आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
इषुसंधानकारिणी
इषु कहते हैं धनुषबाण को। उसका संधान करने वाली गायत्री की चोट बड़े-से-बड़े धनुषबाण से भी अधिक होती है। जैसे लक्ष्यबेधी बाण अपने लक्ष्य पर अचूक निशाने की तरह लगते हैं और जिस पर चोट करते हैं उसे भूमिसात बना देते हैं, इसी प्रकार गायत्री शक्ति का प्रयोग जिस लक्ष्य के लिए किया जाता है वह निष्फल नहीं जाता। लौकिक एवं पारलौकिक प्रयोजनों में जिन्होंने गायत्री का आधार ग्रहण किया है उन्हें कभी असफलता का मुँह नहीं देखना पड़ता।
प्राचीनकाल में जो आग्नेयास्त्र, वारुणास्त्र, पाशुपत अस्त्र, सम्मोहनास्त्र आदि अस्त्र-शस्त्र युद्धों में प्रयुक्त होते थे, उनमें मंत्र शक्ति का ही प्रधान आधार रहता है, ब्रह्मदंड—ब्रह्मास्त्र आदि अस्त्र युद्ध में तो नहीं वरन् ब्राह्मणत्व की ब्रह्मयज्ञों की रक्षा के लिए काम आते थे, इन्हीं पर ब्रह्मतेज आधारित था। परशुराम के कंधे पर जो फरसा रहता था, जिससे उन्होंने २१ बार समस्त संसार का दिग्विजय किया था, यह यही गायत्री शक्ति संपन्न ब्रह्मदंड था। गायत्री को इस प्रकार शस्त्र के रूप में भी प्रयुक्त किया जा सकता है।
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