हुए लंका में पहुंच सकते हैं तो क्या हम राम के नाम पर इस नदी के पार नहीं पहुंच सकते?
लीजिए हमने नदी पार कर ली है। अब हम जेम्स बाण्ड और टुम्बकटू इत्यादि के साथ उस तालाब के किनारे पहुंच जाते हैं।
यहां पर हम बहुत ही प्यारा एवं आकर्षक दृश्य देखते हैं।
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