ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 7 देवकांता संतति भाग 7वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
उनमें से - ठीक बीच वाली कोठरी के दरवाजे पर माइक खड़ा था। उसकी हालत - उसकी हालत देखकर ही तो सबके दिल दहले थे। उसके जिस्म का हर कपड़ा तार-तार बनकर हवा में झूल रहा था। सारी खाल में इस तरह की झुर्रियां पड़ी हुई थीं, मानो अचानक माइक बूढ़ा हो गया हो। उसका गोरा रंग काला पड़ा हुआ था। सिर के बाल आपस में चिपककर इस तरह सीधे खड़े थे, मानो उनमें कलफ लगा हुआ हो। आंखें जैसे झुर्रियां पड़ी खाल में कहीं खो गई थीं। इतना ही नहीं-झुर्रियां पड़ा सारा जिस्म खून से लथपथ भी था। उसकी यह हालत देखकर तो चारों में से किसी को यकीन ही न हुआ कि वह माइक है।
लेकिन आवाज - आवाज माइक ही की थी।
ये अचानक ही क्या हो गया माइक को? इस तरह से भयानक रूप में बदलाव उसमें कैसे आ गया? वह माइक कहां है जो इस खण्डहर से बाहर तक उनके साथ था। अगर वे माइक की आवाज न पहचान लेते तो कोई यकीन न कर सकता था कि यह माइक है।
माइक को पहचानते ही - सब एक झटके के साथ खड़े हो गए।
''अबे क्या हुआ चोट्टी के, क्या हुआ तुझे?'' बागारोफ के स्वर में भर्राहट थी।
''मुझे बचा लो, चचा!'' कोठरी के दरवाजे पर खड़ा हुआ माइक कहता-कहता रो पड़ा-''मैं बहुत मुसीबत में हूं - मेरे चारों तरफ मौत है। देखो - मेरी खाल देखो चचा - मेरी ये हालत देखो। वक्त से पहले ही मैं बूढ़ा हो गया। अगर आज तक आपने माइक को कुछ समझा है चचा तो मुझे बचा लो। अगर मैं यहां पर रहा तो - एक रात से ज्यादा जिन्दा नहीं रह सकूंगा!''
''अबे हरामजादे, तुझे समझता क्या हूं मैं?'' और तड़पकर रो पड़ा बागारोफ-''तुझे मैं हरामी की औलाद समझता हूं - मैं.. मैं.. हरामी हूं कुत्ते के पिल्ले - तू बच्चा है ना मेरा! बोल.. बोल तो तू - किस उल्लू के पट्ठे ने तेरी यह हालत की है?''
''किसी ने नहीं चचा, मैं खुद ही ऐसा हो गया।'' माइक ने वहीं खड़े-खड़े जोर से चीखकर कहा-''ये इमारत बड़ी अजीब है, तुम.. तुम तो सब ठीक हो ना चचा - तुम्हें तो कोई परेशानी नहीं?''
''हमारी फिक्र क्यों करता है तू गधे के बच्चे!'' बागारोफ चीख उठा-'तू जल्दी बता कि किस मुसीबत में है तू?''
अभी ऊपर खड़ा माइक बागारोफ की बात का कोई जवाब देना ही चाहता था कि अचानक उस कोठरी में से किसी रीछ के जोर-जोर से गुर्राने की आवाज उन चारों तक भी पहुंची। अभी वे कुछ समझ भी न पाए थे कि उन्होंने देखा--कोठरी के दरवाजे पर खड़े माइक पर पीछे से एक रीछ झपट पड़ा। उनके देखते-ही-देखते रीछ ने माइक को अपने पंजे में दबा लिया-माइक की दर्दनाक चीख चारों के कानों में पिघले शीशे की तरह घुसती चली गई। वे देख रहे थे - माइक ने बड़ी फुर्ती से खुद को रीछ से छुड़ाया।
और इस वक्त वागारोफ की हालत देखने लायक थी। वह जैसे एकदम पागल हो गया। चीखा-''घबराना मत, घबराना मत मेरे वच्चे। मैं आ रहा हूं। इस हरामजादे रीछ को तो मैं फाड़कर सुखा दूंगा!'' कहता हुआ बागारोफ पागलों की तरह उस दीवार की तरफ दौड़ा जिसके ऊपर वह कोठरी थी। मगर हम कह चुके हैं कि वह दीवार ऐसी बिल्कुल नहीं थी, जिस पर कोई चढ़ सके। पागलों की तरह बागारोफ बार-बार दीवार पर चढ़ने की कोशिश करता और फिर फिसलकर बाग की घास पर गिर पड़ता।
ऊपर कोठरी में माइक उस रीछ से अभी लड़ ही रहा था!
रह-रहकर माइक की चीखें सारे बाग में गूंज रही थीं। बीच-बीच में रीछ की गुर्राहट उनका कलेजा दहलाकर रख देती, लड़ते-लड़ते रीछ और माइक कोठरी में इतने समा गए कि उनमें से अब कोई भी हुचांग, बांड या टुम्बकटू को नहीं चमक रहा था। बागारोफ बेचारे को तो चमकता ही क्या? वह तो पागलों की तरह बार-बार दीवार पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था।
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