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देवकांता संतति भाग 7

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : तुलसी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2050
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

जवाब में हुचांग ने सारा हाल बयान कर दिया। उसके साथ-साथ बांड को टुम्बकटू और बागारोफ के बारे में भी उतना हाल पता लग गया जितना कि हुचांग को मालूम था। हुचांग के साथ क्या गुजरी और वहां उसने अपना कौन-सा हाल बयान किया - ये हमारे पाठक पिछले भागों में पढ़ आये हैं। सुनने के बाद बांड बोला-

''तो इसका मतलब ये है बागारोफ चचा अभी तक उसी विचित्र कमरे में कैद हैं और उन्हें निकालने के लिए तुम किसी भारी पत्थर की तलाश में आये थे और यहां फंस गये।''

''पता नहीं टुम्बकटू के साथ क्या हुआ होगा?'' हुचांग ने कहा-''खैर..तुम तो अपना हाल कहो।''

बांड ने उनके साथ से जुदा होने (हंस द्वारा निगल लिए जाने) से लेकर यहां तक का सारा किस्सा मुख्तसर में बयान कर दिया। उसके किस्से में सिंगही और जैक्सन की लाशों का जिक्र आने पर वह बोला-''ये बात तो बड़े ही आश्चर्य की है कि वहां तुमने सिंगही और जैक्सन की लाशें देखीं और वह भी बोलती हुईं। सबसे पहली बात तो सिंगही और जैक्सन का यहां मौजूद होना ही कम आश्चर्य की बात नहीं है, दूसरे इस तरह लाशों के रूप में और लाशें भी बोलती हुई, यह सब कुछ है न समझने वाला ही चक्कर! वे भला इस तिलिस्म में क्योंकर फंस गये हैं?''

काफी देर तक दोनों एक-दूसरे के साथ घटी घटनाओं पर बातचीत करते हुए आश्चर्य प्रकट करते रहे। अंत में बांड को अचानक ख्याल आया, बोला-''मगर, इस वक्त भी तो हम ऐसी जगह फंसे हुए हैं, जहां से निकलने का हमें कोई रास्ता नहीं मालूम! खैर... जो भी हो! इस तिलिस्म को बनाने वाला जो भी होगा - बड़े ही गजब के दिमाग का मालिक होगा। सारा तिलिस्म इस ढंग से बनाया है कि अगर एक बार कोई आदमी इसमें फंस जाये तो, सारे काम उसी तरीके से करेगा - जिस तरीके से तिलिस्म वनाने वाले ने चाहा है। मुझे तो ये मानना पड़ता है कि दिमाग के मामले में उस जमाने के आदमी हमसे आगे थे।''

''मेरा ख्याल तो ये है कि यहां से निकलने के बारे में ये जगमगाते हीरे जरूर कुछ कह रहे हैं।'' हुचांग ने कहा-''इन्हें ध्यान से देखो। एक खास आकृति के रूप में इन्हें दीवार में फिट किया गया है। जरूर इन हीरों के जरिये तिलिस्म बनाने वाला यहां फंसे किसी आदमी को कुछ पैगाम दे रहा है अथवा रास्ता बता रहा है। सवाल सिर्फ उस भाषा को समझने का है जिसमें कि उसने ये हीरे फिट किये हैं। मुझे तो यहां भी कुछ ऐसा ही चक्कर लगता है, जैसा तुम्हारे साथ हंस और शेर वाले कमरे में हुआ। जब तक उस कमरे में फंसा आदमी उस जन्मपत्री को समझ नहीं जाएगा, तब तक उस कमरे से निकल ही नहीं सकता। ऐसा ही यहां भी लगता है कि जब तक हम इन हीरों की भाषा को समझ नहीं जायेंगे तब तक यहां से निकल ही नहीं सकेंगे।''

''तुम्हारे पास माचिस या टॉर्च इत्यादि कुछ है?'' बांड ने पूछा।

''नहीं तो, क्यों?'' हुचांग ने कहा!

बांड ने जवाब दिया-''यहां इस जगह केवल ये हीरे ही चमक सकते हैं, बाकी सब कुछ अंधेरे में डूबा हुआ है। अगर टार्च या माचिस में से कोई चीज होती तो कम-से-कम उसकी रोशनी में अच्छी तरह यहां की कैफियत तो देखते। खैर, जब कुछ है ही नहीं तो क्या किया जा सकता है?''

कुछ देर और वे इधर-उधर की बातें करते रहे और फिर दोनों जगमगाते हीरों के बहुत ही पास आकर ध्यान से देखने लगे। (पाठकों के लिए हम यह आकृति पांचवें भाग के पाँचवें बयान के अंत में बता आये हैं) उस आकृति की तरफ इशारा करके हुचांग बांड से बोला-''वो देखो, सबसे ऊपर एक त्रिभुज वना हुआ है, उसके तीनों कोनों पर 'व' 'ना' 'ओ' लिखा हुआ है, उसके नीचे हिन्दी के अक्षर बने हुए हैं, पहली लाइन में तीन अक्षर, दूसरी तीसरी में छ: अक्षर, चौथी-पांचवीं में फिर तीन-तीन, छठी-सातवीं में फिर छः-छ: और आठवीं लाइन में फिर तीन!''

''इस त्रिभुज के बीचो-बीच बारह भी तो लिखा है।'' बांड ने ध्यान से देखते हुए कहा।''

''हां, लेकिन समझ में नहीं आता कि इस सबका क्या मतलब है?'' हुचांग ने जवाब दिया-''मैं तुमसे कुछ ही देर पहले यहां पहुंचा हूं और तभी से इसे समझने की कोशिश कर रहा हूं। लेकिन समझ में नहीं आता।''

''त्रिभुज के नीचे ये कुल कितने अक्षर हुए?'' बांड ने सवाल किया।

हुचांग ने जल्दी से गिनकर बताए-''छत्तीस।''

''बारह तीया?'' बांड ने उन हीरों की तरफ देखते हुए ही सवाल किया।

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