ई-पुस्तकें >> आरोग्य कुंजी आरोग्य कुंजीमहात्मा गाँधी
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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख
४. खुराक
हवा और पानीके बिना आदमी जिन्दा ही नहीं रह सकता, यह बात सच है। मगर जीवनको टिकानेवाली चीज़ तो खुराक ही है। अब मनुष्यका प्राण है। खुराक तीन प्रकारकी होती है- मांसाहार, शाकाहार और मिश्राहार। असंख्य लोग मिश्राहारी हैं। 'मांस' में मछली और पक्षी भी आ जाते हैं। दूधको हम किसी भी तरह शाकाहारमें नहीं गिन सकते। सच पूछा जाय तो वह मांसका ही एक रूप है। मगर लौकिक-भाषामें वह मांसाहारमें नहीं गिना जाता। जो गुण मांसमें हैं वे अधिकांश दूधमें भी हैं। डॉक्टरी भाषामें वह प्राणिज खुराक-एनिमल फूड-माना जाता है। अंडे सामान्यतः मांसाहार में गिने जाते हैं, मगर दरअसल वे मांस नहीं हैं। आजकल तो अंडे ऐसे तरीके से पैदा किये जाते हैं कि मुर्गी मुर्गेको देखे बिना भी अंडे देती है। इन अंडोंमें चूजा कभी बनता ही नहीं है। इसलिए जिन्हें दूध पीनेमें कोई संकोच नहीं, उन्हें इस प्रकारके अंडे खानेमें कोई संकोच नहीं होना चाहिये।
डॉक्टरी मतका झुकाव मुख्यतः मिश्राहारी की ओर है। मगर पश्चिममें डॉक्टरों का एक बड़ा समुदाय ऐसा है जिसका यह दृढ़ मत है कि मनुष्यके शरीरकी रचनाको देखते हुए वह शाकाहारी ही लगता है। उसके दांत, आमाशय इत्यादि उसे शाकाहारी सिद्ध करते हैं। शाकाहार में फलोंका समावेश होता है। फलोंमें ताजे फल और सूखा मेवा अर्थात् बादाम, पिस्ता, अखरोट, चिलगोजा इत्यादि आ जाते हैं।
मैं शाकाहार का पक्षपाती हूँ। मगर अनुभव से मुझे यह स्वीकार करना पड़ा है कि दूध और असे बननेवाले पदार्थ जैसे मक्खन, दही वगैरा के बिना मनुष्य-शरीर पूरी तरह टिक नहीं सकता। मेरे विचारोंमें यह महत्त्वका परिवर्तन हुआ है। मैंने दूध-घीके बगैर छह वर्ष निकाले है। उस वक्त मेरी शक्तिमें किसी तरहकी कमी नहीं आयी थी। मगर अपनी मूर्खताके कारण में १९१७ में सख्त पेचिशका शिकार बना। शरीर हाड़पिंजर हो गया। मैंने हठपूर्वक दवा नहीं ली; और उतने ही हठसे दूध या छाछ भी लेनेसे इनकार किया। शरीर किसी तरह बनता ही नहीं था। मैंने दूध न लेनेका व्रत लिया था। मगर डॉक्टर कहने लगा-''यह व्रत तो आपने गाय और भैंसके दूधको नजरमें रखकर लिया था।'' ''बकरीका दूध लेनेमें आपको कोई हर्ज नहीं होना चाहिये''-मेरी धर्मपत्नीने डॉक्टरका समर्थन किया और मैं पिघला। सच कहा जाय तो जिसने गाय-भैंसके दूधका त्याग किया है, उसे बकरी वगैराका दूध लेनेकी छूट नहीं होनी चहिये; क्योंकि उस दूधमें भी पदार्थ तो वही होते हैं। सिर्फ़ मात्राका ही फरक होता है। इसलिए मेरे व्रतके केवल अक्षरोंका ही पालन हुआ है, उसकी आत्माका नहीं।
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