ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 1 देवकांता संतति भाग 1वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
पाँचवाँ बयान
अब हम अपने पाठकों को विजय, विकास, रघुनाथ, रैना, ठाकुर साहब और ब्लैक ब्वाय के पास ले चलते हैं। आपको याद होगा कि इन पांचों नें मिलकर विजय को बेहोश कर दिया था - लेकिन जैसे ही विकास विजय को उठाने के लिए आगे बढ़ा, वहां एक आवाज गूंजी, जिसने विजय को अपना पिता बताया और उसने सबको विजय से दस-दस कदम पीछे हट जाने का आदेश दिया।
विकास से लेकर ठाकुर साहब तक का दिमाग भन्नाकर रह गया।
विजय का लड़का।
यह उन सबके लिए विश्व का सबसे बड़ा आश्वर्य था। हतप्रभ-से उन सभी ने आदेश का पालन किया। उसी समय अंधेरे में से एक साया निकलकर बेहोश पड़े हुए विजय के पास आ गया। उसके सारे जिस्म पर काले कपड़े थे, चेहरे पर काला नकाब। उसने विजय की हालत देखी और एकदम भयानक ढंग से चीख पड़ा-''ये हालत किसने की है, मेरे पिता की?''
''पहले तुम बताओ, तुम कौन हो?'' विकास ने पूछा।
'बहरे तो नहीं लगते तुम!'' नकाबपोश बोला- ''बता बुका हूं कि मैं मिस्टर विजय का लड़का हूं।''
''अभी तो गुरु की शादी भी नहीं हुई।'' विकास बोला-''फिर तुम इतने लम्बे-चौड़े उनके बेटे कहां से आ गए?''
''तुम अभी बच्चे हो।'' नकाबपोश ने कहा- ''ठाकुर साहब, मेरी मां, पिता को पुकार रही हैं, कृपया इन्हें मेरे साथ जाने दें।''
''तुम्हारी मां का क्या नाम है?'' ठाकुर साहब ने बात की गहराई तक पहुंचना चाहा।
''कांता।'' नकाबपोश ने कहा।
नाम सुनते ही पांचों अवाक्-से रह गए। यह नाम उनके लिए एक गहरा रहस्य बनकर रह गया था। अचानक ही न जाने कैसे विजय को इस नाम की धुन लग गई थी। वह हर हालत में कान्ता के पास पहुंचना चाहता था। अभी कांता का रहस्य स्पष्ट हुआ नहीं था कि एक यह व्यक्ति और उत्पन्न. हो गया था, जो स्वयं को विजय और कान्ता का लड़का कहता था।
''तुम्हारी मां कहां है?'' ठाकुर साहब ने प्रश्न किया।
''यह मैं पिताजी के अलावा और किसी को नहीं बताऊंगा।'' उसने दृढ़ता के साथ कहा।
''तब तुम गुरु को इस तरह यहां से ले जा भी नहीं सकोगे।'' विकास ने दृढ़ता के साथ कहा।
''मैं जानता हूं कि तुम्हारा नाम विकास है.. पूरे विश्व में आजकल तुम्हारे नाम का डंका बजता है। तुमसे टकराने वाले मौत से टकराना सरल समझते हैं। यह भी मैं जान चुका हूं कि अमेरिका और चीन का एक-एक नागरिक तुम्हारे नाम से कांपता है, लेकिन तुम नहीं
जानते कि मेरा नाम गौरव है और विजय जैसे पिता का खून मेरी रगों में दौड़ रहा है। मैं यहां से पिता को लेकर ही जाऊंगा।''
''विकास के होते यह नामुमकिन है।'' ताव-सा आ गया विकास को।
''तुम मुझे ऐसे मर्द नजर नहीं आते।'' गौरव ने भी बेहिचक कहा- ''अगर अपने अन्दर गौरव से टकराने की शक्ति समझते हो तो इस आग उगलने वाले तमन्चे को फेंककर अकेले आ जाओ मैदान में।''
''आज फैसला इसी बात पर रहा।'' विकास का चेहरा कनपटी तक सुर्ख हो गया- ''अगर तुमने मुझे परास्त कर दिया तो तुम विजय गुरु को आराम से ले जा सकते हो, अगर मुझसे परास्त हो गए तो तुम्हें अपना सारा रहस्य बताना होगा।''
''मुझे खुशी है कि यहां कोई मर्द तो मिला।'' गौरव ने म्यान से तलवार निकालकर एक तरफ फेंकते हुए कहा।
''आज तक विकास को भी तुम्हारी तरह चैलेंज करने वाला नहीं मिला था।'' कहने के साथ ही विकास आगे बढ़ा।
रघुनाथ ने उसकी कलाई थाम ली बोला- ''ठहरो, विकास।''
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