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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख

८. अफीम


जो टीका शराबखोरीके विषयमें की गई है, वही अफीम पर भी लागू होती है। दोनों व्यसनोंमें भेद जरूर है। शराबका नशा जब तक रहता है मनुष्यको वह पागल बनाये रखता है। अफीम मनुष्यको जड़ बना देती है। अफीमची आलसी हो जाता है, तन्द्रावश रहता हे और किसी कामका नहीं रहता।

शराबखोरीके बुरे परिणाम हम रोज़ अपनी आँखोंसे देख सकते हैं। अफ़ीम का बुरा असर इस तम्ह प्रत्यक्ष नहीं दीखता। अफ़ीम का जहरीला असर प्रत्यक्ष देखना हो, तो उडीसा और आसाममें जाकर हम देख सकते हैं। वहां हज़ारों लोग इस दुर्व्यसनमें फंसे हुए दिखाई देते हैं। जो लोग इस व्यसनके शिकार बने हुए: हैं, वे ऐसे लगते हैं मानों कब्रमें पैर लटकाकर बैठे हों।

मगर अफ़ीमका सबसे खराब असर तो चीनमें दुआ कहा जाता है। चीनियोंका शरीर हिन्दुस्तानियोंसे ज्यादा मज़बूत होता है। परन्तु जो अफ़ीमके फंदेमें फंस चुके है, वे मुर्दे-से दिखाई देते हैं। जिसको अफ़ीमकी लत लगी होती है, वह दीन बन जाता है और अफ़ीम हासिल करनेके लिए कोई भी पाप करनेको तैयार हो जाता है।

चीनियों और अंग्रेजोंके बीच एक लड़ाई हुई थी, जो अफ़ीमकी लड़ाईके नामसे इतिहासमें प्रसिद्ध है। चीन हिन्दुस्तानकी अफीम लेना नहीं चाहता था, जब कि अंग्रेज जबरदस्ती चीनके साथ उस अफीमका व्यापार करना चाहते थे। इस लड़ाईमें हिन्दुस्तानका भी दोष था। हिन्दुस्तान में बहुत से अफीम के ठेकेदार थे। इससे उन्हें अच्छी कमाई भी होती थी।

हिन्दुस्तानको महसूलमें चीनसे करोड़ों रुपये मिलते थे। यह व्यापार प्रत्यक्ष रूपमें अनीतिमय था तो भी चला। अन्तमें इंग्लैंडमें भारी आन्दोलन हुआ और अफीमका यह व्यापार बन्द हुआ। जो चीज़ इस तरह प्रजाका नाश करनेवाली है, उसका व्यसन क्षणभरके लिए भी सहन करने योग्य नहीं है।

इतना कहनेके बाद भी यह स्वीकार करना चाहिये कि वैद्यक या चिकित्सा-शास्त्रमें अफीमका बहुत बड़ा स्थान है। वह ऐसी दवा है जिसके बिना चल ही नहीं राकता। इसलिए अफ़ीमका व्यसन मनुष्य स्वेच्छासे छोड़ दे तभी उसका उद्धार हो सकेगा। चिकित्सा-शास्त्रमें उसका स्थान भले ही रहे। परन्तु जो चीज़ हम दवाके तौर पर ले सकते हैं, वह व्यसनके तौर पर थोड़े ही ले सकते हैं? अगर लें तो वह जहरका काम करेगी। अफ़ीम तो प्रत्यक्ष जहर ही है। इसलिए व्यसनके रूपमें वह सर्वथा त्याज्य है।

११-१०-'४२
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