ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 1 देवकांता संतति भाग 1वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
एक चीख के साथ गौरव कीचड़ में फिसलता चला गया।
विकास पर खून हावी हो चुका था। अगले पल गौरव ने केवल इतना देखा कि विकास उसके सीने पर सवार था। उसके दोनों हाथ गौरव की गर्दन पर थे और विकास की ये खूनी गुर्राहट-''ये तो बहुत पहले से मानता हूं बेटे कि दुनिया में सबका बाप है, लेकिन हममें से कौन बाप और कौन बेटा?''
और गौरव की दोनों टांगें उसके सिर से टकराईं।
उसके बाद!
गौरव और विकास का खूनी द्वन्द्वयुद्ध।
''भैंसा.. जैसे दो खूनी गेंडे भिड़ गए हों। उतनी जबरदस्त लड़ाई, पांचों सांस रोककर देखते रहे। कभी विकास बुरी तरह गौरव पर हावी हो जाता तो कभी ऐसा लगता कि विकास गौरव के सामने एक बच्चा मात्र है। दोनों पूरी तरह कीचड़ के पुतले बन चुके थे। ठाकुर साहब से लेकर रैना तक के रोंगटे खड़े हो गए। तीस मिनट तक निरन्तर ये युद्ध चला.. एक-दूसरे को परास्त करने में वे इतने लीन थे कि एक-दूसरे के अतिरिक्त उन्हें अपने आसपास की स्थिति का किंचित-भर भी अहसास न रहा।
यहां तक कि लड़ते-लड़ते दोनों खूनी दलदल में जो गिरे।
दलदल में भी एक-दूसरे के खून के प्यासे गौरव और विकास लड़ते रहे। दोनों एक-दूसरे से भिड़े हुए दलदल के गर्त में डूबने लगे। उस समय विकास बुरी तरह चौंक पड़ा.. उसने महसूस किया कि किसी जानवर ने उसके जिस्म को बुरी तरह लपेट लिया है।
उसी समय किसी अजगर की फुफकार वहां गूंजी।
विकास की हड्डियां जैसे चरमराने की सीमा तक पहुंच गईं। उसके जिस्म पर दलदल के जहरीले अजगर का दवाब बढ़ता जा रहा था। उसी समय विकास ने अपनी आंखों के सामने लहराते अजगर के फन को देखा-विकास के हाथ तक उस अजगर ने अपने जिस्म से लपेट रखे थे। गौरव ने यह भयानक दृश्य देखा'।
जंगली जानवरों से लड़ने का अभ्यस्त गौरव।
गौरव? जैसे दुनिया का सबसे भयानक इन्सान था। खूनी ढंग से वह झपटा.. अजगर का फन उसने अपनी दोनों हथेलियो के बीच फंसा लिया, अजगर ने अपना भयानक जबड़ा खोलना चाहा, किन्तु गौरव उसका फन भींचने में अपने जिस्म की सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा था। यहां
तक कि अजगर के कंठ से कंपकंपा देने वाली चीख निकल गई।
विकास ने यह महसूस कर लिया था कि अजगर ने उसे दाएं से बाएं लपेट रखा है। विकास ने तेजी से बाएं से दाएं दलदल में चार-पांच करवटें लेकर स्वयं को उससे मुक्त कर लिया। उधर.. गौरव और अजगर का भयानक युद्ध जारी था। चारों ओर से बेखबर गौरव बुरी तरह अजगर से भिड़ा हुआ था। अजगर रह-रहकर अपनी भयानक जीभ बाहर निकाल रहा था। जंगल में रहने वाला ही कोई इन्सान अजगर से यह भयानक युद्ध कर सकता था। उधर विकास दलदल में फंस गया था। प्रतिपल दलदल उसे अपने गर्भ में समेटती जा रही थी। उसी समय रैना ने अपनी शर्म त्याग साड़ी उतारकर उसका एक किनारा विकास की ओर फेंका।
''विकास बेटे...।'' रैना चीखी- -''इसे पकड़ लो।''
झपटकर विकास ने साड़ी का पल्ला पकड़ लिया। साड़ी का दूसरा किनारा पकड़े रैना दलदल के किनारे पर खड़ी थी। ब्लैक ब्वाय, रघुनाथ, ठाकुर निर्भयसिंह भी उसके समीप ही थे। जैसे ही विकास ने साड़ी का पल्ला दूसरी ओर से पकड़ा, सब मिलकर साड़ी बाहर खींचने लगे। उधर बेचारा गौरव.. अकेला गौरव।
अजगर के साथ युद्ध में वह अपनी जान की बाजी लगाए हुए था। उसका कोई सहायक नहीं था। उसकी किसी को परवाह नहीं थी। कैसा स्वार्थी है ये संसार! सब अपने को बचाते हैं.. दूसरा, जिसने उनके बेटे को बचाया, मौत के मुंह पर खड़ा है! उसकी किसी को चिन्ता नहीं है। सब अपने को बचाने में लगे हैं। गौरव अजगर से लड़ रहा है।
दो ही पल में विकास को दलदल से बाहर खींच लिया गया। रैना दीवानी-सी हो गई। झपटकर उसने विकास को गले से लगा लिया।
लेकिन - विकास!
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