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देवकांता संतति भाग 7

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : तुलसी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2050
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

विक्रमसिंह ने पहरे पर खड़े सिपाहियों के सरदार से ताली लेकर ताला खोला। सबसे पहले बलभद्र रैना को कंधे पर लादे कोठरी में दाखिल हुआ। मगर अभी दाखिल ही हुआ था कि चीं-चीं-चीं-की आवाज के साथ एक बंदर उसके पर कूद पड़ा।

बलभद्र बुरी तरह से बौखला गया।

अभी वह संभल भी नहीं पाया था विकास का जिस्म हवा में लहराता हुआ विक्रमसिंह पर आ गिरा। जिस वक्त तक अन्य ऐयार और पहरे के सिपाही सावधान होते, निर्भयसिंह, रघुनाथ, ब्लेक ब्वाय और वंदना भी न केवल जाग चुके थे, बल्कि उन पर हमला भी कर चुके थे। उधर रैना बलभद्र के हाथ से छूटकर नीचे गिरी, लेकिन उतनी ही फुर्ती से उछलकर खड़ी हो गई।

उधर-ऐसे मौके पर गोवर्धनसिंह की हरकत तो देखने ही लायक थी। उसने आव देखा न ताव, अपने पास ही खड़े सिपाहियों के मुखिया के गाल पर घूमकर एक ऐसा झन्नाटेदार हाथ मारा उसकी आंखों के सामने लाल-पीले तारे नाच उठे, गोवर्धनसिंह ने झपटकर उसके हाथ से तलवार खींच ली और दूसरे सिपाही से भिड़ गया।

जरा-सी देर में वहां अफरा-तफरी-सी फैल गई।

लड़ाई के बीच एक बार जब विकास ने जम्प लगाकर गोवर्धनसिंह को दबोच लिया तो गोवर्धनसिंह के मुंह से जासूस सम्राट विजय की आवाज निकली-

''अबे प्यारे दिलजले-हमारा क्यों कचूमर निकालता है। हम तो तुम्हें निकालने के चक्कर में पापड़ बेलते हुए यहां तक पहुंचे।''

''गुरु आप!'' चौंका विकास।

''हां बेटे।'' विजय अभी इतना ही कह पाया था कि एक सिपाही उस पर झपटा। दूसरा विकास पर--बातों का सिलसिला तोड़कर वे अपने-अपने प्रतिद्वन्द्वी को उनकी गलती का आभास दिलाने लगे। पाठक भी मानते होंगे कि वाकई उन्होंने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती कर दी थी।

गरज ये कि ये दोनों दल भिड़ गए। काफी देर तक हंगामा रहा। तहखाने में मारकाट-सी मची रही। गोवर्धन बने विजय ने अपनी कमर में लटके ऐयारी के बटुए से एक गेंद जैसी गोल चीज निकाली और जोर से जमीन पर पटक दी। एक हल्के-से धमाके के साथ वहां का सारा इलाका गाढ़े सफेद धुएं से भर गया। इस धुएं के बीच कौन कहां है और क्या कर रहा है-यह हम भी नहीं देख सके।

जिस वक्त धुआं साफ हुआ-हमने देखा कि अकेला गोवर्धनसिंह (विजय) ही फर्श पर खड़ा है। बाकी धनुषटंकार सहित सभी बेहोश थे। कुछ ऐसे सिपाही भी थे जो बेहोश होने से पहले ही लाश बन चुके थे, वे मृत पड़े थे।

इस धुएं ने अपनी बेहोशी का असर विजय पर नहीं किया था। विजय ने ज्यादा वक्त बरबाद करना ठीक नहीं समझा और उसने झटपट अपनी जेब से लखलखा निकाला और रघुनाथ, ब्लैक ब्वाय, निर्भयसिंह, रैना और वंदना को अचेतन की दुनिया से बाहर निकाला।

''विकास को भी होश में लाओ।'' रैना ने जमीन पर पड़े विकास की ओर इशारा करके कहा।

''न न ऐसा गजब मत करना रैना बहन।'' विजय बोला-''ये साले और बंदर नई पौध के नए खिलाड़ी हैं। इनमें से अगर किसी को भी यहां होश में लाया गया तो दुश्मनों की चटनी वनाने में व्यस्त हो जाएंगे। तुम जानती हो कि विकास जैसी खोपड़ी का लड़का समझदारी और मौके की नजाकत को देखकर काम नहीं करता-बल्कि दुश्मन को देखते ही मारा-मारी और उसे लाश बनाकर उलटी टांगने में यकीन रखता है। अगर इसे होश में लाया गया तो यहां मौजूद उमादत्त के सारे ऐयार और सिपाही लाशों की सूरत में छतों पर लटके होंगे। यह तुम अच्छी तरह समझती हो कि यह वक्त यहां से निकलने का है। जब तक गुरुवचनसिंह यहां चल रहे सभी चक्कर हमें ठीक-ठीक न बता दें, तब तक हमें किसी की जान नहीं लेनी है।''

''ठीक है।'' रैना ने कहा-''लेकिन इन दोनों को यहां से ले किस तरह चलोगे?''

''जिस तरह हम तुम्हें यहां तक लाए थे।'' विजय ने कहा और विकास का बेहोश जिस्म कंधे पर डाल लिया। उधर ब्लैक ब्वाय ने धनुषटंकार को संभाल लिया। इन लोगों का काफिला तहखाने से बाहर की ओर चल दिया। हम इस बयान को ज्यादा लम्बा न खींचकर लिखे देते हैं कि किसी तरह वे सभी महफूज तरीके से न केवल महल से बाहर निकल गए, बल्कि चमनगढ़ की सीमा को लांघकर जंगल में आ गए।

''लेकिन विजय, तुम यहां गोवर्धन के रूप में कैसे?'' रघुनाथ ने सवाल किया।

''तुम्हीं लोगों को छुड़ाने आए थे प्यारे तुलाराशि।'' विजय बोला-''हमारे लूमड़ मियां दलीपसिंह के दलीप नगर में हंगामा करने गए और हम यहा हंगामा करने आए। गोवर्धनसिंह हमारे पास कैद है-लेकिन इस बंदर ने पहले ही हंगामा कर दिया।''

''लूमड़!'' ठाकुर साहब चौके-''क्या अलफांसे भी तुम्हें यहां मिल गया है?''

''बिल्कुल!'' विजय ने कहा और फिर सारे रास्ते उन्हें वह सारा हाल मुख्तसर में बताता रहा, जो उन्हें मालूम नहीं था। हमारे पाठक क्योंकि वह सारा हाल बखूबी जानते हैं, इसलिए उसे दोहराने की कोई जरूरत नहीं है। हां, इतना लिखे देते हैं कि यह हाल सागर में स्टीमरों के अलग होने से उस वक्त तक का है जब विजय, अलफांसे, गौरव, गुरुवचन इत्यादि ने योजना बनाई थी। पढ़ें छठे भाग का-चौथा बयान।

 

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