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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख

२. हवा


हवा शरीरके लिए सबसे जरूरी चीज़ है। इसीलिए ईश्वरने हवाको सर्वव्यापी वनाया है और वह हमें बिना किसी प्रयत्नके मिल जाती है।

हवाको हम नाकके द्वारा फेफड़ों में भरते हैं। फेफड़े धौंकनीका काम करते हैं। वे हवाको अन्दर खींचते हैं और बाहर निकालते हैं। बाहर की हवा में प्राणवायु होती है। वह न मिले तो मनुष्य जिन्दा नहीं रह सकता। जो हवा फेफढ़ो से बाहर उगती है, वह जहरीली होती है। अगर यह जहरीली हवा तुरन्त इधर-उधर न फैल जाये, तो हम मर जायें। इसलिए घर ऐसा होना चाहिये, जिसमें हवा अच्छी तरह आ-जा सके और सूर्य-प्रकाश के आनेका रास्ता भी हो।

३१-८-'४२


हवाका काम रक्तकी शुद्धि करना है। मगर हमें फेफड़ों में हवा भरना और उसे बाहर निकालना ठीक तरहसे नहीं आता। इसलिए हमारे रक्त की शुद्धि भी पूरी तरह नहीं हो पाती। कई लोग मुंह से श्वास लेते हैं। यह बुरी आदत है। नाक में कुदरत ने एक तरह की छलनी रखी है, जिससे हवा छनकर भीतर जाती है, और साथ ही गरम होकर फेफड़ोंमें पहुँचती है। मुंह से स्वास लेने से हवा न तो साफ़ होती है और न गरम ही हो पाती है।

इसलिए हर एक मनुष्य को चाहिये कि वह प्राणायाम सीख ले। यह क्रिया जितनी आसान है, उतनी ही आवश्यक भी है। प्राणायाम कई तरह के होते हैं। उन सबमें उतरने की यहां आवश्यकता नहीं है। मैं यह नहीं कहना चाहता कि उनका कोई उपयोग नहीं है। मगर जिस मनुष्यका जीवन नियम-बद्ध है, उसकी सब क्रियाये सहज रूपसे होती हैं। इससे जो लाभ होता है, वह अनेक प्रक्रियाओं के करने से भी नहीं होता।

चलते, फिरते और सोते वक्त अगर लोग अपना मुंह बन्द रखें, तो नाक अपना काम अपने-आप करेगी ही। सुबह उठकर जैसे हम मुंह साफ करते हैं, वैसे ही हमें नाक भी साफ़ करनी चाहिये। नाकमें मैल हो तो उसे निकाल डालना चाहिये। इसके लिए उत्तम से उत्तम वस्तु साफ पानी है। जो ठंडा पानी सहन न कर सके, वह कुनकुना पानी इस्तेमाल करे। हाथमें या एक कटोरेमें पानी लेकर उसे नाकमें चढ़ाना चाहिये। नाकके एक छेदसे चढ़ाकर दूसरे से हम निकाल सकते हैं और नाक के द्वारा पानी पी भी सकते हैं।

फेफड़ों में शुद्ध हवा ही भरनी चाहिये। इसलिए रात को आकाश के नीचे या बरामदे में सोनेकी आदत डालना अच्छा है। हवा से सरदी लग जायगी, यह डर नहीं रखना चाहिये। ठंड लगे तो ज्यादा कपड़े हम ओढ़ सकते हैं। ओढ़ने का कपड़ा गलेसे ऊपर नहीं जाना चाहिये। अगर सिर ठंड को बरदास्त न कर सके तो उस पर एक रूमाल बांध लेना चाहिये। मतलब यह कि नाक को, जो कि हवा लेने का द्वार है, कभी ढंकना नहीं चाहियें।

सोते समय दिनके कपड़े उतार देने चाहिये। रातको कम कपड़े पहनने चाहिये और वे ढीले होने चाहिये। शरीरको चद्दरसे ढंके तो रखना ही है, इसलिए वह जितना खुला रहे उतना ही अच्छा है। दिनमें भी कपड़े जितने ढीले पहने जायें उतना ही अच्छा है।

हमारे आसपास की हवा हमेशा शुद्ध ही होती है, ऐसा नहीं होता। और न सब जगह की हवा एक जैसी ही होती है। प्रदेश के साथ हवा भी बदलती है।
प्रदेश का चुनाव हमारे हाथमें नहीं होता। मगर घर का चुनाव थोड़ा-बहुत हमारे हाथ में जरूर रहता है; और रहना भी चाहिये। सामान्य नियम यह हो सकता है कि घर ऐसी जगह ढूंढ़ा जाय, जहां बहुत भीड़ न हो, आसपास गंदगी न हो और हवा और प्रकाश ठीक-ठीक मिल सके।

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