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गायत्री और उसकी प्राण प्रक्रिया

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15480
आईएसबीएन :00000

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गायत्री महामंत्र का प्रमुख लाभ


प्राण-शक्ति को उपलब्ध करना ही है उसी की उपासना यदि ठीक प्रकार की जाय तो उपासक को प्राण-शक्ति की अभिवृद्धि शीघ्र ही होने लगती है और वह उस अभिवर्धन के आधार पर कई तरह की सफलतायें प्राप्त करने लगता है। कहने वाले इसे गायत्री माता का अनुग्रह आशीर्वाद कहा करें, पर वस्तुतः होता यह है कि उस उपासना से साधक में विकसित रूप से प्राण-शक्ति बढ़ती चली जाती है, उससे उसके व्यक्तित्व में कई प्रकार के सुधार, परिवर्तन होते हैं कई तरह के आकर्षण बढ़ते हैं, फलस्वरूप कठिनाइयों के अवरोध कार्य में से हटते हैं। और सफलताओं का पथ-प्रशस्त होता है।


यह आन्तरिक परिवर्तन बहुत ही सूक्ष्म होता है, इसलिए वह मोटे तौर पर दिखाई नहीं देता, पर थोड़ा गम्भीरतापूर्वक निरीक्षण करने से कितनी ही विशेषताएँ गायत्री उपासना में संलग्न व्यक्ति में दीख पड़ती हैं। प्रगति का आधार मनुष्य का विकसित व्यक्तित्व ही है। देवता किसी की सहायता नहीं करते, वे व्यक्ति के व्यक्तित्व में कुछ ऐसे सुधार कर देते हैं, जिससे वह सफलता पर सफलता प्राप्त करता हुआ, अभीष्ट प्रयोजन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ता चला जाता है। गायत्री की उपासना वस्तुतः प्राण-शक्ति की ही उपासना है। जिसे जितना प्राण-बल उपलब्ध हो गया समझना चाहिए उसकी उपासना उतने ही अंशों में सफल हो गई।

गायत्री का देवता सविता है। सविता का भौतिक स्वरूप रोशनी और गर्मी देने वाले अग्नि-पिण्ड के रूप में परिलक्षित होता है, पर उसकी सूक्ष्म सत्ता प्राण-शक्ति से ओत-प्रोत है। (इस संबंध में गायत्री का शक्ति स्रोत सविता देवता ट्रेक्ट के अन्तर्गत विस्तृत रूप से लिखा गया है।) वनस्पति, कृमि, कीट, पशु-पक्षी, जलचर, थलचर और नभचर वर्गों के समस्त प्राणी सविता देवता द्वारा निरन्तर प्रसारित प्राण शक्ति के द्वारा ही जीवन धारण करते हैं। वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि इस जगती पर जो भी जीवन चिह्न हैं। वे सूर्य की सूक्ष्म विकरणशीलता के ही प्रतिफल हैं। सावित्री उस प्राणवान्। सविता देवता की अधिष्ठात्री है। उसकी स्थिति को अनन्त प्राण-शक्ति के रूप में आँका जाय तो कुछ अत्युक्ति न होगी।

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