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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

अजीब लड़का था -- एक झटके के साथ उसने रैना को दूर फेंक दिया.। साथ ही खूनी स्वर में चीखा--''मुझे सीने से लगाने से पहले ये तो सोचो कि तुम्हारे बेटे को बचाने वाला स्वयं मर रहा है। उसे क्यों नहीं बचाते? गौरव. गौरव...!''

जोर से चीखता हुआ विकास दलदल के उस किनारे की ओर भागा। --''विकास!'' अजगर से लड़ते हुए गौरव की आवाज वातावरण में गूंज उठी-''अभी अजगर मरा नहीं है, मेरे दोस्त। लो, अजगर को पीछे से पकड़कर बाहर खींचो।'' कहने के साथ ही गौरव ने एक तेज झटका दिया। एक झटके के साथ अजगर की पूंछ वाला भाग विकास के समीप आकर गिरा। अभी अजगर अपना जिस्म वापस दलदल में खींचना ही चाहता था कि झपटकर विकास ने अपनी दोनों हथेलियों के बीच उसे थाम लिया। अजगर अपने जिस्म को काफी तोड़-मरोड़ रहा था। किन्तु

विकास पर इस समय खून हावी हो चुका था। अजगर को पकड़े वह दलदल से विपरीत दिशा में भागता ही चला गया।

अजगर का फन थामे गौरव-पलक झपकते ही दलदल से बाहर आया।

बाहर आते ही गौरव ने अपने हाथों में दबा फन तेजी से कीचड़युक्त धरती पर रगड़ दिया। अजगर के कण्ठ से डकार निकली, इसे संयोग ही कहा जाएगा कि उसी स्थान पर गौरव की फेंकी हुई तलवार भी पड़ी थी। विकास ने झपटकर तलवार उठाई और अगले ही पल अजगर का फन कटकर दलदल में जा गिरा, उसके बाकी जिस्म को घुमाकर गौरव ने दलदल में फेंक दिया। फेंकते ही गौरव तेजी से विकास की ओर पलटा। विकास के हाथ में अजगर के खून से सनी नंगी तलवार थी।

दोनों की सांस बुरी तरह फूली हुई थी।

''अभी हमारा फैसला नहीं हुआ है।'' अपनी उखड़ी हुई सांस पर काबू पाता हुआ गौरव बोला।

''मैं यही जानना चाहता था कि तुममें फैसला करने की शक्ति शेष रह गई है या नहीं।'' कहते हुए विकास ने अपनी तलवार एक तरफ उछाल दी। उसका वाक्य समाप्त होते ही गौरव उस पर गोरिल्ले की तरह झपटा। विकास और गौरव पुन: भिड़ गए।

एक बार फिर उनमें दिल की धड़कने बन्द कर देने वाला युद्ध छिड़ गया।

गौरव महसूस कर रहा था - दुनिया में उससे इतनी देर तक युद्ध करने वाला है, तो - विकास।

विकास अनुभव कर रहा था.. अभी तक वह जिससे भी टकराया है, उनमें सबसे खतरनाक है, गौरव।

देखने वालों की धड़कनें तीस मिनट के लिए बन्द हो गई, तीस मिनट बाद गौरव और विकास विपरीत दिशाओं में गिरे। दोनों थककर बुरी तरह चूर हो गए थे। शराबियों की भांति झूमते हुए उठे.. दोनों की अवस्था एक जैसी थी।

''मैं मान गया तुम्हें।''

''कमाल हो गया।''

दोनों ने एकसाथ यह वाक्य कहा। दोनों के मुंह से एक-एक अक्षर साथ-साथ निकला था। दोनों झूमते हुए एक-दूसरे की ओर बढ़े।

और तब, जबकि वे एक-दूसरे से मात्र दो कदम दूर रह गए।

एक कदम विकास ने बढ़ाया - दूसरा गौरव ने।

दोनों एकदम एक-दूसरे के गले-से लिपट गए। पांचों दर्शक उन्हें देखते ही रह गए। बहादुरों की कद्र करने वाले ये दोनों बहादुर एक-दूसरे से इस प्रकार लिपटे हुए थे, मानो दोनों वर्षों से बिछुड़े गहरे टोस्त हों।

सभी चमत्कृत से उन दोनों को देख रहे थे।

अचानक.. किसी अज्ञात दिशा से आकर एक बम विकास और गौरव के समीप गिरा, और फट गया। बम फटने की आवाज कोई विशेष नहीं थी। वास्तविकता तो ये थी कि वह आवाज बम की थी ही नहीं.. ठीक ऐसी आवाज थी, जैसे किसी ने एक बल्ब वहां फेंका हो। मात्र बल्ब फटने जितनी आवाज ही उस बम ने की थी। अभी उनमें से कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि फटाफट पांच-सात बम वहां आकर गिरे।

उनमें से तीव्र वेग के साथ गाढ़ा धुआ निकला।

यह धुआं अश्रुगैस के प्रभाव जैसा था। केवल आखों में पानी लाने का प्रभाव उसमें था। पलक झपकते ही वातावरण धुएं से भर गया।

विकास और गौरव को जैसे एकदम विजय का ख्याल आया.. वे अनुमान से उसी ओर झपटे, जिधर विजय पड़ा था, किन्तु दोनों उस समय आश्चर्यचकित रह गए, जब उन्होंने विजय को अपने स्थान से गायब पाया।

''इसका मतलब उमादत्त के आदमी यहां भी पहुंच गए।'' गौरव की ये बुदबुदाहट विकास के कानों में पड़ी।

० ० ०

 

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