आचार्य श्रीराम शर्मा >> इक्कीसवीं सदी बनाम उज्जव भविष्य भाग-1 इक्कीसवीं सदी बनाम उज्जव भविष्य भाग-1श्रीराम शर्मा आचार्य
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विज्ञान वरदान या अभिशाप
अदृश्य जगत से सक्रिय परिवर्तन की लहरें
दृश्य घटनाएँ और हलचलें सामने उपस्थित और आँखों से दीखने वाली होती हैं, पर उनका आरंभ अदृश्य जगत से होता है। जीवित रहने के लिए साँस की प्रधान आवश्यकता है, जो अन्न जल से भी अधिक महत्वपूर्ण और आकाश में अदृश्य रूप से विद्यमान है। ऋतु परिवर्तन, प्राणियों और क्रियाकलापों को असाधारण रूप से प्रभावित करता है। मनुष्यों की भली-बुरी क्रियाएँ अदृश्य जगत के वातावरण को प्रभावित करती हैं और फिर वहाँ से वे तदनुरूप परिस्थितियाँ बनकर उतरती हैं। उन्हीं के प्रतिफल सुख और दु:ख के प्रतीक बनकर उतरते हैं।
इन दिनों जो हो रहा है, उसका कारण लोक प्रचलन तो है ही, अदृश्य जगत के तूफानी प्रवाह भी परिस्थितियों को कम प्रभावित नहीं करते। समाधान के उपाय प्रत्यक्ष स्तर के तो होने ही चाहिए, पर साथ ही यह भी आवश्यक है कि अध्यात्म उपचारों के जैसे सूक्ष्म क्षेत्र के पुरुषार्थ भी वैसे किए जाएँ, जैसे कि स्वाधीनता संग्राम के दिनों में महिर्षि अरविंद, रमण, पोहारी बाबा, रामकृष्ण परमहंस आदि ने किए थे।
पक्षी दोनों पंखों के सहारे उड़ता है। विपत्तियों से जूझने और प्रगति के क्षेत्र में ऊँची उड़ाने उड़ने के लिए न केवल विकास के पक्षधर प्रयासों को क्रियान्वित किया जाना चाहिए, वरन् ऐसा भी कुछ होना चाहिए, जिसमें देवताओं की संयुक्त शक्ति से दुर्गा का अवतरण हुआ था तथा ऋषियों ने रक्त से घड़ा भरकर सीता को उत्पन्न किया था। उनके माध्यम से ही असुर दमन, लंका दहन और राम राज्य की पृष्ठभूमि बनाने वाला अदृश्य आधार खड़ा किया था।
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