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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख


ताडीका वर्णन करते हुए मुझे स्वभावतः नीराका उल्लेख करना पड़ा और उसके सबन्धमें गुड़का। मगर शराबके बारेमें मुझे अभी और कहना है। शराबसे पैदा होनेवाली बुराईका जितना कड़वा अनुभव मुझे हुआ है, मैं नहीं जानता कि उतना सार्वजनिक काम करनेवाले किसी और सेवकको हुआ होगा। दक्षिण अफ्रीकामें 'गिरमिट' (अर्ध-गुलामी) में काम करनेवाले हिन्दुस्तानियों में बहुतसे शराब पीनेके आदी होते थे! वहां यह कानून था कि हिन्दुस्तानी लोग शराब अपने घर नहीं ले जा सकते; जितनी पीना हो, शराबकी दुकान पर बैठकर पीये। स्त्रियां भी शराबकी शिकार बनी होती थीं। उनकी जो दशा मैंने देखी है, वह अत्यन्त करुणाजनक थी। जो उसे जानता है वह कभी शराब पीनेका समर्थन नहीं करेगा।

वहांके हबशियोंको सामान्यतः अपनी मूल स्थितिमें शराब पीनेकी आदत नहीं होती। कहा जा सकता है कि उनके मजदूरवर्गका तो शराबने नाश ही कर दिया है। कई मजदूर अपनी कमाई शराबमें स्वाहा करते दिखाई देते हैं। उनका जीवन निरर्थक बन जाता है।

और अंग्रेजोंका? सभ्य माने जानेवाले अंग्रेजोंको मैंने गटरोंमे पड़े देखा है। यह अतिशयोक्ति नहीं है। लड़ाईके समय जिन गोरोंको ट्रान्सवाल छोड़ना पड़ा था, उनमें से एकको मैंने अपने घरमें रखा था। वह इन्जीनियर था।

थियोसॉफिस्ट होते हुए भी उत शराबकी लत थी। शराब न पी हो तब उसके सब लक्षण अच्छे रहते थे। लेकिन जब वह शराब पी लेता था, तब बिलकुल दीवाना बन जाता था। उसने शराब छोड़नेका बहुत प्रयत्न किया, मगर जहां तक मैं जानता हूँ वह अन्त तक इसमें सफल न हो सका।

दक्षिण अफ्रीकासे वापिस हिन्दुस्तानमें आकर भी मुझे शराबके दुखद अनुभव ही हुए हैं। कितने ही राजा-महाराजा शराबकी बुरी आदतके कारण बरबाद हो गये हैं और हो रहे हैं। जो उनके विषयमें सच है, वह थोड़े-बहुत प्रमाणमें अनेक धनिक युवकोंको भी लागू होता है। मजदूर-वर्गकी स्थितिका अभ्यास किया जाय, तो वह भी दयाजनक ही है। ऐसे कड़वे अनुभवोंके बाद मैं शराबका सख्त विरोधी बना हूँ, तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है।

१०-१०-'४२


एक वाक्य में यदि कहूँ तो शराब से मनुष्य अपने शरीर, मन, और बुद्धिको क्षीण करता है और पैसा बरबाद करता है।

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