आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
कलकंठिनी
मधुर वाणी वाली गायत्री है। ऋग्वेद में जिस मधु-विद्या का वर्णन है वह गायत्री में सन्निहित मधुरता ही है। कटुता, कर्कशता, कठोर वचन बोलना, निंदा, चुगली आदि जितने भी वाणी के, कंठ के दोष हैं उन्हें दूर करने में साधक निरंतर ही प्रयत्नशील रहने लगता है और कुछ ही दिन में अपनी जिह्वा तथा भावना पर ऐसा नियंत्रण स्थापित कर लेता है कि किसी से दुर्वचन न कहे, हर किसी से मधुर और स्नेहयुक्त ही बोले तथा वैसा ही व्यवहार भी करे। कोयल को कल-कंठिनी कहते हैं। उसकी मधुर वाणी सबको प्रिय होती है, गायत्री उपासना से भी हर किसी को यह कल-कंठ प्राप्त होता है। उसका स्वर कैसा ही रहे, स्नेह-सौजन्य की समुचित मात्रा वचन में रहने से वह संगीत के समान हर किसी को मधुर लगता है, सभी उसकी इस वचन-सज्जनता से प्रभावित होकर उसके प्रति प्रेम और आदर का व्यवहार करते हैं। यही वशीकरण मंत्र भी है।
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