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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

छठा बयान

गुलशन नामक नकाबपोश के हाथ में बन्दर रूपी वह खिलौना देखते ही वे तीनों बुरी तरह कांपने लगे थे। तीनों के चेहरों पर मौत का भय नजर आ रहा था। मूक दर्शक की भांति अलफांसे यह सब कुछ देख रहा था और साथ ही यह समझने की चेष्टा भी कर रहा था कि अचानक ही वह किस विचित्र परिस्थिति और किन अजीब लोगों के बीच फंस गया है। अभी तक जो कुछ भी हो रहा था, वह अलफांसे जैसे व्यक्ति की बुद्धि से बाहर की बात थी, किन्तु इतना वह समझ चुका था कि इस टापू पर कोई बहुत ही खतरनाक.. रोमांचक.. और खूनी खेल खेला जा रहा है। पहले यहां बांड इत्यादि का होना.. दूसरे उसका नाम सुनते ही.. सुनने वालों में अजीब-सी हलचल...। उसका नाम सुनते ही.. दोस्ती का दुश्मनी हो जाना। दुश्मनी भी यहां तक कि एक-दूसरे की जान तक लेने से न चूकें। उसी समय इस नकाबपोश का आगमन.. बन्दर से उन तीनों का इतना भयभीत होना।

अलफांसे को तेजी से घटित हर घटना बड़ी अजीब-सी लग रही थी।

नकाबपोश ने बन्दर अपने बटुए में डाला और उसमें से एक पुड़िया निकालकर बोला-''सूंघो इसे।''

उस समय अलफांसे चकित रह गया, जब एक ने सूंघी और वह बेहोश होकर धरती पर गिर गया...उसके बावजूद भी दूसरे ने पुड़िया सूंघने में किसी प्रकार का विरोध नहीं किया.. तीनों सूंघकर बेहोश हो गए। नकाबपोश ने पुड़िया जेब में डाली।

''मेरे साथ आओ।

''तुम्हारे बाप का नौकर नहीं हूं मैं।'' अलफांसे बड़े आराम के साथ बोला- ''पहले मुझे बताओ कि ये चक्कर क्या है - तुम कौन हो?''

'मिस्टर अलफांसे।'' बह बोला-''आप व्यर्थ ही अशिष्ट शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। यही बात अगर आप सभ्यता के साथ मुझसे पूछते तो मैं आपको जवाब दे देता, मुझे आपसे इस प्रकार के अभद्र व्यवहार की आशा नहीं थी!''

''अबे तो फिर क्या सोचकर बड़े आराम से कह दिया कि मेरे साथ चलो?'' अलफांसे बोला-''मैं कोई इनमें से तो हूं नहीं कि तुम्हारे पास बन्दर का यह खिलौना देखकर डर जाऊं अथवा तुम्हारी पुड़िया का चूर्ण सूंघ लूं!''

''मैंने कब कहा कि आप उनमें से हैं।'' उसने सभ्यतापूर्ण ढंग से कहा-''आप मेरा परिचय जानना चाहते हैं, लीजिए।'' कहते हुए उसने बिना किसी हिचक के अपना नकाब उतार लिया। अलफांसे के सामने एक सुन्दर और मजबूत युवक खड़ा था। युवक मुस्कराकर बोला-''सूरत से आप मुझे नहीं पहचानेंगे,. वैसे मेरा नाम बागीसिंह है।'' -''अभी तो तुमने अपना नाम गुलशन बताया था।'' अलफांसे ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा।

''उन लोंगों के सामने मुझे अपना नाम यही बताना चाहिए था।''

''सम्भव है कि तुम मुझे भी अपना नाम गलत बता रहे हो?'' अलफांसे ने कहा।

''आपको मैं अपना नाम गलत बताने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं करता।'' युवक अर्थात बागीसिह बोला-''आप यकीन कीजिए, मेरा नाम बागीसिंह ही है और मैं आपका दुश्मन नहीं दोस्त हूं।''

'मेरे दुश्मन और दोस्त यहां क्यों पैदा हो गए?'' अलफांसे ने पूछा-''मैं तो यहां पहले कभी नहीं आया!''

''आप नहीं जानते, लेकिन यकीन कीजिए, यहां के पूर्व सम्राट का लड़का आपका सबसे बड़ा दुश्मन है।''

''कारण क्या है?''

''आप विश्वास कीजिए कि मैं आपको सबकुछ बता दूंगा।'' बागी बोला-''मुझसे आपको किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। हम चन्द लोग यहां के सम्राट से लड़ रहे हैं.. कहानी बहुत लम्बी है.. आराम से आपको सब कुछ बताऊंगा। यहां इस समय खतरा है, कृपा करके आप हमारे साथ आइए.. आप सबकुछ जान जाएंगे।'

''अच्छा ये बन्दर का क्या रहस्य है?''

''आपको विश्वास नहीं आएगा कि यह भी एक लम्बी कहानी है।'' बागी ने कहा-''इस समय केवल इतना बता सकता हूं कि यहां आपको बेहद खतरा है। आपको देखते ही वह आपको अपने हाथ से कत्ल कर देगा, उसने आपको अपने हाथ से कत्ल करने की कसम ली है और पूरे विश्व में आपकी खोज हो रही है।''

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