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देवकांता संतति भाग 7

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : तुलसी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2050
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

नौवाँ बयान


''जान से प्यारे दोस्तो,

इतना वक्त तो नहीं है कि मैं अपना सारा हाल बयान कर सकूं। मगर फिर भी अपने बारे में बिना कुछ बताए दिल नहीं मान रहा। मुझे अब यह उम्मीद नहीं है कि किसी तरह मैं जिंदा भी बच सकूंगा। बस, इसी सबब से इस खत के जरिए मैं तुम लोगों से कुछ बातें कर रहा हूं। अगर ये अल्फाज न लिखूं और यूं ही मर जाऊं तो सच, तुम्हारी कसम, दिल में ये मलाल रह जाएगा कि मरने से पहले आखिरी वक्त में तुमसे कुछ बात भी नहीं कर सका। सो इस खत में बात करके अपने दिल को समझा रहा हूं।

चचा, तुम तो वहुत प्यार करते हो ना अपने बच्चों को? हां, मैं हरामजादा हूं। मरना तो अब मुझे यहां है ही चचा, लोकिन एक इच्छा है, शायद पूरी न होगी। चचा मरने से पहले एक बार तुमसे गले मिलना चाहता हूं। सोचता हूं - आखिरी वक्त में मेरे दोस्त मुझे अपनी बांहों में कस लें। मगर लगता है कि उस आखिरी वक्त में मुझे दोस्तों की बांहें नसीब नहीं होंगी। एक बार दोस्तों के गले से भी नहीं लग सकूंगा। क्या करूं? सामने होते तो शायद इतने जज्बात भी नहीं जागते।

प्यारे बांड, अरे उदास क्यों होता है दोस्त? मरना तो साला एक दिन था ही। लेकिन तेरी कसम - ये नहीं सोचा था कि इतना तड़प-तड़पकर मरूंगा। खैर - वो मौत ही क्या जो सोचे-समझे तरीके से आए। न.. न.. रोना मत, तुम तो बहादुर हो। जासूस तो हमेशा मरता ही इस तरीके से है कि तड़प उठता है। लेकिन घबराओ मत बेटा, एक दिन तुम भी ऐसे ही मरोगे।

कहो हुचांग मियां, तुम भी दुखी हो? तुमसे तो बस एक गुजारिश है - चीन की दीवार पर मेरी कब्र बनवा देना। बनवाओगे ना - अगर तुमने मेरी ये इच्छा पूरी कर दी तो समझ लो कि दोस्ती का हक अदा कर दिया। अबे सच मत समझना -- मैंने मजाक किया है। जासूसों को भी मरने के बाद कोई जानता है भला? कब्र मत बनवा देना - वर्ना वे मुजरिम जो तेरे यार के दुश्मन बने, रोज कब्र सूंघकर आया करेंगे।

कहो गन्ने भाई, बड़ा गुमान था अपनी ताकत पर? चंद्रमा से आए थे ना? धरती के जासूसों को तो क्या, सिंगही और जैक्सन जैसे मुजरिमों को भी नाकों चने चबवा दिए। अनेकों ताकतें थीं तुम्हारे पास! अब कर लो उनका इस्तेमाल? तुम्हारे सामने माइक दम तोड़ रहा है। बचा लो तो जानें, वर्ना तो समझूंगा कि तुम्हारी ताकतें गप्प थीं।

बस दोस्तो, तुम्हारा माइक इस वक्त इससे ज्यादा बातें करने की हालत में नहीं है। सोचता हूं कि कहीं ऐसा न हो कि तुम ये भी नहीं जान सको कि माइक किस चक्कर में फंस गया। इसलिए संक्षेप में मैं वह हाल लिखता हूं जब से मैं जुदा हुआ। तुम्हारी तरह मुझे भी साला वह हंस ही निगल गया जो उस तालाब के बाहर खड़ा था। कुछ देर तक तो मैं यह महसूस करता रहा कि मैं हवा में उड़ रहा हूं, उसके बाद उड़ता-ही-उड़ता बेहोश हो गया। जब होश आया तो खुद को एक कोठरी में पाया। कोठरी चारों तरफ से बंद थी। काफी ढूंढ़ने के बावजूद उसमें से निकलने का मुझे कोई रास्ता नजर नहीं आया। हां, उस कमरे में चौंका देने वाली एक बात जरूर थी। उस कमरे की एक दीवार पर पेंटिंग लटक रही थी। कदाचित् तुम्हें यकीन नहीं आएगा कि पेंटिंग अलफांसे के चित्र की थी। देखने से ही साफ पता लगता था कि पेंटिंग सदियों से वहीं लटक रही थी। इस बात का मुझे आश्चर्य है कि अलफांसे के चित्र की सदियों पुरानी पेटिंग भला वहां क्यों लटक रही है? मैंने उस पेंटिंग को हर कोण से देखा, यकीन मानो वह अलफांसे का ही चित्र है, लेकिन हां, एक और बात है जिसने मेरे आश्वर्य को ज्यादा बढ़ा दिया। उस पेंटिंग के नीचे शेरसिंह लिखा है। ये नाम पेटिंग में चित्र के नीचे उस स्थान पर लिखा है, जहां आर्टिस्ट पेंटिंग में बनाए गए चित्र का नाम लिखता है। मतलब ये कि पेंटिंग बनाने वाला कहना चाहता है कि ये चित्र शेरसिंह नाम के किसी आदमी का है, मगर भला मैं इस बात को कैसे सच मान लूं? मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि वह अलफांसे है।

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