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देवकांता संतति भाग 7

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : तुलसी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2050
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

छठा बयान


आज एक बार फिर हम अपने सभी पाठकों को साथ लेकर रमणी घाटी में चलते हैं। हमारे पाठक सोचते होंगे कि हमें भला कुछ दिनों से बार-बार रमणी घाटी के चक्कर लगाने का शौक चर्राया है। इसका सबब महज इतना ही है जब भी हम रमणी घाटी में आते हैं-तो हमें कुछ भेद की बातें पता लगती हैं। आज भी हम इसी लालच के साथ यहां आए हैं। हमने सोचा क्यों न आज पाठकों के सामने कुछ मुख्य भेद खोल दें।

पाठकों को लेकर-यही सोचकर हम यहां आए हैं। हम उसी जगह पहुंच चुके हैं-जिसकी कैफियत हम पीछे कई बार लिख आए हैं। ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से घिरे इस मैदान में उसी नहर के पास इस वक्त अलफांसे, विजय, विकास, धनुषटंकार, ठाकुर निर्भयसिंह, रैना, ब्लैक व्वॉय, गौरवसिंह वंदना, गुरुवचनसिंह, गणेशदत्त, केवलसिंह, शीलारानी, महाकाल इत्यादि विराजमान हैं।

पाठक अगर संतति का कथानक ध्यानपूर्वक पढ़ रहे हैं-वे ऊपर लिखे नामों में से कुछ नाम पढ़कर लाजमी चौके होंगे। पाठकों को याद होगा कि केवलसिंह दलीपसिंह की कैद में ही था और शीलारानी बेगम बेनजूर के दरबार में, महाकाल देवसिंह के साथ।

फिर इन दोनों को इस वक्त हम रमणी घाटी में किस तरह देख रहे हैं?

मुमकिन है इन लोगों की बातचीत इस तरह के कुछ भेदों से पर्दा हटा सके। आइए-आगे बढ़कर इनकी बातें सुनते हैं-

इस तरह से मैंने राजा दलीपसिंह को मेघराज बनकर धोखे में डाला। सुरेंद्रसिंह के साथ दलीपसिंह ने मुझे मेघराज समझकर अपने चोर रास्ते से बाहर निकाल दिया। नीचे सुरंग में पहुचते ही मैंने सुरेद्रसिंह के दोनों हाथ काट डाले। उसे वहीं तड़पता छोड़कर मैं आगे बढ़ गया। रास्ते में एक पहरेदार था, जिसे मैंने जान से मार डाला और उसके बाद मेरे रास्ते में अड़चन डालने वाला कोई नहीं था। सुरंग में मैं अपना लिखा एक खत भी छोड़ आया। जब असली मेघराज दलीपसिंह से मिला होगा खूब ही मजा आया होगा।

जो हाल अभी-अभी संक्षेप में हमने अलफांसे के मुंह से सुना है-उसका मुख्तसर हाल पाठक (छठा भाग--पहला बयान और सातवाँ भाग-पहले बयान में पढ़ आए हैं। यहां पर हमारे पाठकों को यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि छठे भाग का चौथा बयान, जिसमें अलफांसे. विजय, गुरुवचन और महाकाल इत्यादि बात करते दिखाए गए हैं-छठे भाग के पहले बयान में) पहली रात की बात है। उन्हीं बातों के बाद अलफांसे मेघराज के भेस में दलीप नगर और विजय गोवर्धन के लिबास में उमादत्त के यहां पहुंचे।

हमारे पाठक-अगर छठे भाग का चौथा बयान ध्यान से पढ़ें तो जान जाएंगे कि उसी वक्त इन लोगों ने आपस में ये दोनों काम करने की ठानी थी-यह समझने में आपको दिमाग लगाना होगा।

''हां-मुझे मालूम है। महाकाल बोला--'वाकई खूब मजा आया।'

''हां-तुम्हें हमने यह काम सौंपा था कि आज सुबह जब तक हम मेघराज के भेस में दलीपसिंह से अपना काम न निकाल लें-उस वक्त तक किसी भी कीमत पर मेघराज दलीप नगर नहीं पहुंच सके और उसे तुमने रोकने के लिए क्या-क्या उद्योग किया?

''वही तो आपको बताने के लिए हाजिर हुआ हूं। महाकाल ने कहा-''कल रात जैसे ही आपने मुझे यह काम सौंपा, मैं फौरन ही सीधा यहां से उठकर मेघराज के मकान पर पहुंचा-अपने तरीके से मैंने उस पर नजर रखना जारी कर दी। सुबह को जब वह दलीप नगर के लिए-घोड़े पर रवाना हुआ-और चमनगढ़ की सीमा से बाहर जंगल में आया तो मैं सोचने लगा कि इसे किस तरह रास्ते में रोका जाए। मुझे मालूम था कि उधर दलीपनगर में आप इसी का भेस वनाए दलीपसिंह को धोखे में डाल रहे होंगे। मैं अच्छी तरह से जानता था कि अगर मेघराज वक्त से पहले दलीपनगर पहुंच गया तो सबकुछ गड़वड़ हो जाएगा। मैंने उसे जंगल में उलझाए रखने का तरीका ये निकाला कि सबसे पहले एक तीर उसके घोड़े की आंख में मारा। स्वाभाविक था कि वह चौंक पड़ता। ऐसा ही हुआ भी-घोड़ा चिंघाइता हुआ एक तरफ भाग गया। म्यान से अपनी तलवार खींचकर मेघराज ने मुझे ललकारा-लेकिन मैं अपने छुपे हुए स्थान से सामने नहीं आया। एकाएक उसे चकमा देने की एक बहुत ही बढ़िया तरकीब मुझे सूझी और मैंने वही किया। हम सभी जानते हैं कि आज से कोई तीन वर्ष पहले किसी ने उमादत्त की पत्नी और मेघराज की बहन कंचन की हत्या कर दी थी। मेघराज हजार कोशिशों के बाद भी आज तक हत्यारे का पता नहीं लगा सका है। इस बात को लेकर मेघराज के दिल में ऐसी आग है उसे पता लग जाए के फलां आदमी कंचन का हत्यारा है तो वह उसे फाड़कर सुखा दे।

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