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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''छोड़ो डैडी।'' विकास ने क्रोध में एक झटके के साथ हाथ छुड़ाया।

विकास ----- एक बार जो दिल में ठान ले, उसे तो खुदा भी नहीं निकाल सकता। सब देखते ही रह गए और विकास उछलकर गौरव के समीप पहुंच गया। गौरव भी एकदम सतर्क नजर आने लगा। विकास का एक-एक अंग क्रोध से कांप रहा था।

पांचों ने देखा, गौरव नामक ये नकाबपोश किसी भी प्रकार विकास से कम लम्बा नहीं था। जिस्म तो उसका विकास से भी कहीं अधिक स्वस्थ था। मगर विकास भला इन बातों की कब परवाह करता था? उसने अपने आज तक के जीवन में न जाने कितने शक्तिशाली लोगों को परास्त किया था।

पलक झपकते ही विकास का जिस्म हवा में लहराया।

और - गौरव कुछ समझ भी नहीं पाया था कि विकास की फ्लाइंग किक उसके चेहरे पर पड़ी। लड़खड़ाकर वह धड़ाम से कीचड़ में जा गिरा। मगर उस समय विकास भी चमत्कृत रह गया, जब गौरव को अगले ही क्षण उसने अपने सामने खड़ा पाया। इस बार विकास पुन: तेजी से उछला - किन्तु इस बार पासा उलट चुका था। फ्लाइंग किक इस बार गौरव के चेहरे पर लगने के स्थान पर गौरव के हाथों में आ गई। गौरव ने उसकी दोनों टांगें हवा में लपकी और घुमाकर कीचड़ में पटक दिया।

कीचड़ में दूर तक फिसलता चला गया विकास।

भयानक तेजी के साथ गौरव ने उस पर जम्प लगा दी। वह भी विकास के पीछे-पीछे फिसलता हुआ विकास तक पहुंच गया। गौरव की बांहें विकास की गरदन में लिपट गई थीं और विकास की कलाइयां गौरव की गरदन में। दोनों अपनी-अपनी पकड़ का कसाव बढ़ाते जा रहे थे।

दोनों का ही गला घुटने लगा.. कुछ ही देर में विकास को अहसास हो गया कि शारीरिक शक्ति के मामले में गौरव उससे अधिक ही है, किन्तु इस बीच विकास यह भी जान चुका था कि दांव-पेच के मामले में गौरव उसके पासंग भी नहीं है.. तभी-

उसने गौरव की गरदन छोड़कर!

एकदम अपनी दो अंगुलियां नकाब में से झांकती उसकी आखों में मारी।

गौरव के कंठ से चीख निकल गई। उसकी पकड़ से न केवल विकास की गरदन मुक्त हो गई, बल्कि वह कीचड़ में जा गिरा।

इसके बाद - विकास भला शत्रु को सम्भलने का अवसर क्यों देता! अपने बूट की एक ठोकर उसने गौरव के नकाब से ढके चेहरे पर जोर से मारी। एक चीख के साथ गौरव उछलकर दूर जा गिरा। विकास ने तुरंत दूसरी ठोकर रसीद कर दी।

इस प्रकार लड़के ने उसे अपनी ठोकरों पर रख लिया।

और शायद नवीं अथवा दसवीं ठोकर पर बुरी तरह मात खा गया विकास।

गौरव के हाथ में उसकी टांग आई और उसने एक तेज झटका दिया। फिरकनी की भांति हवा में लहराया विकास और कच्च-से कीचड़-भरी धरती पर गिरा। उसने फुर्ती से उठना चाहा, किन्तु गौरव का एक जबरदस्त घूंसा विकास के चेहरे पर पड़ा।

जैसे कोई फौलादी घूंसा हो।

विकास को लगा - जैसे उसके चेहरे का भूगोल बदल गया हो।

इस बार जैसे गौरव की घुट्टी चढ़ गई। गौरव भी यह अच्छी तरह महसूस कर चुका था कि अगर उसने विकास को अवसर दे दिया तो वह किसी भी प्रकार स्वयं को पराजित होने से नहीं बचा सकेगा। उसने झपटकर कीचड़ में पड़े हुए विकास की एक टांग पकड़ी और दूर तक घसीटता ले गया। विकास अपना सन्तुलन रहीं बना पा रहा था। एक स्थान पर ठहरकर गौरव अपने सारे जिस्म का भार गरदन पर डालता हुआ बोला-''बोलो, दुनिया में हरेक का बाप है या नहीं?''

और एक ही क्षण में चकरा गया गौरव।

उस बेचारे को तो यह भी मालूम नहीं हो सका कि नीचे पड़े हुए

विकास ने आखिर कौन-से दांव का प्रयोग किया.. उसे तो केवल इतना महसूस हुआ कि न जाने कैसे उसका जिस्म हवा में उछलता चला गया। जब नीचे आया तो एक ठोकर उसकी पसलियों में पड़ी।

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