ई-पुस्तकें >> आरोग्य कुंजी आरोग्य कुंजीमहात्मा गाँधी
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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख
हिन्दुस्तानमें हम लोग तम्बाकू केवल पीते ही नहीं, सूंघते भी हैं और जरदेके रूपमें खाते भी हैं। कुछ लोग मानते हैं कि तम्बाकू सूंघनेसे फायदा होता है। वैद्य और हकीमकी सलाह से वे तम्बाकू सूंघते हैं। मेरा मत यह है कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। तन्दुरुस्त मनुष्योंकी ऐसी चीज़ोंकी आवश्यकता होनी ही नहीं चाहिए।
जरदा खानेवाले का तो कहना ही क्या? तम्बाकू पीना, सूंघना और खाना, इन तीनोंमें तम्बाकू खाना सबसे गन्दी चीज है। इसमें जो गुण माना जाता है वह केवल भ्रम है।
हम लोगोंमें एक कहावत प्रचलित है कि खानेवालाका कोना, थनेवालेका कपड़ा और पीनेवालेका घर ये तीनों समान हैं। जरदा खानेवाला सावधान हो तो थूकदान रखता है, मगर अधिकांश लोग अपने घरके कोनोंमें और दिवारों पर थूकते शरमाते नहीं हैं। पीनेवाले लोग धुएंसे अपना घर भर देते हैं और नसवार सूंघनेवाले अपने कपड़े बिगाड़ते हैं। कोई-कोई लोग अपने पास रूमाल रखते हैं, पर वह अपवादरूप है। आरोग्यका पुजारी दृढ़ निश्चय करके सब व्यसनोंकी गुलामीसे छूट जायेगा। बहुतोंको इनमेंसे एक या दो या तीनों व्यसन लगे होते हैं। इसलिए उन्हें इससे घृणा नहीं होती। मगर शान्त चित्तसे किया जाय, तो तम्बाकू फूंकनेकी क्रियामें या लगभग सारा दिन जरदे या पानके बीड़े वगैरासे गाल भर रखनेमें या नसवारका डिबिया खोलकर सूंघते रहनेमें कोई शोभा नहीं है। ये तीनों व्यसन गंदे हैं।
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