आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
इड़ापिंगलारूपिणी
ब्रह्मरंध्र से लेकर कुंडलिनी तक, सहस्रार-कमल से लेकर मूलाधार तक ब्रह्मनाड़ी में होकर दो विद्युत् शक्ति प्रवाह निरंतर बहते रहते हैं। इसमें से एक ऋण (नेगेटिव) है और दूसरी धन (पोजेटिव) है। इन्हें सूर्य शक्ति और चंद्र शक्ति भी कहते हैं। योग की भाषा में इनका नाम इड़ा और पिंगला है। यह दाँये-बाँये नासिका स्वरों के साथ प्रवाहित होती हैं। जैसे बिजली से चलने वाले सारे यंत्र दो प्रकार के ठंढे और गरम तारों के मिलने पर ही अपनी सक्रियता बनाए रखने में समर्थ होते हैं, उसी प्रकार मनुष्य का शारीरिक और मानसिक संस्थान भी इन दोनों इड़ा-पिंगला नाड़ियों पर अवस्थित है। यह दोनों प्रवाह गायत्री के ही और विलोमरू हैं। इसिलए से इता-गिता क्षण कहा गया है।
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