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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

हर्ष से सब उछलने लगे, जबकि वन्दना चमत्कृत-सी थी।' अभी तक की घटनाओं का लेशमात्र भी तात्पर्य उसकी समझ में नहीं आ रहा था। उसे बाकायदा इज्जत देकर महारानी साबित किया जा रहा है.. उसके पीछे किसी की क्या ऐयारी हो सकती है - यह उसकी समझ से परे था।

''महारानी.. आपके सेवक आपके दर्शन करना चाहते हैं।''

वन्दना ने बिना कुछ बोले अपने चेहरे से दाढ़ी और मूंछें हटा लीं.. साथ ही अपने नकली बाल भी हटा लिए। अब वन्दना की सूरत सबके सामने थी। सबने सम्मान के साथ सिर झुका दिए। इसके बाद किसी महारानी की भांति ही वन्दना की खातिर की गई। काफी रात समाप्त हो चुकी थी। सबने मिलकर यही निर्णय किया कि कल अवश्य ही बेगम बेनजूर का तख्ता पलट दिया जाएगा।

इसके वाद वन्दना के सोने का प्रबन्ध अकेले कमरे में शानदार बिस्तर पर किया गया। कमरे का द्वार अन्दर से बन्द करके वन्दना अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी। परन्तु उसके दिमाग में तरह-तरह के विचार चकरा रहे थे। आज दिन से ही वह बेहद चमत्कारिक घटनाओं में घिर गई थी। असल बात यह थी कि वह वन्दना नहीं थी, बल्कि वन्दना की खास सखी शीलारानी थी। वन्दना एक आवश्यक काम से कहीं गई थी उसके गुरु, गुरवचनसिंह ने शीलारानी को वन्दना और केवलसिंह को गौरवसिंह बनाया था। इसके बाद वह इन नकाबपोशों के बीच फंस गई। यहां आकर उसने गजब का ही खेल देखा। यहां के लोग उसे अथवा ये कहिए कि उसकी सखी वन्दना को महारानी मानते हैं। बाग में महारानी की प्रतिमा बनी हुई है। शीलारानी वन्दना की ऐसी सखी थी कि उसे वन्दना की नस-नस का पता था। उसे अच्छी तरह पता था कि वन्दना कहीं की महारानी नहीं है। फिर यह सब क्या है? किस ढंग की ऐयारी है? महादेव उसे जबरदस्ती महारानी बना देना चाहता था। एक बार को तो उसके दिमाग में आया कि वह पूछे कि यह सब चक्कर क्या हैं ? किन्तु उस समय वह कहती-कहती रुक गई, जब उसे ये ख्याल आया कि कहीं वास्तब में ही तो वन्दना उनसे छुपकर यहां की महारानी नहीं बनी हुई थी, अत: उसे किसी बात में अनभिज्ञता. प्रकट नहीं करनी चाहिए।

कई बार तो उसके दिमाग में आया कि वह किसी प्रकार की ऐयारी का सहारा लेकर इन लोगों के बीच से भाग निकले। परन्तु दूसरी तरफ उसके दिल में इन उलझी हुई बातों का उत्तर खोजने का विचार था। वह यह जानना चाहती थी कि यह क्या अजीब चक्कर है।

अभी तक वह अपने विचारों के भंवर में फंसी हुई थी कि-

''शीला.. शीला.. शीलारानी।''

कोई बहुत धीमी आवाज में उसे पुकार रहा था। वह एकदम चौंक पड़ी.. कमरे में चिराग जल रहा था। उसने जल्दी से पलटकर आवाज की दिशा में देखा.. कमरे की एक दीवार में एक बालिश्त लम्बा और एक बालिश्त चौड़ा, वर्गाकार मोखला बना हुआ था। उस मोखले में एक सुन्दर लड़की का चेहरा उसे बखूबी दीख रहा था। अभी शीला कुछ बोलना ही चाहती थी कि उसने देखा-मोखले के पार खड़ी लड़की ने अपने होंठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने का संकेत दिया और संकेत से ही अपने पास बुलाया। शीला की बुद्धि चकराकर रह गई। किन्तु फिर भी वह मोखले के पास पहुंच गई। मोखले के दूसरी ओर खड़ी लड़की ने एक कागज शीला की ओर खिसका दिया।

''तुम कौन हो?'' शीला ने धीरे से पूछा-''और किसे पुकार रही हो?''

''बोलो मत.. बहुत जबरदस्त ऐयारी चल रही है।'' उस लड़की ने बहुत ही धीरे से कहा- ''इस कागज को पढ़ लो.. तुम्हारी समझ में सब कुछ आ जाएगा।'' इतना कहने के बाद वह लड़की फुर्ती के साथ वहां से गायब हो गई। साथ ही वह मोखला भी बन्द हो गया।

शीला अवाक-सी खड़ी रह गई। अब एक और नई घटना ने उसे चक्कर में डाल दिया।

उसने कागज खोला और चिराग की रोशनी में पढ़ने लगी।

पढ़ते-पढ़ते उसकी अजीब हालत होती जा रही थी।

० ० ०

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