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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख

९. तम्बाकू


तम्बाकूने तो गजब ही ढाया है। इसके पंजेसे कोई भाग्यसे ही छूटता है। सारा जगत एक या दूसरे रूपमें तम्बाकू का सेवन करता है। टॉल्यटॉयने इसे व्यसनोंमें सबसे खराब व्यसन माना है। उन ऋषिका यह वचन ध्यान देने लायक है। उन्होंने तम्बाकू और शराब दोंनोंका काफी अनुभव किया था और दोनोंकी हानियां वे स्वयं जानते थे। होते हुए भी मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि शराब और अफीमकी तरह तम्बाकूके दुष्परिणाम प्रत्यक्ष रूपसे मैं स्वयं बता नहीं सकता। इतना जरूर कह सकता हूँ कि इसका भी फ़ायदा मैं नहीं जानता। जो इसका सेवन करते हैं उनके सिर इसका खर्च भी पड़ता है। एक अंग्रेज मजिस्ट्रेट तम्बाकू पर हर महीने पाँच पौंड अर्थात् ७५ रुपयँ खर्च करता था। उसका महीनेका वेतन था २५ पौंड। खरे शब्दोंमें, अपनी कमाईका पांचवाँ भाग अर्थात् बीस प्रतिशत वह धुएंमें उड़ा देता था।

तम्बाकू पीनेवालेकी विवेक-शक्ति इतनी मन्द पड़ जाती है कि वह तम्बाकू पीते समय अपने पड़ोसीका विचार नहीं करता। रेलगाड़ीमें मुसाफिरी करनेवालोंको इस चीजका काफी अनुभव होता हैं। जो तम्बाकू नहीं पीते, वे तम्बाकूका धुआं सहन ही नहीं कर सकते। मगर पीनेवाला अकसर इस बातका विचार नहीं करता कि पासवालेको क्या लगता होगा। इसके उपरान्त तम्बाकू पीनेवालोंको अकसर थूकना पड़ता है और वे बिना संकोच कहीं भी थूक देते हैं।

तम्बाकू पीनेवालेके मुंहसे एक तरहकी असह्य बदबू निकलती है। संभव है कि तम्बाकू पीनेवालेकी सूक्ष्म भावनायें मर जाती हों। और यह भी संभव है कि उन्हें मारनेके लिए ही मनुष्यने तम्बाकू पीना शुरू किया हो। इसमें तो शक है ही नहीं कि तम्बाकू पीनेसे मनुष्यको एक तरहका नशा चढ़ जाता है और उस नशेमें वह अपनी चिन्ताओं और दुःखोंको भूल जाता है। टॉलस्टॉय अपने एक उपन्यासमें एक पात्रसे भयकर काम करवाते हैं। यह काम करनेसे पहले उसे शराब पिलवाते हैं। इस पात्रको एक भयंकर खून करना है। मगर शराबके नशेमें भी उसे खून करने में संकोच होता है। विचार करते करते वह सिगार जलाता है और धुआं उड़ाता है। धुएंको ऊपर चढ़ते हुए वह देखता है और देखते-देखते बाल उठता है-''मैं कैसा डरपोक हूँ! खून करना यदि कर्तव्य है, तो फिर संकोच क्यों? चल उठ, और अपना काम कर।'' इस तरह उसकी धूम्रवश विचलित बनी बुद्धि उससे एक निर्दाष आदमीका खून करवाती है। मैं जानता हूँ कि इस दलीलका बहुन असर नहीं पड़ सकता। तम्बाकू पीनेवाले सबके सब पापी नहीं होने। यह कहा जा सकता है किए करोड़ों तम्बाकू पीनेवाले लोग अपना जीवन सामान्यतः सरलतासे व्यतीत करते हैं। तो भी जो विचारशील हैं उन्हें उपर्युक्त दृष्टान्त पर मनन करना चाहिए। टॉलस्टॉयके कहनेका सार यह है कि तम्बाकूके नशेमें मनुष्य छोटे-छोटे पाप किया करता है। उसकी विवेकबुद्धि मन्द पड़ जाती है।

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