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देवकांता संतति भाग 7

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : तुलसी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2050
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''हां, गोमती ने बताया तो था तुम्हें गौरवसिंह ने गिरफ्तार कर लिया है।'' महाराज बोले-''हकीकत तो ये है कि इस वक्त हम यहां इन चारों ऐयारों से केवल तुमसे ताल्लुक रखने वाली ही बातों को कर रहे थे। हमने अभी-अभी इन्हें हुक्म दिया था कि कल सुबह से ही तुम्हारी तलाश जारी कर दें।

''हम यही सोच रहे थे कि यह कैसे पता लगाएं कि गौरवसिंह ने तुम्हें कहां रखा है और उस जगह से हम तुम्हें किस तरह का उद्योग करके निकाल सकते हैं। विक्रमसिंह ने कहा-''मगर तुम तो खुद ही चले आये हो और एक यह गठरी भी लादे आये हो।

''हां-- बड़े भारी उद्योग के बाद मैं यहा पहुंचा हूं। गोवर्धनसिंह ने बताया।

''जरा सब हाल खुलासा और मुख्तसर में तो कहो। रूपलाल ने पूछा।

''पहले तो जरा आप इसे देख लें। गोवर्धनसिंह ने गठरी की तरफ इशारा किया और गठरी खोलकर बोला-''यह हमारे दुश्मनों की एक ऐसी कड़ी है कि अगर हम इसे अपने कब्जे में रखें तो हमारे सारे दुश्मन इसके फेर में पड़कर हमारे पंजे में फंस सकते हैं।''

''ये है कौन? राजा उमादत्त ने सवाल किया।

''इसका नाम रैना है महाराज! गोवर्धनसिंह की बजाय गोमती बोल पड़ी-''ये उसी लड़के विकास की मां, रघुनाथ की पत्नी, ठाकुर निर्भयसिंह की बेटी तथा ब्लैक व्यॉय और देवसिंह (विजय) की बहन है। वाकई ये सब इस औरत से बेइन्तिहा मुहब्बत करते हैं।''

''तो तुम कहां से इसे लिये चले आते हो?'' उमादत्त ने गोवर्धनसिंह से पूछा।

''देवसिंह इत्यादि ने मुझे रमणी घाटी में कैद किया था। जिस कमरे में मुझे रखा गया था, उस कमरे के बाहर हमेशा दो-एक सिपाहियों का पहरा रहता था। मुझे उन लोगों की बातों से पता लग गया था कि ये (रैना) मेरे बराबर वाले कमरे में ही आराम फरमाती है। देवसिंह की मंडली आजकल बडे जोरशोरों से काम कर रही है। ये मंडली सारी-सारी रात आपस में बैठी बातें करती रहती है। ये तो मैं नहीं समझ सका कि उनके बीच किस तरह की बातें हुआ करती हैं, लेकिन इतना अंदाजा है कि ये जल्दी ही कोई बड़ा बखेड़ा करने जा रहे हैं। आज की रात जब दो पहरेदारों की आपसी बातचीत से पता लगा कि वह मंडली बाग में बैठी बात कर रही है तो मैंने उनकी कैद से भाग निकलने की सोची। मैंने पानी मांगा-एक पहरेदार दरवाजा खोलकर मुझे पानी देने आया। हिम्मत करके मैंने उस पर हमला कर दिया। मेरी ये हरकत देखकर दूसरा भी मुझ पर झपट पड़ा। इस तरह मुझे दोनों का मुकाबला करना पड़ा। उसी सबब से मेरी ये हालत हो गई। उन दोनों को बेहोश करके मैं कोठरी से बाहर आया और तब सोचा कि क्यों न जाता-जाता दुश्मनों की नस दबा जाऊं और इस तरह से मैं इसे (रैना को) उठा लाया। हालांकि रमणी घाटी से निकलने में मुझे काफी परेशानी का सामना करना पड़ा-मगर किसी तरह बाहर आ ही गया। सारी रात जंगल नापने के बाद अब यहां आपके पास हूं।''

सारा हाल सुनने के बाद उमादत्त ने कहा-''यह तुमने ठीक ही किया जो आते-आते इसे भी ले आए। उनकी मंडली के पांच आदमी और एक बंदर हमारी कैद में पहले ही से हैं। इसे भी उन्हीं के पास कैद कर दो। और अब सबको सावधान रहना है-हमारे ख्याल से अब आप में से किसी को भी ऐयारी करने के लिए चमनगढ़ से बाहर जाने की जरुरत नहीं है। सबको महल के आसपास ही रहना चाहिए। जब आप लोगों के कहे मुताविक ये सब लोग देवसिंह मंडली के इतने प्यारे हैं तो वे जरूर ही इन्हें यहां से निकालने का उद्योग करेंगे। बस-आप लोगों को उनके आने का पता लगाकर गिरफ्तार करना है। यदि आप लोग कामयाब हो गए तो हमारा आधा काम तो यूं ही सफल हो जाएगा।''

इसके बाद उनके बीच कुछ और देर तक इसी तरह की बातें होती रहीं और कोई तीस सायत बाद उमादत्त ये कहते हुए खड़े हो गए-''ठीक है, अब जरा हम थोड़ी देर अपनी कमर सीधी कर लें, तुम लोग इसे भी उसी कैदखाने में डालकर आराम करो।''

कुछ ही देर बाद वलभद्र, सारंगा, गोमती, रूपलाल, विक्रमसिंह और गोवर्धनसिंह तहखाने की ओर बढ़े। बलभद्र के कंधे पर रैना पड़ी थी। कई तरह के पेचीदा और गुप्त रास्तों से होकर वे उस बड़ी-सी कोठरी में पहुंचे जहां विकास, रघुनाथ, ठाकुर साहब, वंदना, ब्लैक ब्वाय और धनुषटंकार कैद थे। कोठरी में केवल एक मजबूत लोहे की सलाखों वाला दरवाजा था। उसके बाहर कम-से-कम बीस नंगी तलवारों से लैस सिपाहियों का पहरा था। गोवर्धनसिंह ने देखा कि रघुनाथ, ब्लैक ब्वाय, ठाकुर साहब, वंदना इत्यादि सोए हुए हैं। केवल विकास अकेला कोठरी के अंदर बने एक चबूतरे पर बैठा जंगले की तरफ देख रहा है।

धनुषटंकार कोठरी में कहीं नजर नहीं आया।

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