ई-पुस्तकें >> आरोग्य कुंजी आरोग्य कुंजीमहात्मा गाँधी
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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख
जो भी हो, बकरी का दूध तुरन्त आया और मैंने वह लिया। लेते ही मुझमें एक नया चेतन आया, शरीरमें शक्ति आयी और मैं खाटसे उठा। इस अनुभव परसे और ऐसे दूसरे अनेक अनुभवों परसे मैं लाचार होकर दूधका पक्षपाती बना हूँ। मगर मेरा यह दृढ़ मत है कि असंख्य वनस्पतियों में कोई न कोई ऐसी जरूर होगी, जो दूध और मांसकी आवश्यकता अच्छी तरह पूरी कर सके और उनके दोषोंसे मुक्त हो।
मेरी दृष्टिसे दूध और माँस लेने में दोष तो है ही। मांसके लिए हम पशु-पक्षियोंका नाश करते हैं; और मांके दूधके सिवा दूसरा दूध पीनेका हमें अधिकार नहीं है। नैतिक दोषके सिवा केवल आरोग्यकी दृष्टिसे भी इनमें दोष हैं। दोनोंमें उनके मालिकके दोष आ ही जाते हैं। पालतू पशु सामान्यतः पूरे तन्दुरुस्त नहीं होते। मनुष्यकी तरह पशुओंमें भी अनेक रोग होते हैं। अनेक परीक्षायें करनेके बाद भी कई रोग परीक्षककी नज़रसे हट जाते है। सब पशुओंकी अच्छी तरह परीक्षा करवाना असंभव लगता है। मेरे पास एक गोशाला हे। उसके लिए मित्रोंकी मदद आसानीसे मिल जाती है। परन्तु मैं निश्चयपूर्क नहीं कह सकता कि मेरी गोशालामें सब पशु निरोगी ही हैं। इससे उलटे यह देखनेमें आया है कि जो गाय निरोगी मानी जाती थी वह अन्तमें रोगी सिद्ध हुई। इसका पता चलनेसे पहले तो उस रोगी गायके दूधका उपयोग होता ही रहता था।
सेवाग्राम-आश्रम आसपासके किसानोंसे भी दूध लेता है। उनके पशुओंकी परीक्षा कौन करता है? उनका दूध निर्दोष है या नहीं, इसकी परीक्षा करना कठिन है। इसलिए दूध उबालनेसे जितना निर्दोष बन सके उससे ही काम चलाना होगा। दूसरी सब जगह आश्रमसे तो कम ही पशुओंकी परीक्षा हो सकती है। जो बात दूध देनेवाले पशुओंके लिए है वह मांसके लिए क़तल होनेवाले पशुओंके लिए तो है ही। परन्तु अधिकतर तो हमारा काम भगवान भरोसे ही चलता है। मनुष्य अपने आरोग्यकी बहुत चिंता नहीं रखता। उसने अपने लिए वैद्यों, डॉक्टरों और नीम-हकीमोंकी संरक्षक फौज खड़ी कर रखी है, और उसके बल पर वह अपने-आपको सुरक्षित मानता है। उसे सबसे अधिक चिंता रहती है धन और प्रतिष्ठा वगैरा प्राप्त करनेकी। यह चिंता दूसरी सब चिंताओंको हज़म कर जाती है। इसलिए जब तक कोई पारमार्थिक डॉक्टर, वैद्य पा हकीम लगनसे परिश्रम करके संपूर्ण गुणोंवाली कोई वनस्पति नहीं ढूंढ़ निकालता, तब तक मनुष्य दुग्धाहार या मांसाहार करता ही रहेगा।
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