हिन्दुस्तानमें शराब, भांग, गांजा, तम्बाकू और अफ़ीम मादक पदार्थों में गिने जा सकते हैं। शराबमें इस देशमें पैदा होनेवाली ताडी और 'एरक' आते हैं; और परदेशसे आनेवाली शराबोंका तो कोई हिसाब ही नहीं है। ये सर्वथा त्याज्य हैं। शराब पीकर मनुष्य अपना होश खो बैठता है और निकम्मा बन जाता है। जिसको शराबकी लत लगी होती है, वह खुद बरबाद होता है और अपने परिवारको भी बरबाद करता है। वह सब मर्यादायें तोड़ देता है।
एक पक्ष ऐसा है जो निश्चित (मर्यादित) मात्रामें शराब पीनेका समर्थन करता है और कहता है कि हससे फायदा होता है। मुझे इस दलीलमें कोई सार नहीं लगता। पर घड़ी भरके लिख इस दलील को मान ले, तो भी उनके ऐसे लोगोके खातिर जो कि मर्यादा में रह ही नहीं सकते, इस चीज का त्याग करना चाहिये।
पारसी भाइयोंने ताड़ी का बहुत समर्थन किया है। वे कहते हैं कि ताडीमें मादकता तो हैं, मगर ताड़ी एक खुराक है और दूलरी खुराक को हजम करने में मदद पहुँचाती है। इस दलील पर मैंने खूब विचार किया है और इस बारेमें काफी पढ़ा भी है। मगर ताड़ी पीनेवाले बहूत से गरीबोंकी मैंने जो दुर्दशा देखी है, उस पर से मैं इस निर्णय पर पहुंचा दूँ कि-ताड़ीको मनुष्यकी खुराकमें स्थान देनेकी कोई आवश्यकता नहीं है।
८-१०-'४२
नाड़ीमें जो गुण माने गये हैं, वे सब हमें दूसरी खुराकमें मिल जाते हैं। ताड़ी खजूरीके रससे बनती हैं। खजूरीके शुद्ध रसमें मादकता बिलकुल नहीं होती। उसे नीरा कहते हैं। ताजी नीराको ऐसीकी ऐसी पीनेसे कई लोगोंकी दस्त साफ आता है। मैंने खुद नीरा पीकर देखी है। मुझ पर उसका ऐसा असर नहीं हुआ। परन्तु वह खुराकका काम तो अच्छी तरह से देती है। चाय इत्यादिके बदले मनुष्य सवेंरे नीरा पी ले, तो उसे दूसरा कुछ पीने या खानेकी आवश्यकता नहीं रहनी चाहिये। नीराको गन्नेके रसकी तरह पकाया जाय, तो उससे बहुत अच्छा गुड़ तैयार होता है। खजूरी ताड़की एक किस्म है। हमारे देशमें अनेक प्रकार के ताड़ कुदरती तौर पर उगते हैं। उन सबमें से नीरा निकल सकती है। नीरा ऐसी चीज है जिसे निकालनेकी जगह पर ही तुरन्त पीना अच्छा है। नीरामें मादकता जल्दी पैदा हो जाती है। इसलिए जहां उसका तुरन्त उपयोग न हो सके, वहां उसका गुड़ बना लिया जाय तो वह गन्नेके गुड़की जगह ले सकता है। कई लोग मानते हैं कि ताड़-गुड़ गन्नेके गुड़ से अधिक गुणकारी है। उसमें मिठास कम होती है, इसलिए वह गन्नेके गुड़की अपेक्षा अधिक मात्रामें खाया जा सकता है। ग्रामोद्योग संघके द्वारा ताड़ -गुडका काफी प्रचार हुआ है। मगर अभी और ज्यादा मात्रामें इसका प्रचार हाना चाहिये। जिन ताड़ोंके रससे ताड़ी बनाई जाती है, उन्हींसे गुड़ बनाया जाये, तो हिन्दुस्तान में गुड और खांडकी कभी तंगी पैदा न हो और गरीबोंको सस्ते दाममें अच्छा गुड़ मिल सके। ताड़-गुड़की मिश्री और शक्कर भी बनाई जा सकती है। मगर गुड़ शक्कर या चीनीसे बहुत अधिक गुणकारी है। गुड़में जो क्षार हैं वे शक्कर या चीनीमें नहीं होते। जैसै बिना भूसीका आटा और बिना भूसीका चावल होता है, वैसे ही बिना क्षारकी शक्करको समझना चाहिये। अर्थात् यह कहा जा सकता है कि खुराक जितनी अधिक स्वाभाविक स्थितिमें खाई जाय उतना ही अधिक पोषण उसमें से हमें मिलता है।