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देवकांता संतति भाग 7

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : तुलसी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2050
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''छत्तीस।'' हुचांग ने कहा और बांड सुनते ही उछल पड़ा, बोला-''आ गया समझ में।'' उसके चेहरे से एकदम ऐसी खुशी झलकने लगी मानो उसने कोई बहुत बड़ा किला जीत लिया हो। बोला- ''देखो, उस त्रिभुज को ध्यान से देखो! सबसे पहले बारह पढ़ो, फिर ये कोड बनाने वाला एक शब्द ऐसा पढ़ाना चाहता है, जो उसने लिखा नहीं है।''

''क्या मतलब?''

''मतलब ये कि उस आकृति को त्रिभुज बोलते हैं जिसमें 'ब' 'ओ' 'ना' लिखा है, उसने सीधी त्रिभुज न लिखकर उसकी आकृति बना दी है और वह चाहता है कि देखने वाला उस आकृति को खोलकर देखे। मैंने तुमसे कहा था कि सबसे पहले बीच में लिखा बारह पढ़ो, फिर आकृति पर गौर करके पढ़ो, दोनों शब्दों को मिला दो तो बना 'बारह त्रिभुज' इसके आगे त्रिभुज के तीनों कोनों पर बने हरफों को मिलाओ। 'ब' 'ना' 'ओ' यानी ''बनाओ', इस तरह से पूरा वाक्य बना-''बारह त्रिभुज बनाओ।''

''अरे!'' हुचांग एकदम उछल पड़ा।

''और नीचे जो छत्तीस अक्षर लिखे हैं, उन्हीं के बारह त्रिभुज वनेंगे, इसीलिए मैंने तुमसे पूछा था बारह तीया कितने। अब जरा ध्यान से इन अक्षरों के बारह त्रिभुज बनाओ, फिर अक्षरों को उसी क्रम में पढ़ो जिस क्रम से मैंने ऊपर वाले त्रिभुज में 'बना' पढ़ा है।'' अब वे दोनों उन अक्षरों के त्रिभुज मिला-मिलाकर पढ़ने लगे। काफी देर तक की कोशिशों के बाद उन्होंने पढ़ा 'बुखारी में रोशनी मत करो 'आग लग जाएगी। अंधेरे में उतरो, रास्ता अवश्य मिलेगा।'

उस बात को समझते ही दोनों एक दूसरे की तरफ देखने लगे! हुचांग बोला-''बड़े ही ढंग से यहां तिलिस्म बनाने वाले ने अपना पैगाम छोड़ा है।''

''अगर माचिस होती तो बड़ी बुरी तरह से फंसते।'' बांड ने कहा-''इसमें साफ अक्षरों में पैगाम लिखा है कि रोशनी मत करो। अगर हमारे पास माचिस होती तो किसी भी तरह रोशनी किये बगैर बाज नहीं आते। और मेरा ख्याल है कि तीली जलते ही यहां आग लग जाती और उस आग में हम भी भस्म होकर रह जाते।''

''वाकई!'' हुचांग बोला-''अब हमें तिलिस्म में घूमते वक्त हर कदम पर यह ध्यान रखना है कि किसी भी नई जगह वहां की खासियत को जाने बिना वहां कोई नई हरकत नहीं करेंगे। अगर हमारे पास माचिस होती तो हम इन हीरों में लिखी भाषा को समझे बिना अंधेरे में देखने के लिए जरूर रोशनी करते और इसमें साफ लिखा है कि यहां रोशनी करने का क्या अंजाम है।''

कुछ देर तक वे और वहीं खड़े इस बारे में बातचीत करते रहे। बार-बार वे इस बात को खुले दिल से मान रहे थे कि तिलिस्म बनाने वाला जो भी कोई था - वह असाधारण मस्तिष्क का मालिक था। किसी भी आदमी को तिलिस्म में उलझाने के साथ-साथ उसने बड़े ही दिमागी ढंग से वहां से निकलने के रास्ते बनाये हैं। इस तिलिस्म में घूम भी कोई अक्लमंद आदमी ही सकता है, वरना बिना दिमाग का आदमी तो कहीं एक ही जगह फंसकर रह जाये। इसी तरह की बातों के बाद अचानक हुचांग बोला-

''हीरों की इस भाषा में बताया गया है कि अंधेरे में उतरो, रास्ता अवश्य मिलेगा-लेकिन मुझे तो यहां आगे का रास्ता ही कोई दिखाई नहीं देता - इसलिए अब हम बढ़ें तो बढ़ें किधर?''

''मेरा ख्याल ये है कि इस जगह से किस दिशा में ढलवाँ जमीन होगी, हमें अनुमान से उधर ही बढ़ना है!'' बांड बोला-''क्योंकि इस वाक्य में गौर करने की बात ये है कि-- इसमें आगे बढ़ने के लिए नहीं - उतरने के लिए कहा गया है। साफ जाहिर है कि हमारे आस-पास ही कहीं किसी दिशा में सीढ़ियां अथवा ढलान होना चाहिए - हमें उसी ओर बढ़ना है- यानी यही कोई यहां से आगे बढ़ने का रास्ता भी बता रहा है।''

अब-वे दोनों टटोल-टटोलकर विपरीत दिशाओं में सीढ़ियां ढूंढ़ने लगे - थोड़ी देर की कोशिश के बाद बांड को सीढ़ियां मिल गईं। सीढ़ियां ठीक उनके विपरीत दिशा में थीं जिधर से कि ये दोनों आये थे। बांड ने आवाज देकर हुचांग को भी अपने पास बुलाया। अब वे एक-दूसरे का हाथ पकड़कर सतर्कता के साथ सीढ़ियां उतरने लगे। सीढ़ियां खत्म होते ही अंधेरे में डूबी जमीन पर एक तरफ उन्हें एक बड़ा-सा तीर का निशान चमका। अंधेरे में डूबी जमीन पर मात्र वह तीर का निशान चमक रहा था। क्योंकि निशान के अलावा उसके आस-पास की जमीन भी नहीं चमक रही थी। इसलिए वह निशान ऐसा लग रहा था, मानो कोई सचमुच का तीर लटक रहा हो।

''देखो!'' हुचांग अंधेरे में ही बांड के कंधे पर अपना हाथ रखकर बोला- 'वह तीर ही हमें रास्ता दिखा रहा है!''

''हां, मुझे लगता है कि ये तीर फासफोरस से बनाया गया है।'' बांड बोला-''अंधेरे में फासफोरस के अलावा इतनी आसानी से कोई चीज नहीं चमक सकती।'' हमारे ये दोनों पात्र वैज्ञानिक युग के हैं ना, इसीलिए फासफोरस और उसकी खूबियों को भी बहुत ही अच्छी तरह से जानते-पहचानते हैं।

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