आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
ईश्वरीदेवी
ईश्वर को यों भाषा की दृष्टि से पुलिंलग माना जाता है, पर वस्तुतः वह लिंग भेद से बाहर है, उसे न नर कहा जा सकता है और न नारी। विद्युत्, वाष्प, अग्नि, सरदी, गरमी आदि को भाषा की दृष्टि से किसी लिंग में गिन लिया जाए, पर उन्हें तात्त्विक दृष्टि से देखा जाए, तो नर-नारी की कसौटी पर कसकर किसी भी पक्ष को घोषित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे स्त्री-पुरुष दोनों के लक्षणों में रहते हैं। ईश्वर के संबंध में यही बात है। उसे भक्त अपनी भावना के अनुसार 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव' माता, पिता जो चाहे सो कह सकता है। इस प्रकार ईश्वर को पुल्लिंग बोधक शब्द संबोधन न करके यदि 'ईश्वरी' इस स्त्रीलिंग सूचक शब्द में कहा जाए, तो इससे कुछ भी दोष नहीं आता।
जिस प्रकार सूर्य और उसकी तेजस्विता एक ही वस्तु है, अलग लगने पर भी वस्तुतः एक-दूसरे से भिन्न नहीं है, उसी प्रकार ईश्वर की दिव्य शक्ति चेतना एवं सक्रियता जिसे गायत्री के नाम से पुकारते हैं, किसी भी प्रकार भिन्न नहीं है। इसी से उसे ईश्वरी देवी कहते हैं।
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